रक्षा बजट पर संसदीय समिति ने उठाए सवाल, अत्याधुनिक हथियारों के लिए और फंड चाहिए
नई दिल्ली- रक्षा मामलों की स्थाई समिति का कहना है कि सशस्त्र सेना को अत्याधुनिक हथियारों के लिए ज्यादा फंड की आवश्यकता है, लेकिन, 2020-21 में उसकी मांगों से 35 फीसदी कम फंड मुहैया कराई गई है। समिति का मानना है कि इससे अत्याधुनिक हथियारों, जहाजों, टैंक और दूसरी जरूरतों को पूरा करने में सशस्त्र सेनाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
रक्षा मंत्रालय की स्थाई समिति ने माना है कि 2020-21 के बजट में रक्षा मंत्रालय को 1.13 लाख करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है, जबकि मांग 1.75 लाख करोड़ रुपये की थी। इससे उसकी जरूरतों में 61,968.06 करोड़ रुपये की कटौती हो गई है। समिति ने ये भी माना है कि सेवाओं के लिए भी सिर्फ 1,02,432 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि मांग 1,61,849.20 करोड़ रुपये की थी। यानि इसमें भी 59,416.63 करोड़ रुपये का अंतर आ गया है।
समिति ने माना है कि कैपिटल हेड में 57 फीसदी की मांग की तुलना में 35 फीसदी कम आवंटन का बड़ा असर पड़ेगा। इसकी वजह से अत्याधुनिक हथियारों, विमानों, जहाजों, टैंकों की खरीद और जमीन, भवन और बुनियादी ढांचे से जुड़ी अन्य जरूरी परियोजनाएं प्रभावित होंगी। समिति को लगता है कि सबसे अत्याधुनिक फाइटिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने और खरीदने के लिए जो कि हमारे उत्तरी और पश्चिमी पड़ोंसियों के मुताबिक हों, बजट में ऐसे आवंटन का होना आवश्यक है।
क्या रक्षा मंत्रालय सशस्त्र बलों में सैन्यकर्मियों की संख्या को तर्कसंगत बनाने की सोच रहा था, इसपर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने स्थाई समिति से कहा कि हम देख रहे हैं कि कैसे हम प्रौद्योगिकी को शामिल कर सकते हैं, कि क्या यह जमीन पर जवानों की पूरक हो सकती है।
जनरल रावत ने ये भी कहा कि हालांकि हम समझ सकते हैं कि पश्चिम और उत्तर में हमारी सीमाएं सक्रिय हैं, इसलिए हम अपने रक्षा बलों और संख्याबलों को पूरी तरह अलग नहीं कर सकते। लेकिन, हम देख रहे हैं कि प्रॉद्योगिकी के जरिए हम इसे अनुकूलित कर सकते हैं।
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