Article 35A का हटना- जानिए क्यों, बीजेपी के लिए वरदान साबित होगा
नई दिल्ली- अनुच्छेद 35A (Article 35A) को बिना संसद की सहमति से हटाया जा सकता है या नहीं, इसपर 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। लेकिन, इस मसले पर अबतक दोनों पक्ष के लोगों की राय पूरी तरह से बंटी हुई है। इसे हटाने के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि संसद के माध्यम से नहीं जोड़े जाने के कारण इसे खत्म करने में कोई अड़चन नहीं है। जबकि, इसे हटाने के विरोध में ये तर्क दिया जाता है कि संविधान की धारा 370 (Article 370)में ही यह प्रावधान है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रपति के पास विशेष कानून लागू करने के अधिकार हैं। लेकिन, सवाल ये है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे खत्म करने की दलील मान ली, तो इसका क्या सियासी परिणाम होगा?
पुलवामा हमले के चलते पहले ही बना हुआ है माहौल
अगर सुप्रीम कोर्ट ने संसद की अनुमति के बगैर ही अनुच्छेद 370 के साथ जोड़े गए इस विशेष प्रावधान को असंवैधानिक ठहरा दिया तो यह धारा इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तस्वीर बदल सकता है। क्योंकि, पुलवामा हमले के बाद आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ तगड़ी लाइन लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही ताल ठोक चुके हैं। उनके पास 56 इंच का सीना दिखाने का बेहतरीन मौका है, जिसका उनके समर्थक हमेशा कायल रहे हैं। वो एक के बाद एक ऐसे फैसले ले भी रहे हैं, जिससे देश में दुश्मनों और अलगाववादियों के खिलाफ पहले से ही एक जबर्दस्त माहौल बन चुका है। वे हर भाषण में आतंकवादियों और उनके आकाओं से पुलवामा हमले का हिसाब लेने की बात कहना नहीं चूकते। ऐसे में उन्हें अनुच्छेद 35A (Article 35A) को भी हटाने का मौका मिल गया, तो बीजेपी इसे हर हाल में भुनाने का प्रयास कर सकती है।
अनुच्छेद 35A हटा तो बदल सकती है चुनावी फिजा
अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाना बीजेपी का पुराना वादा रहा है। लेकिन, राजनीतिक मजबूरियों के चलते बीजेपी उसे सालों से ठंडे बस्ते में डाल चुकी है। पुलवामा हमले के बाद कहीं से इसे फिर से सुलगाने का प्रयास हुआ, तो नीतीश कुमार जैसे सहयोगियों ने उसे फौरन रेड सिग्नल दे दिया। ऐसी सूरत में बीजेपी के लिए 2019 में सत्ता में वापसी के लिए अनुच्छेद 35A (Article 35A) बहुत बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है। जाहिर है कि अगर यह धारा हटाई जाती है, तो कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में बीजेपी को अपने लिए बहुत बड़ा समर्थन जुटाने का मौका हाथ लग सकता है। जबकि, इसके विरोध में जितने भी सुर फुटेंगे, वह बीजेपी को फायदा ही दिला सकता है। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे पार्टी नेता कहते रहे हैं- "यह Article 35A महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है और यह असंवैधानिक भी है। इसलिए, हम यह देखना चाहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट इसे खत्म कर दे।"
हर विरोध के लिए सरकार तैयार
पीडीपी नेता और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती पहले से ही अनुच्छेद 35A (Article 35A)में किसी तरह के बदलाव का जोरदार विरोध करती रही हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा और भी कड़ी कर दी गई है। जमात-ए-इस्लामी जैसे अलगावी संगठनों पर शिकंजा कसा जा चुका है। कई अलगाववादी नेताओं की नकेल पहले से ही कसी जा चुकी है। रही बात हुर्रियत के बचे-खुचे नेताओं की तो मोदी सरकार के शासनकाल में उनमें वो दमखम बचा नहीं है कि सरकार से पंगा लेने की हिम्मत करें। पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस जैसी पार्टियों तो वो सियासी हैं, उनके विरोध का राजनीतिक जवाब देना शायद मोदी अच्छी तरह जानते हैं। बीजेपी के लिए अच्छी स्थिति ये है कि पुलवामा हमले के बाद माहौल उसके पक्ष में है और राज्य में फिलहाल केंद्र सरकार की सीधी दखल भी है। इसलिए, उसे लगता है कि अगर अनुच्छेद 35A को हटाने का मौका मिले तो इससे अच्छा अवसर मिलना मुश्किल है। यह उसके चुनावी टैग लाइन 'मोदी है तो मुमकिन है' के भी अनुकूल है। ऐसे में वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल ज्यादा दूर तक जाकर अनुच्छेद 35A को हटाने के विरोध का साहस दिखा पाएं, ऐसा लगता नहीं।
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