Article 35A: जानिए क्या है जम्मू कश्मीर में लागू यह कानून और अब तक क्या-क्या हुआ
\नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में लागू आर्टिकल 35ए पर अब सुनवाई के लिए जनवरी 2019 समय तय किया है। एनजीओ वी द सिटीजंस की ओर से दायर याचिका में इस आर्टिकल को खत्म करने की मांग की गई है। आज इस याचिका में सुनवाई होनी थी लेकिन अब जनवरी 2019 में ही सुप्रीम कोर्ट इस पर चर्चा करेगा। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी कि सितंबर के अंत में राज्य में पंचायत चुनाव होने हैं इसलिए सुनवाई को अभी टाल दिया जाए। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि सुनवाई को टाल दिया जाए। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती पहले ही चेतावनी दे चुकी हैं कि अगर राज्य की स्थिति से किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ की गई तो फिर देश को विनाशकारी अंजाम भुगतने होंगे। आखिर क्या है आर्टिकल 35ए और इस आर्टिकल से राज्य के लोगों को क्या-क्या हक मिले हुए हैं, डालिए इस पर एक नजर। ये भी पढ़ें-क्या है जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370, पूर्ण विवरण
क्या है आर्टिकल 35ए
जम्मू कश्मीर में लागू यह धारा यहां रहने वाले नागरिकों को और राज्य को खास दर्जा देती है। इस आर्टिकल के तहत यहां के नागरिकों को खास अधिकार भी मिले हुए हैं। आर्टिकल 35ए राष्ट्रपति के आदेश के बाद संविधान में शामिल किया गया था। इस आर्टिकल के बाद जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों से आने वाले लोग यहां पर अचल सपंत्ति नहीं खरीद सकते हैं। इसके अलावा इस नियम के बाद जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिकों के अलावा बाहर के किसी भी नागरिक को राज्य में न तो स्थायी नागरिक का दर्जा मिल सकता है और साथ ही न वे किसी सरकारी नौकरियों, छात्रवृत्तियों और सरकारी मदद के हकदार हो सकते हैं।
साल 2002 में हाई कोर्ट ने दिया एतिहासिक फैसला
साथ ही ऐसी महिलाएं जिन्होंने दूसरे राज्य के किसी व्यक्ति से शादी की है उन्हें भी संपत्ति में कोई हक नहीं मिलेगा। लेकिन साल 2002 में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने एतिहासिक फैसला दिया और कहा कि अगर राज्य की महिलाएं यहां से बाहर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करती हैं तो भी उनके अधिकार कोई नहीं छीन सकता है। हालांकि ऐसी महिलाओं के बच्चों को उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं मिल सकता है। साल 2014 में एनजीओ वी द सिटीजंस की ओर से इस नियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। एनजीओ का कहना था कि इस नियम को संविधान के जरिए लागू नहीं किया गया था यानी धारा 368 में संशोधन करके इसे लागू किया गया था। साथ ही इसे कभी भी संसद में पेश नहीं किया गया और सीधे प्रभावी कर दिया गया इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए।
केंद्र और राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
पिछले वर्ष एक और केस में सुप्रीम कोर्ट दो कश्मीरी महिलाओं ने बहस की कि राज्य में इस नियम की वजह से कई कानूनों में उनके बच्चों को नागरिकता और मताधिकार से वंचित रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को जुलाई 2017 में नोटिस भेजा। इस नोटिस के बाद एडवोकेट जनरल तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की बेंच को जानकारी दी कि आर्टिकल 35ए के खिलाफ दायर याचिका बहुत ही संवेदनशील सवाल उठाती है जिस पर बड़े पैमाने पर बहस करने की जरूरत है। इस वर्ष 24 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस आर्टिकल को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए छह अगस्त की तारीख तय की थी। केंद्र सरकार की ओर से बेंच को बताया गया है कि यह मामला बहुत ही संवेदनशील है और इस पर कई प्रयास जारी हैं जो ऐसा कोई भी आदेश नहीं आना चाहिए जो इसके प्रतिकूल हो।
क्या कहा याचिकाकर्ता के वकील ने
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले इस इस मुद्दे पर आदेश दे चुका है कि संविधान की धारा 370 पहले ही राज्य को स्थायी दर्जा देती है। ऐसे में इा पर किसी भी तरह की व्याख्या की जरूरत नहीं है और न ही किसी तरह के किसी अंतरिम आदेश की जरूरत इस पर है। वहीं याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार ने यह कहकर इसका विरोध किया कि जम्मू कश्मीर में यह बहुत ही अजीब स्थिति है कि पाकिस्तान से आकर कोई भी व्यक्ति राज्य में इस कानून की आड़ लेकर रह सकता है लेकिन जो यहां पर पीढ़ियों से रह रहे हैं उन्हें सरकारी नौकरी तक नहीं मिल सकती।
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