नज़रिया: 'साइंस कांग्रेस स्थगित होना वैज्ञानिकों का अपमान है'
भारतीय साइंस कांग्रेस 105 साल के इतिहास में पहली बार स्थगित हुई है.
भारतीय साइंस कांग्रेस 2018 के स्थगित होने की ख़बर चौंकाने वाली है. ये वर्तमान राजनीतिक माहौल की एक और उपलब्धि है. ये भारत के बीते 70 सालों के इतिहास में नहीं बल्कि 105 सालों के इतिहास में हुई एक और 'पहली घटना' है.
भारतीय वैज्ञानिकों और आज़ादी के लिए आंदोलन चला रहे नेताओं के बीच स्पष्ट संबंधों के बावजूद ब्रिटिश दौर में भी भारतीय साइंस कांग्रेस बिना रुकावट होती रही.
साइंस कांग्रेस स्थगित होने की ख़बर पढ़ने के बाद व्यक्तिगत रूप से, एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं गुस्से में हूं और निराश हूं. ऐसा महसूस करने वाला मैं अकेला नहीं हूं. वैज्ञानिक और छात्र इस कांग्रेस में अपने काम को प्रदर्शित करने के लिए पूरे साल इंतज़ार करते हैं.
झूठी ख़बरों का इस्तेमाल और उनका असर
105 साल में पहली बार साइंस कांग्रेस स्थगित
जुटते हैं हज़ारों वैज्ञानिक
हर साल जब ये कांग्रेस समाप्त होती है तब अगले साल होने वाली साइंस कांग्रेस का समय और स्थान निर्धारित कर लिया जाता है. हर सत्र की तैयारी पूरी सुनिश्चित करने, नोबेल विजेताओं और गणमान्यों को समय पर निमंत्रण भेजने के लिए ही ऐसा किया जाता है.
भारत के प्रधानमंत्री को समय रहते उद्घाटन भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जाता है. प्रधानमंत्री ही इस कांग्रेस की शुरुआत होने की घोषणा करते हैं.
आजोयन समितियां और उप-समितियां तारीखों की घोषणा कर देती हैं ताकि भारतीय वैज्ञानिक और छात्र सत्रों में हिस्सा लेने और पेपर पेश करने के लिए तैयार हो सकें.
वैज्ञानिक संस्थानों को अपनी प्रदर्शनी लगाने, मॉडल पेश करने, वीडियो दिखाने और मशीने प्रदर्शित करने के लिए स्थान बुक करने का निमंत्रण दिया जाता है. इसलिए इसकी तैयारी पर भी काफ़ी पैसा ख़र्च होता है.
भारतीय साइंस कांग्रेस के आयोजन में वैज्ञानिक विभाग, मंत्रालय, यूनिवर्सिटी के विभाग सीधे या परोक्ष रूप से शामिल होते हैं. हर साल इस कांग्रेस में हिस्सा लेने के लिए हज़ारों वैज्ञानिक जुटते हैं. इसलिए इसका प्रबंधन भी उच्च स्तर का होता है. अंतिम पलों के लिए सिर्फ़ बेहद छोटे कामों को ही छोड़ दिया जाता है.
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क्यों स्थगित हुई साइंस कांग्रेस?
अंतिम दिनों में कांग्रेस रद्द करने से पूरे साल की मेहनत बर्बाद हो गई है. रिपोर्टों के मुताबिक आगे के हालात पर चर्चा के लिए 27 दिसंबर को कार्यकारी परिषद की आपात बैठक बुलाई गई है.
वेंकी रामाकृष्णन के शब्दों में कहा जाए तो वैज्ञानिकों के सबसे बड़े जमावड़े को सर्कस में बदल दिया गया है. उन्होंने ये बयान 2016 में दिया था. और अब तो ये कांग्रेस स्थगित ही हो गई है.
अधिकारिक रूप से दिए गए स्पष्टीकरण के मुताबिक कैंपस में छात्रों का असंतोष कांग्रेस रद्द किए जाने की वजह है.
वहीं कुछ रिपोर्टों में ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के आयोजन का समय भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र के समापन से टकरा रहा है. प्रधानमंत्री का कार्यक्रम इस दौरान व्यस्त है और वो शायद उद्घाटन सत्र में शामिल नहीं हो पाते. उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री का आना एक परंपरा है और अभी तक कोई भी प्रधानमंत्री इससे ग़ैर हाज़िर नहीं रहे हैं.
राजनीतिक दलों के तनाव का रामबाण नुस्खा
वैदिक गणित, गौमूत्र, गोबर और भारत का विज्ञान
कांग्रेस के स्थगन को लेकर भारत के वैज्ञानिक समुदाय में भी कई तरह की अफ़वाहें चल रही हैं.
स्थगन के जो कारण दिए गए हैं उनमें देशभर के वैज्ञानिकों समेत किसी की भी रुचि नहीं है. जब से इस सरकार ने सत्ता संभाली हैं, इसके हर क़दम पर सावधानीपूर्वक नज़र रखी जा रही है.
प्रधानमंत्री और लगभग सभी मंत्री आत्मस्वीकृत आरएसएस प्रचारक हैं. ऐसे में ये माना लिया गया था कि वो विज्ञान और तकनीक के सहारे हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करेंगे.
वो इतिहास और समाजशास्त्र का खुले तौर पर भगवाकरण कर रहे हैं. स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम बदले जा रहे हैं. लंबे समय से आरएसएस और उससे संबंद्ध संगठन प्राचीन भारतीय काल के विज्ञान, वैदिक गणित, गौमूत्र, गोबर, संजीवनी बूटी, सरस्वती नदी और रामसेतू को लेकर भावुक और जुनूनी रहे हैं.
उन्होंने 'वैज्ञानिक स्वभाव', 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण', 'वैज्ञानिक दृष्टि' और 'वैज्ञानिक ज्ञान' जैसे वाक्यांशों को बदलने के गंभीर प्रयास भी किए हैं.
वैज्ञानिक संस्थानों में काम करने वाले अधिकतर लोगों मानते रहे हैं कि कोई भी सरकार वैज्ञानिक संस्थानों को कभी नुक़सान नहीं पहुंचाएगी. उन्हें लगता था कि भारतीय वैज्ञानिक प्रतिष्ठान इतने बड़े और इतने मज़बूत हैं कि उन्हें स्थायी चोट नहीं पहुंचाई जा सकती है.
हैरान करने वाले दावे
लेकिन इस सरकार के सत्ता संभालने के कुछ दिनों बाद ही हमनें अजीब घटनाएं देखी हैं, किसी और ने नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी ने डॉक्टरों को दिए गए एक भाषण में कहा कि हम भगवाण गणेश की पूजा करते हैं, उस समय कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा जिसने एक हाथी के सर को मानव शरीर में लगा दिया और प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत की.
वैज्ञानिक समुदाय को दिए संबोधन में एक प्रधानमंत्री का इस तरह का अवैज्ञानिक और अपुष्ट दावा करना हैरान करने वाला था. कुछ ही दिनों बाद 2015 में मुंबई में हुई 102वीं भारतीय साइंस कांग्रेस में प्राचीन विज्ञान और प्राचीन भारत में विमानन प्राद्योगिकी पर एक सत्र आयोजित किया गया.
इस सत्र में पेश किए गए एक शोधपत्र में दावा किया गया था कि प्राचीन काल में भारतीयों ने विमानन तकनीक में दक्षता हासिल कर ली थी और ऐसे विमान विकसित कर लिए थे जो न सिर्फ़ उल्टे उड़ सकते थे बल्कि दाईं-बाईं और भी उड़ सकते थे.
अतिश्योक्ति की जरुरत नहीं
ये बीते 70 सालों में भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने और तमाम दिक्कतों के बावजूद विज्ञान को बढ़ावा देने वाले समुदाय के अपमान जैसा था. क्या ये प्राकृतिक नियमों का अध्ययन करने की भारत की लंबे समय से चली आ रही परंपरा का अपमान नहीं था?
वैज्ञानिक ज्ञान, ख़ासकर गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान को बताने के लिए अतिश्योक्ति की ज़रूरत नहीं है.
भारतीय वैज्ञानिकों के धीमी आवाज़ में किए गए विरोध और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हुई तीखी प्रतिक्रिया के कारण कांग्रेस के दौरान गंभीर वैज्ञानिक मुद्दों पर चर्चा करने की परंपरा से छेड़छाड़ करने के छद्म-विज्ञान उत्साहियों के एजेंडा को रोक दिया गया.
अगले दो सालों में हुई कांग्रेस शांतिपूर्वक रहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आरएसएस के इशारे पर चलने वाले विज्ञान भारती जैसे छद्म-वैज्ञानिक संस्थान इस दौरान खाली बैठे रहे. वो जगह भरने के लिए पूरे जोश से तैयारी कर रहे थे.
उदाहरण के तौर पर वैज्ञानिक और औद्योगित शोध परिषद (सीएसआईआर), वो संस्थान जिसके महानिदेशक को विभिन्न संस्थानों के सभी 37 निदेशकों को पत्र लिखकर ये बताना पड़ा था कि संस्थान पैसों की कमी से जूझ रहा है, को विज्ञान भारती ने अंतरराष्ट्रीय विज्ञान उत्सव मनाने के लिए दबाव में लिया.
लैब में बनाया जा रहा है इंसानी दिमाग़!
पुरस्कार दिये गये लेकिन वैज्ञानिकों को नहीं!
आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइज़र में प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि 'उत्सव के समापन समारोह में कई राष्ट्रवादी लोगों को पुरस्कार दिए गए.' ध्यान देने वाली बात ये है कि पुरस्कार वैज्ञानिकों के बजाये राष्ट्रवादियों को दिए गए.
रिपोर्टों के मुताबिक सरस्वती नदी पर शोध करने और गौमूत्र और गोबर के वैज्ञानिक गुणों पर शोध करने के लिए बड़ी राशि आवंटित की गई है. दरअसल ये सब बेहद अपमानजनक है.
जब रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध की लंबी परंपरा वाले भारतीय वैज्ञानिक पदार्थों की, नैनो, आणविक और परमाणु स्तर पर खोज कर रहे हैं, जब उन्होंने दवाओं के लिए नव अणु बना लिए हैं, तब उनसे गाय के पेशाब और गोबर के गुणों का पता लगाने के लिए कहा जा रहा है. मानों की ये ऐसे पदार्थ हों जिनका उत्पादन बेहद नियंत्रिण वातावरण में किया गया हो.
स्थगन की ज़िम्मेदारी लेने वालों को दंडित किया जाए
एक सामान्य तथ्य ये है कि सभी मानवों का मल भी एक जैसा नहीं होता है, हमेशा एक जैसा नहीं रहता है. इस असंगतहीनता की वजह से ही कई तरह की बीमारियों का पता भी लगाया जाता है.
ऐसे में इस तरह के प्रोजेक्टों पर अनमोल संसाधनों को बर्बाद किया जा रहा है और वैज्ञानिक ऊर्जा को नष्ट किया जा रहा है. ऐसे प्रोजेक्ट चलाए ही क्यों जा रहे हैं? इसका जवाब ये है कि ये प्रोजेक्ट वैज्ञानिक नहीं है बल्कि इनके मक़सद राजनीतिक हैं.
हालांकि, भारतीय साइंस कांग्रेस का अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होना इससे बहुत गंभीर मुद्दा है और भारतीय वैज्ञानिक समदुाय के लिए अभूतपूर्व झटका है. यदि आयोजन स्थल को एक साल पहले ही निर्धारित कर लिया गया था तो ये राज्य सरकार और केंद्र सरकारों और विश्वविद्यालय प्रशासन की ज़िम्मेदारी थी की वहां शांति और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
यदि सिर्फ़ कैंपस में अशांति ही स्थगन की वजह हैं तो फिर यूनिवर्सिटी प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के हितों का ख़्याल रखने में नाकाम रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि कुछ लोग इसकी ज़िम्मेदारी लेंगे और जो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं उन्हें दंडित किया जाएगा.