एंटी-चीन कैंपेनः 5 बड़े घटनाक्रम से समझिए अब तक कितना नुकसान झेल चुका है चीन
नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी संकट के चलते पूरी दुनिया की आंखों में चुभ रहा चीन वर्तमान में आर्थिक, व्यापारिक और सामरिक तीनों दृष्टि से घिरा हुआ है और पूर्वी लद्दाख में चीन ने अपनी हरकतों से बाज नहीं आकर युद्ध की विभीषिका के लिए भी जमीन तैयार कर लिया है, जबकि कोरोनावायरस महामारी में चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा आघात पहुंचा है, जिससे मौजूदा वर्ष में चीनी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास दर का अनुमान 5.6 फीसदी रखा गया है।
कंसल्टेंसी ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के मुताबिक साल 2020 की पहली तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था में पिछले साल के मुक़ाबले चार प्रतिशत कम वृद्धि होगी। पूरे साल के लिए 5.6 फीसदी औसत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। हालांकि कोरोना वायरस महामारी से पहले यह अनुमान 6 फीसदी लगाया गया था।
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कोरोनावायरस महामारी के बीच पहले से तबाह अर्थव्यवस्था को संभलने देने के बजाय चीन ने अपनी विस्तारवादी रणनीति की तहत भारत से शत्रुता मोल लेते हुए पूर्वी लद्दाख में सैनिक तैनात कर दिए, जिससे भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गईं। दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और इस झड़प में चीन को भी बड़ा आघात पहुंचा और उसके 43 से अधिक सैनिकों के हताहत और मारे जाने की सूचना है, जिसके बाद भारत और चीन के बीच खटास इतनी बढ़ गई कि एंटी चीन कैंपेन के तहत चीनी सामानों का पूरे भारत में बहिष्कार शुरू हो गया।
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यह एंटी चीन कैंपेन सिर्फ चीनी सामानों के लिए नहीं था, बल्कि चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ भी था और यह सिर्फ आम भारतीयों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें भारतीय निजी कंपनियां और सरकारी उपक्रमों ने भी बढ़कर हिस्सा लिया। देखते ही देखते भारतीय रेलवे ने ईस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट से चीन की कंपनी का ठेका रद्द करने का फैसला किया और इस क्रम में भारतीय दूरसंचार निगम लिमिटेड ने घोषणा कर दिया कि वह बीएसएनएल के 4G इक्विपमेंट को अपग्रेड करने के लिए चीनी सामान का इस्तेमाल नहीं करेगी।
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चीन और चीनी सामानों के बहिष्कार और तिरस्कार के लिए संभवतः चीन पहले से ही तैयार रहा होगा, लेकिन पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ हुए झड़प में चीन को जो चोट मिली, उसकी संभवतः उसको उम्मीद नहीं थी। यही कारण था कि उसने कोरोना काल में बर्बाद हुई चीनी अर्थव्यवस्था के बावजूद खासकर अमेरिका और भारत और अन्य पड़ोसी राष्ट्रों से मुकाबले के लिए चीन के रक्षा बजट को पिछले वर्ष की तुलना में और बढ़ा दिया। यह अलग बात है कि चीनी सामानों के विक्रेता नहीं मिलने से चीन अभी बुरी तरह से कराह रहा है। इसमें कुछ कोरोना काल का असर था और बाकी प्रभाव उसकी हालिया हरकतों के कारण उसे भोगना पड़ा रहा है।
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हालांकि भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में हुए सीमा विवाद के बाद चीनी सामानों के बहिष्कार से दोनों देशों को नुकसान की पूरी संभावना है, क्योंकि चीन की तुलना में भारत की निर्भरता चीन पर अधिक है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरूआत पर बल दिया। वैसे, इस अभियान की शुरूआत कोराना काल में प्रवासी भारतीयों के पलायन को रोकने के उद्देश्य से अधिक शुरू किया गया था, लेकिन भारत और चीन सेना के बीच हुई हालिया झड़प ने आत्मनिर्भर भारत अभियान को अब मिशन का रूप दिया जा चुका है।
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गौरतलब है अगर भारत चीन से अपना कारोबार खत्म करता है तो भारत का चीन के साथ निर्यात और आयात का असंतुलन अधिक होने के कारण चीन की तुलना में भारत को अधिक नुकसान झेलना पड़ सकता है, जो करीब 18 अरब डॉलर (1.37 लाख करोड़ रुपए) का अनुमान है, जबकि चीन को 75 अरब डॉलर (करीब 5.7 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान उठाना पड़ेगा। चीन को यह नुकसान सिर्फ भारतीय कारोबार ठप होने से होगा, लेकिन कोरोनावायरस के लिए जिम्मेदार माने जा रहे चीन के खिलाफ वैश्विक रुप से भी एंटी चीन कैंपेन चल रहा है, जिससे चीन की आंखों के आगे अंधेरा छाना तय है।
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भारत और चीन के कारोबार बंद होने की स्थिति पर कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) का कहना है कि चीन से आयात पर निर्भरता कम करके भारत व्यापार में घाटा कम कर सकता है। सीएआईटी के मुताबिक अगर ऐसा होता है तो चीन के फिनिश्ड गुड्स से करीब एक लाख करोड़ रुपए का आयात घाटा दिसंबर 2021 तक बच सकता है। संभवतः चीन पर अधिक निर्भरता से भारत को आत्मनिर्भर होने में थोड़ी मुश्किल जरूर होगी, लेकिन भारत के आत्मनिर्भर बनने के कदम में यह एक प्रभावी कदम भी साबित हो सकता है।
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वर्ष 2019 में भारत ने चीन से करीब 75 अरब डॉलर के सामान का आयात किया था और उसे करीब 18 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इस तरह देखें तो चीन से व्यापार में भारत को 56.77 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अगर भारत चीन के साथ कारोबार खत्म करता है तो न सिर्फ इस घाटे से बच सकता है, बल्कि चीन की अर्थव्यवस्था को घुटने के बल झुका भी सकता है। हालांकि इसके लिए सरकार को जरूरी होम वर्क पहले कर लेना होगा, क्योंकि भारत टेक्नोलॉजी में अभी भी काफी पीछे है और रिसर्च एंड डेवलपमेंट में कुछ खास नहीं किया गया है।
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भारत के लिए यह समय इसलिए और अधिक सरल होगा, क्योंकि मौजूदा समय में पूरी दुनिया चीन के खिलाफ खार खाए बैठी हुई है और अगर पिछले दो दिनों के घटनाक्रमों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एंटी चीन कैंपेन चल रहा है। पिछले दो दिनों में घटे ऐसे ही पांच बड़े घटनाक्रम, जिन्होंने चीन की हवा निकाल दी है, वो चीन को आर्थिक, व्यापारिक और सामरिक तीनों ओर से कमजोर करने के लिए काफी हैं।
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उल्लेखनीय है चीन के प्रतिष्ठित रिसर्च संस्थान चाइना इंस्टीटूट ऑफ कंटेम्पोरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस के एक सर्वे के अनुसार कोविड-19 ने चीन की छवि और विश्वसनीयता को इस बुरी तरह खराब किया है कि आज दुनिया में चीन की साख गिरकर फिर वहीं पहुंच गई है, जहां वह 1989 के त्यानानमेन स्क्वायर नरसंहार के वक्त थी।
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साफ है, वैश्विक आर्थिक मंदी, संकुचित होती अर्थव्यवस्था और गिरती विश्वसनीयता के बीच बेल्ट एंड रोड परियोजना पर भी सवालिया निशान खड़े हुए हैं। चीन को चीनी नवर्ष के समय मात्र एक सप्ताह के भीतर कोरोना वायरस की वजह से 140 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि कोरोनावायरस से चीन का वुहान शहर कराह रहा था और पर्यटक चीन नहीं पहुंच सके थे।
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पहला घटना क्रम, सिंगापुर ने 5जी नेटवर्क के लिए चीनी फर्म को दिखाया ठेगा
सिंगापुर की दूरसंचार प्रदाता कंपनियों ने नए 5जी नेटवर्क के आधारभूत ढांचा को बनाने के लिए फिनलैंड की कंपनी नोकिया और स्वीडन की एरिक्सन को चुना है। एम1 और स्टारहब के संयुक्त उद्यम ने गत बुधवार को कहा कि रेडियो एक्सेस नेटवर्क के निर्माण के लिए उन्होंने नोकिया का चयन किया जो कोर और एमएम वेव नेटवर्क के लिए पसंदीदा आपूर्तिकर्ता है।दूसरी लाइसेंसधारी सिंगटेल ने कहा कि उसने भाड़े, कोर और एमएम वेव नेटवर्क के प्रावधान पर बातचीत करने के लिए एरिक्सन का चयन किया है। इसे चीन पर बड़े आर्थिक आघात के रुप में देखा जा सकता है।
दूसरा घटना क्रम, भारत से भी चीनी कंपनी Huawei का पत्ता कटना तय
पिछले साल सितंबर में चीन की चर्चित दूरसंचार नेटवर्क उपकरण विनिर्माता हुवावेई ने भारत में 5 जी नेटवर्क के लिए परीक्षण में भाग लेने की मंजूरी जरूर मिल गई थी, लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीनी सरकार की हरकतों और भारत में चल रहे एंटी चीन कैंपेन का असर हुवावेई के साथ करार पर पड़ना पुरी तरह से तय माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर हुवावेई के साथ कारोबार की पाबंदी लगा रखी है और चीन के खिलाफ भारत के साथ खड़ा मित्र देश अमेरिका का निराश नहीं करना चाहेगा।
तीसरा घटनाक्रम, भारत ने चीन से आयातित 300 उत्पादों पर बढ़ाई इम्पोर्ट ड्यूटी
भारत ने चीन से प्रतिशोध लेने के लिए एक अहम् योजना को मूर्त रूप देते हुए चीन से भारत में आयात होने वाले कुल 300 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने जा रही है। इस योजना से संबंधित दो सरकारी अधिकारियों ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि भारत लगभग 300 चाइनीज उत्पादों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने जा रहा है ताकि उनका आयात कम किया जा सके, क्योंकि आयात शुल्क में वृद्धि से भारतीय कंपनियां चीन का महंगा सामान छोड़कर अन्य देशों से समान उत्पाद आयात करने अथवा आत्मनिर्भर होने की कोशिश करेंगी।
चौथा घटनाक्रम, केन्या में चीन का सड़क और रेल बनाने का ठेका अवैध घोषित हुआ
भारत में जारी चीनी सामानों के बहिष्कार मुहिम के बीच चीन को अफ्रीका से भी एक बड़ा झटका उस वक्त लगा जब अफ्रीकी देश केन्या की सुप्रीम कोर्ट चीन के 3.2 बिलियन डॉलर के रेल प्रोजेक्ट को अवैध करार दिया है। यह करार केन्या की सरकार और चीन की रोड एंड ब्रिज कॉरपोरेशन सीआरबीसी के बीच हुआ था। जिसे केन्या की अदालत ने अवैध माना है। अदालत के अनुसार स्टैंडर्ड गेज रेलवे यानि एसजीआर की खरीद केन्या के राष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करता है। अरबों रुपए की चीनी सहायता का यह प्रोजेक्ट चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत शुरू किया गया है। यह चीन पर दूसरा बड़ा आर्थिक आघात कहा जा सकता है।
पांचवा घटनाक्रम, अमेरिका यूरोप से अपने सैनिकों को घटाकर हिंद महासागर में लगा रहा है
भारत और चीन के बीच हुए सैनिक संघर्ष के बाद अमेरिका ने यूरोप से अपने सैनिकों की संख्या को कम कर दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि भारत और दक्षिण एशिया के लिए चीन के खतरे को देखते हुए अमेरिका ने यूरोप से अपने सैनिकों को हटाकर एशिया में तैनात करने का फैसला किया है। चीन के आक्रामक रवैये की आलोचना करते हुए पोम्पियो न कहा, हम भारत और अपने मित्र देशों को चीन से खतरे के मद्देनजर अपने सैनिकों की तैनाती की समीक्षा कर रहे हैं और जरूरत पड़ी तो अमेरिकी सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से मुकाबला करने को तैयार है।
पहले ही ताइवान के निकट 3 न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात किए
अमेरिका ने पहले ही ताइवान के समीप अपने तीन न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर को तैनात कर दिया है। जिसमें से दो ताइवान और बाकी मित्र देशों के साथ युद्धाभ्यास कर रहे हैं, वहीं तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर जापान के पास गश्त लगा रहा है। अमेरिका ने जिन तीन एयरक्राफ्ट कैरियर को प्रशांत महासागर में तैनात किया है वे यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट, यूएसएस निमित्ज और यूएसएस रोनाल्ड रीगन हैं। यह घटना के सामरिक दृष्टिकोण से बेहद चोट करने वाला है।
पूरे एशिया भर में 2 लाख से ज्यादा तैनात है अमेरिकी सैनिक
फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स, इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे एशिया में चीन के चारों ओर 2 लाख से ज्यादा अमेरिकी सेना के जवान हर वक्त मुस्तैद हैं और किसी भी अप्रत्याशित हालात से निपटने में भी सक्षम हैं। वहीं चीन की घेराबंदी में अमेरिका और अधिक संख्या में एशिया में अपनी सेना को तैनाक करने की तैयारी कर रहा है। इससे विवाद और गहराने के आसार हैं।