Article 370: कांग्रेसी नेताओं के बयान, जैसे दो तलवार और एक म्यान
बंगलुरू। जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद अमूमन सभी कांग्रेसी नेताओं के सुर एक जैसे हैं। हालांकि मुस्लिम वोट बैंक को साधते और उनके हितैषी होने की कोशिश करते बयान उन कांग्रेसी नेताओं के मुख से अधिक निकल रहे हैं, जो खुद को गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी का अग्रणी नेताओं में शुमार मानता है।
गांधी परिवार के बेहद करीबी नेता गुलाम नबी आजाद, मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, मनीष कुमार और पी. चिदम्बरम जैसे नेता जहां मुखर होकर अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने का विरोध कर रहे हैं। वहीं, दूसरे श्रेणी के नेताओं में शुमार ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा, रंजीता रंजन और वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी व भुवनेश्वर कलिता ने सरकार के फैसले का समर्थन किया है।
हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद जनता की प्रतिक्रिया देखते हुए कुछ कांग्रेसी नेताओं ने अनुच्छेद 370 खत्म करने का विरोध करने के बजाय अब उसकी प्रक्रिया का विरोध करना शुरू कर दिया है। क्योंकि पार्टी नेताओं का मानना है कि इससे पार्टी के खिलाफ देश में गलत संदेश जा रहा है।
शायद यही कारण है कि अब कांग्रेस नेता सीधे अनुच्छेद 370 को खत्म करने का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि अब वह कानून को खत्म करने की प्रक्रिया के खिलाफ लामबंद हो रही हैं। मंगलवार को पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने भी नपे-तुले और सधे हुए शब्दों में अपनी बात कही। इस दौरान उन्होंने अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध नहीं किया बल्कि हटाने की प्रक्रिया का विरोध करते हुए फैसले को अंवैधानिक करार दिया।
इससे पहले, मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने अनुच्छेद 370 को हटाने को हिंदू-मुस्लिम से जोड़ दिया था। अपने बयान में चिदम्बरम ने कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर में हिंदू बहुसंख्यक होता तो मोदी सरकार वहां से अनुच्छेद 370 को नहीं हटाती।
बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी ने चिदम्बरम के बयान को गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ करार दिया है। प्रतिक्रिया देते हुए मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि चिदंबरम मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश है जबकि यह फैसला राष्ट्रीय हित में किया गया है।
मुस्लिम तुष्टिकरण में छुपी है सत्ता चाबी
दो दशकों से कांग्रेस अकेले बहुमत से सत्ता में वापस नहीं लौट सकी है, लेकिन वह मुस्लिम तुष्टिकरण और बहुसंख्यकों के आरोपों की अनदेखी करके ही चुनाव दर चुनाव हार रही है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दत्तात्रेय ब्राह्मण बनाकर बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने पाले में करने की कोशिश की, लेकिन चुनाव हारते ही कांग्रेस वापस फिर पुराने एजेंडे पर लौट आई है।
दरअसल, मोदी सरकार के किसी फैसले के खिलाफ प्रतिक्रिया देते हुए अक्सर काग्रेसी नेता पाकिस्तान की भाषा में प्रतिक्रिया देने लगते हैं और वो भूल जाते हैं कि वो कहां खड़े हैं और किसके लिए बोल रहे हैं। इनमें सर्जिकल स्ट्राइक, एअर स्ट्राइक का उदाहरण प्रमुख हैं। हालांकि कुछ कांग्रेसियों ने पाला बदलते हुए सरकार के फैसले का स्वागत किया है. इनमें ज्यादातर वो नेता हैं, जो दूसरी श्रेणी में आते हैं।
कांग्रेस को चुनाव में याद आते हैं बहुसंख्यक
कांग्रेस पार्टी पर अक्सर आरोप लगता रहा है कि वह हिंदू हितों की बात आने पर अक्सर कन्नी काट जाती है ताकि मुस्लिम वोट बैंक उनसे छिटक न जाए। क्योंकि कांग्रेस अभी भी खुद को देश का सबसे बड़ा मुस्लिम हितैषी होने का दम भरती है वैसे मुस्लिमों को वोट बैंक साधने में कांग्रेस अकेले नहीं है बल्कि उनसे बड़े मुस्लिम हितैषी सपा और बसपा है, जहां चुनाव दर चुनाव मुस्लिम वोटर अपना मसीहा ढूंढते हुए मत दे आता है।
यह बात दीगर है कि मुस्लिम वोटर्स भी यह जानने की कोशिश कम ही करता है कि वो किसके द्वारा कम और ज्यादा ठगा गया, क्योंकि पारंपरिक और पुरातन पार्टी कांग्रेस को छोड़कर एक बार छिटका मुस्लिम वोटर अब चुनाव दर चुनाव सपा और बसपा में अपना रहनुमा तलाशता फिरता है और फिर अपने काम में लग जाता है। क्योंकि पार्टियां यह मानती हैं कि मुस्लिम वोटर बीजेपी को हराने के लिए किसी को भी वोट दे दे सकता है।
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