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क्या वाक़ई सरकार के पिंजरे में कई 'तोते' कै़द हैं?

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि चुनाव आयोग से जुड़े किसी भी मुद्दे पर सवाल आयोग से ही होना चाहिए.

पार्टी प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "एक तरफ आप संस्थान की स्वतंत्रता बनाए रखने की बात कर रहे हैं तो उनकी जवाबदेही को लेकर सवाल भी उनसे ही होने चाहिए. अगर चुनाव आयोग के निर्णय लेने की प्रक्रिया से किसी को दिक्कत है तो सवाल उनसे ही होना चाहिए."

By BBC News हिन्दी
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नरेंद्र मोदी
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नरेंद्र मोदी

"सीबीआई कांग्रेस ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन बन गई है. देश को इसमें कोई भरोसा नहीं है. मैं केंद्र से कहता हूं हमें सीबीआई का डर न दिखाएं."

सीबीआई को लेकर ये राय मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून 2013 को जाहिर की थी. उन्होंने अपनी बात रखने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल किया. मोदी उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

ठीक पांच साल, चार महीने और एक दिन बाद यानी 25 अक्टूबर 2018 को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर ही सीबीआई की बात की.

राहुल गांधी ने लिखा, "रफ़ाल घोटाले की जाँच न हो पाए इसलिए प्रधानमंत्री ने सीबीआई प्रमुख को असंवैधानिक तरीक़े से हटा दिया. सीबीआई को पूरी तरह नष्ट किया जा रहा है."

डा. मनमोहन सिंह, राहुल गांधी और सोनिया गांधी
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डा. मनमोहन सिंह, राहुल गांधी और सोनिया गांधी

साल 2013 में राहुल की पार्टी की अगुवाई में केंद्र में यूपीए गठबंधन की सरकार थी और उसके प्रधानमंत्री थे डॉक्टर मनमोहन सिंह.

उस दौर में सीबीआई को लेकर मोदी और भारतीय जनता पार्टी के कई हमले झेलने वाले डॉक्टर सिंह भी बीते हफ़्ते पलटवार की मुद्रा में दिखे.

उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, "जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, सीबीआई जैसे संस्थानों की साख बेहद गिरी है."

सीबीआई की साख पर सवालों का ताज़ा दौर एजेंसी के दो आला अधिकारियों के बीच शुरू हुई तकरार और उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के फ़ैसले के बाद शुरू हुआ है.

इस दौर में सवाल सिर्फ़ सीबीआई की साख़ और उसके कामकाज़ में सरकार के दख़ल पर नहीं उठ रहे, बल्कि ऐसे तमाम संस्थान, आदर्श परिस्थितियों में जिनकी स्वायत्तता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता के दावे किए जाते हैं, उन सभी पर हालिया दिनों में संदेह और सवालों का घेरा दिखता है.

इन संस्थानों में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और चुनाव आयोग (ईसी) भी शामिल हैं.

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अंदरूनी खींचतान

सीबीआई और दूसरे संस्थानों में सरकार के दख़ल का सवाल विपक्षी दल तो उठा ही रहे हैं, लेकिन असल विवाद इन संस्थानों के अंदर से और भारतीय जनता पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की ओर से किए जा रहे सवालों की वजह से खड़े हुए हैं.

हालिया बरसों में नियुक्तियों, अधिकारियों के एक-दूसरे पर लगाए गए आरोपों और जांच के तरीक़ों पर अंदर से उठे सवालों ने बड़े और प्रतिष्ठित नामों वाले इन संस्थानों के अंदर छिपी कमज़ोरियों को सतह पर ला दिया है.

विश्लेषकों को हर कमज़ोरी सामने आने के साथ 'दबंग सरकार' टैग भी हिलता दिखा है. हालांकि, केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का दावा है, "ये पारदर्शिता और खुलेपन का दौर है. जब आप किसी नासूर या किसी समस्या का समाधान करते हैं तो वो शुरू में बढ़ता हुआ लगता है लेकिन समस्या के समाधान का यही तरीक़ा है."

लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के अंदर से ही कुछ अलग आवाज़ें भी सुनी जा सकती हैं.

सीबीआई, सीवीसी और ईडी को लेकर सार्वजनिक मंच पर सवाल उठाने वाले पार्टी सांसद डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी इस संस्थानों की स्वायत्तता पर ख़तरे के सवाल को तो ख़ारिज करते हैं लेकिन वो कहते हैं, "सवाल स्वायत्तता का नहीं है. सवाल ये है कि जो लोग पद पर बैठे हैं, क्या वो चिंता कर रहे हैं कि जिन भ्रष्ट लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, उनका उन पर ध्यान है या नहीं."

फ़िलहाल जिस संस्थान का विवाद सबसे ज़्यादा चर्चा में है, वो है सीबीआई.

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आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना
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आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई)

संस्थान परिचय : सीबीआई को ये नाम साल 1963 में मिला. हालांकि इसका गठन साल 1941 में स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट के रूप में हुआ. तब इसका काम युद्ध और आपूर्ति विभाग के भ्रष्टाचार मामलों की जांच था. बाद में इसकी जांच का दायरा बढ़ता गया.

क्यों विवाद में : सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को बीते मंगलवार को छुट्टी पर भेज दिया गया. दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. वर्मा की जगह नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बनाया गया है.

फ़िलहाल क्या स्थिति : आलोक वर्मा ने ख़ुद को छुट्टी पर भेजे जाने के फ़ैसले पर सवाल उठाया है और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को आदेश दिया है कि वो दो हफ़्ते में वर्मा के ख़िलाफ आरोपों की जांच पूरी करे. कोर्ट की जांच की निगरानी का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक को सौंपा है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का आरोप है, "वर्मा रफ़ाल घोटाले के काग़जात इकट्ठा कर रहे थे. उन्हें जबर्दस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया."

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली इस आरोप को 'बकवास' बता चुके हैं.

लेकिन, बीजेपी सांसद डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं, "सीबीआई डायरेक्टर ईमानदार हैं. मैंने कहा कि कार्रवाई ठीक नहीं थी. रात को 12 बजे सीबीआई डायरेक्टर को इस तरह हटा देना क़ानूनी है या नहीं ये तो सुप्रीम कोर्ट में पता चलेगा."

लेकिन सरकार और विपक्ष से अलग कई लोगों का मानना है कि इस कार्रवाई से सीबीआई की 'छवि पर हुआ असर बहुत दिन तक बना रहेगा'.

सीबीआई में अहम ज़िम्मेदारियां निभा चुके दिल्ली पुलिस के पूर्व प्रमुख नीरज कुमार कहते हैं, "सीबीआई पर जो भरोसा अदालतों का था, राज्य सरकारों का था और आम लोगों का था, उसे दोबारा पाने में लंबा वक़्त लगेगा."

नीरज कुमार मानते हैं कि सीबीआई का विवाद "दो अधिकारियों के बीच अहं का टकराव था, सही वक़्त पर हस्तक्षेप होता तो ये नौबत नहीं आती."

वो ये भी कहते हैं कि सीबीआई कभी पूरी तरह स्वायत्त संस्थान नहीं रहा.

नीरज कुमार बताते हैं, "इस एजेंसी के ऊपर एक मंत्रालय है. डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग. क़ानून के तहत सीवीसी इसकी निगरानी करता है."

नरेंद्र मोदी, राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा
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नरेंद्र मोदी, राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा

इंदिरा का दौर

भारतीय जनता पार्टी मौजूदा स्थिति को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बता रही है, लेकिन वो कांग्रेस के आरोपों को ख़ारिज कर रही है.

पार्टी प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, "यूपीए सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा था कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है. इन संस्थानों का क्षरण तो इंदिरा गांधी जी के वक़्त ही शुरू हो गया था. मौजूदा स्थिति में सरकार का प्रीएम्प्ट (पहले से क़दम उठाना) वाजिब नहीं है. अरुण (जेटली) जी ने भी कहा है कि मौजूदा सरकार किसी तरफ़ पक्ष नहीं ले सकती."

सीबीआई के पूर्व अधिकारी नीरज कुमार भी कहते हैं कि एजेंसी का दुरुपयोग सिर्फ़ अभी नहीं हो रहा है.

नीरज कहते हैं, "आम लोगों के बीच जो धारणा बन गई है कि इस एजेंसी का दुरुपयोग किया गया है. ये दुरुपयोग केवल मौजूदा सरकार ने नहीं किया है बल्कि पहले भी सरकार करती आई हैं."

लेकिन, 'दुरुपयोग' के आरोप सिर्फ़ सीबीआई पर नहीं है. कांग्रेस और बीजेपी सांसद स्वामी सवाल सीवीसी पर भी उठा रहे हैं.

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी)

संस्थान परिचय : सीवीसी का गठन साल 1964 में सरकारी भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के मक़सद से हुआ.

क्यों विवाद में : इस संस्थान के इर्द-गिर्द बीते कुछ वक़्त से विवादों का साया जुड़ा रहा है. मुख्य आयुक्त केवी चौधरी की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. हालांकि, कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया. कांग्रेस ने सीबीआई मामले में सीवीसी पर सरकार के 'पिछलग्गू' होने का आरोप लगाया.

फ़िलहाल क्या स्थिति : सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को आदेश दिया है कि वो सीबीआई के छुट्टी पर भेजे गए डायरेक्टर आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ जांच दो हफ़्ते में पूरी करे.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सीबीआई मामले में पूछे गए सवाल के जवाब में मुख्य आयुक्त चौधरी ने कहा, "मैंने गोपनीयता की शपथ ली है. मैं किसी से बात नहीं कर सकता."

लेकिन कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके 'सीवीसी और सरकार के बीच मिलीभगत' का आरोप लगाया.

कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सूरजेवाला ने दावा किया, "चौधरी 23 अक्टूबर को डेनमार्क जाने वाले थे. उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया और रात के वक़्त सीवीसी में मीटिंग की."

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राहुल गांधी और सुरजेवाला
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राहुल गांधी और सुरजेवाला

'सीवीसी पर भरोसा नहीं'

सूरजेवाला ने ये दावा भी किया कि सीवीसी के आदेश का पूर्वानुमान लगाते हुए उसी रात 11 बजे के करीब सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को सीबीआई मुख्यालय भेज दिया गया.

भारतीय जनता पार्टी के सांसद स्वामी सीवीसी की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से कराने के आदेश के हवाले से कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट भी समझता है कि हम सीवीसी पर भरोसा नहीं कर सकते. सीवीसी पर भी सवाल हैं नहीं तो जांच रिटायर्ड जज के अधीन करने की क्या आवश्यकता थी?"

हालांकि, केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सीवीसी पर उठने वाले सवालों को ख़ारिज कर रही है.

पार्टी प्रवक्ता अग्रवाल का कहना है, "लोकतंत्र में कई संस्थान होते हैं. लोकतंत्र काउंटर बैलेंसिंग और काउंटर चेक के हिसाब से चलता है. सीबीआई में दिक़्क़त हुई तो सीवीसी जांच कर रही है. सीवीसी पर नज़र रखने के लिए न्यायपालिका है. सरकार भी है."

सीबीआई में जारी विवाद के बीच एक और संस्थान प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी विवादों के घेरे में रहा है.

प्रवर्तन निदेशालय
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प्रवर्तन निदेशालय

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)

संस्थान परिचय : प्रवर्तन निदेशालय आर्थिक क़ानून को लागू कराने वाला संस्थान है. ये संस्थान भारत में आर्थिक अपराधों पर रोक लगाने के लिए गठित हुआ है और वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन है.

क्यों विवाद में : ईडी के एक हाई प्रोफाइल अधिकारी के वित्त सचिव को भेजे गए पत्र को लेकर विवाद की स्थिति बनी. पत्र में कई आरोप लगाने वाले अधिकारी के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की गई.

फ़िलहाल क्या स्थिति : वित्त सचिव को पत्र लिखने वाले अधिकारी राजेश्वर सिंह के समर्थन में भारतीय जनता पार्टी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी हैं. ईडी ने एक बयान जारी कर उन्हें जिम्मेदार अधिकारी बताया है.

इस बीच, इसी हफ्ते विवादों में घिरी इस एजेंसी को नया अंतरिम प्रमुख मिला है. संजय मिश्रा को अतिरिक्त प्रभार के साथ तीन महीने के लिए निदेशालय का प्रमुख बनाया गया है.

सीबीआई में जारी विवाद के बीच प्रवर्तन निदेशालय में अर्से से जारी विवाद उस वक्त सतह पर आ गया जब बीजेपी सांसद स्वामी ने ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह के समर्थन में सरकार को चेतावनी दे दी.

स्वामी ने ट्वीट किया, "सीबीआई में क़त्लेआम के खिलाड़ी अब ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह का निलंबन करने जा रहे हैं ताकि पीसी के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दाखिल न हो. अगर ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि मेरी ही सरकार लोगों को बचा रही है. ऐसे में मैंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जितने मुक़दमे दायर किए हैं सब वापस ले लूंगा.''

CBI पर मोदी सरकार के फ़ैसले से भड़के सुब्रमण्यम स्वामी

डा. सुब्रमण्यम स्वामी
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डा. सुब्रमण्यम स्वामी

विवाद की वजह खुलापन?

डॉक्टर राजेश्वर सिंह कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच से जुड़े रहे हैं.

जून में उन्होंने राजस्व सचिव हसमुख अधिया को आठ पन्नों का पत्र लिखा. इसमें कई आरोप लगाए गए. राजेश्वर सिंह के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर हुआ. बाद में राजेश्वर सिंह ने एक और पत्र लिखकर अधिया के ख़िलाफ लगाए आरोप वापस ले लिए. मीडिया में इस पूरे प्रकरण की ख़ूब चर्चा हुई.

स्वामी कहते हैं, "जब इनको (राजेश्वर सिंह को) हटाने की बात आ गई तो विवश होकर मैंने कहा, मुझे नहीं लगता कि मुझे भ्रष्टाचार के मामले में लड़ना है. अगर राजेश्वर के ख़िलाफ कार्रवाई होती है तो जो मैंने केस दायर किए हैं, उन्हें मैं वापस ले लूंगा."

भले ही ये दावा किया जा रहा हो कि इन सारे विवादों और आरोप के दौर से प्रवर्तन निदेशालय की साख दरकी है, लेकिन बीजेपी को ऐसा नहीं लगता.

पार्टी प्रवक्ता डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं, "ये पारदर्शिता और खुलेपन का दौर है. जब आप किसी नासूर या समस्या का समाधान करते हैं तो वो शुरू में बढ़ता हुआ लगता है. लेकिन समस्या के समाधान का यही तरीक़ा है."

वो ये भी जोड़ते हैं, "सिस्टम के अंदर जो प्रक्रियाएं हैं, उनमें निर्णय लेने का सबसे ज़्यादा अधिकार चुनी हुई सरकार को है. चुने हुए प्रतिनिधियों की अंतिम जवाबदेही जनता के प्रति है."

इस बीच एक और संस्थान है जिसके अंदर से ही सरकार को नसीहतें दी जा रही हैं. ये संस्थान है भारतीय रिज़र्व बैंक.

उर्जित पटेल
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उर्जित पटेल

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई)

संस्थान परिचय : रिज़र्व बैंक की स्थापना 1935 में हुई थी.

क्यों विवाद में : सरकार के दखल के आरोप लगते रहे हैं.

फ़िलहाल क्या स्थिति : रिज़र्व बैंक के अधिकारी केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता के फ़ायदे गिना रहे हैं. मीडिया में आई ख़बरों में दावा किया जा रहा है कि सरकार और रिज़र्व बैंक के गवर्नर के बीच नीतिगत मुद्दों पर मतभेद सामने आ रहे हैं.

पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल के आख़िरी हिस्से से ही केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक के रिश्तों पर सवालिया निशान लगते रहे हैं.

बीते हफ़्ते रिज़र्व बैंक के डेप्युटी गवर्नर डॉक्टर विरल आचार्य ने एक लेक्चर दिया. इसमें उन्होंने केंद्रीय बैंकों को स्वायत्तता देने के फ़ायदे गिनाए. इसे केंद्र सरकार को नसीहत माना गया.

डॉक्टर आचार्य ने कहा, "जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सवेर वित्तीय बाज़ारों का कोप झेलना होगा, आर्थिक मोर्चे पर ज्वाला भड़केगी और उन्हें उस दिन पर पछतावा होगा जब उन्होंने एक अहम नियामक संस्थान को कमज़ोर किया."

अब केंद्र सरकार और RBI गवर्नर उर्जित पटेल में भारी तनाव

'सरकारी हस्तक्षेप से आरबीआई की स्वायत्तता पर असर'

भारतीय रिज़र्व बैंक
AFP
भारतीय रिज़र्व बैंक

डॉक्टर आचार्य ने आगे कहा, "केंद्रीय बैंक को स्वतंत्रता देने वाली सरकारों को कम दर पर कर्ज़ मिलेगा. अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार उसके साथ होगा और वो दीर्घजीवी होंगी."

डॉक्टर आचार्य की कही बातों पर चर्चाओं का दौर थमा भी नहीं था कि मीडिया में रिपोर्टें आईं कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर और केंद्र सरकार के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. नोटबंदी के दौर में भी रिज़र्व बैंक में सरकार की दख़ल को लेकर सवाल उठे थे.

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का दावा है कि दिक्कत की वजह 'स्वतंत्रता नहीं बल्कि सर्वोच्चता हासिल करने की चाहत है'.

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, "जितने भी संस्थान हैं उनकी स्वतंत्रता सर्वोच्च है. लेकिन हर मुद्दे पर आप स्वतंत्रता का मतलब सर्वोच्चता मान लें तो समस्या आती है. वो स्वतंत्रता के नाम पर सर्वोच्चता की बात करते हैं."

वो अपनी बात को समझाते हुए कहते हैं, "अगर ब्याज़ दर को लेकर सरकार या वित्त मंत्रालय में कोई मतभेद है. आरबीआई का अलग स्टैंड है तो उसमें सर्वोच्च कौन है? अंतत: चर्चा होकर ही अंतिम फ़ैसला होगा. ये तो नहीं कह सकते कि रिज़र्व बैंक सर्वोच्च संस्था है या वित्त मंत्रालय सर्वोच्च है."

रिज़र्व बैंक के अलावा एक और संस्थान है जिसमें सरकार के कथित दख़ल को लेकर हालिया बरसों में सवाल उठते रहे हैं.

चुनाव आयोग (ईसी)

संस्थान परिचय : चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है. जवनरी 1950 में चुनाव आयोग का गठन हुआ.

क्यों विवाद में : चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल उठते रहे हैं.

फिलहाल क्या स्थिति : चुनाव आयोग विपक्ष की ओर से लगाए गए हर आरोप को ख़ारिज करता रहा है.

इसी महीने की शुरुआत में चुनाव आयोग को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एलान करना था. आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए पूर्व निर्धारित समय को बदला और विपक्षी दलों ने आरोपों की बौछार कर दी.

कांग्रेस ने आरोप लगाया, "चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में होने वाले चुनाव की घोषणा के लिए समय शनिवार को दोपहर 12.30 बजे रखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान के अजमेर में एक रैली एक बजे संबोधित करने वाले थे. चुनाव आयोग ने अचानक अपने संवाददाता सम्मेलन के समय में बदलाव करके इसे तीन बजे कर दिया. चुनाव आयोग स्वतंत्र है?"

बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के वक़्त में बदलाव को लेकर सफ़ाई दी और तीन कारण गिनाए.

ईवीएम
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ईवीएम

हालांकि ये पहला मौक़ा नहीं था जब ऐसे सवाल उठे थे. हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त भी सवाल उठे थे कि चुनाव आयोग ने दोनों राज्यों में मतदान की तारीखों का एलान एक साथ क्यों नहीं किया.

इन सवालों पर बीबीसी गुजराती के संपादक अंकुर जैन को दिए इंटरव्यू में गुजरात के मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोती ने कहा था, ''चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है. गुजरात में बाढ़ आई है और इसमें 200 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. अगर हम चुनाव की तारीख़ घोषित कर देते तो राहत-बचाव कार्य प्रभावित होते. तारीख़ घोषित होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है.''

चुनाव आयोग को सवालों का सामना ईवीएम मशीनों को लेकर भी करना पड़ा है.

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि चुनाव आयोग से जुड़े किसी भी मुद्दे पर सवाल आयोग से ही होना चाहिए.

पार्टी प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल कहते हैं, "एक तरफ आप संस्थान की स्वतंत्रता बनाए रखने की बात कर रहे हैं तो उनकी जवाबदेही को लेकर सवाल भी उनसे ही होने चाहिए. अगर चुनाव आयोग के निर्णय लेने की प्रक्रिया से किसी को दिक्कत है तो सवाल उनसे ही होना चाहिए."

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English summary
Are there really many parrots in the cage of the government
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