आर्मी के बुलेट-प्रूफ जैकेट के चाइना लिंक पर बोले नीति आयोग के मेंबर- दोबारा करेंगे विचार
नई दिल्ली। लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद 18 जून को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाई लेवल मीटिंग की और फौरन 2 लाख प्रोटेक्टिव गियर और बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने वालों से कॉन्टैक्ट किया। इसके पीछे का कारण ये था कि लेह समेत फॉरवर्ड इलाकों में तुंरत इन चीजों को और मजबूत किया जाए। इनकी सप्लाई बढ़ाई जाए। अब इन इक्विपमेंट्स को तैयार करने वाले मैटेरियल की आपूर्ति पर विवाद खड़ा हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय पूरा देश 'बायकॉट चाइना' की रट लगाए है और दूसरी तरफ इन इक्विपमेंट्स के लिए कच्चा माल चीन से ही आता है।
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दरअसल, भारत में ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैकचर्स फिलहाल डिफेंस के उत्पाद तैयार करने के लिए चीन का कच्चा माल इस्तेमाल करते हैं। इनमें वह कंपनी भी शामिल हैं, जिसे 2017 में 1 लाख 86 हजार बुलेटप्रूफ जैकेट्स बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला था। यह जैकेट्स तो फिलहाल डिलीवरी स्टेज में हैं। लेकिन जब सरकार की तरफ से कंपनी को ऑर्डर दिया गया था, तब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि सेना के लिए प्रोटेक्टिव जैकेट बनाने के लिए चीन से रॉ मैटेरियल आयात करने पर कोई रोक नहीं है।
हालांकि, अब हालात बदलने के साथ ही सरकार पर चीनी आयात और उत्पादों के इस्तेमाल को बंद करने का दबाव बढ़ा है नीति आोग के सदस्य और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख वीके सारस्वत ने इस सिलसिले में दोबारा विचार करने का भरोसा दिया है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में सारस्वत ने बताया कि "एक साल पहले हमने चीनी कच्चे माल के आयात को कम करने की कोशिश की। खासकर बुलेटप्रूफ जैकेट जैसे उत्पादों में, क्योंकि चीनी माल क्वालिटी के मामले में काफी संदिग्ध रहा है। हमने उस कंपनी को भी फोन किया, जिसने पास पहले से सेना का कॉन्ट्रैक्ट था और उनसे कहा कि वह आयात किए सभी रॉ मैटेरियल की ठीक से टेस्टिंग सुनिश्चित करें। अब हमें लगता है कि हमें चीन से रक्षा उत्पादों के लिए होने वाले आयात पर फिर से सोचना होगा। हमें टेलिकॉम और प्रोटेक्टिव गियर से जुड़े कूटनीतिक क्षेत्रों में चीन के कच्चे माल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।"
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