उद्धव सरकार बनते ही आई एक और मुसीबत, BMC को तोड़नी पड़ सकती है 70,000 करोड़ की FD
नई दिल्ली- देश के कुछ छोटे राज्यों से भी बड़े बजट वाले और सबसे अमीर नगर निगम बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) इस साल ऐतिहासिक वित्तीय संकट से गुजर रहा है। बीएमसी की कमाई आधे से भी कम हो गई है और स्थिति ऐसी है कि शायद दशकों बाद उसे पहली बार घाटे में जाना पड़ सकता है। अब जब वित्त वर्ष 2019-20 के पूरे होने में तीन महीने से भी कम का समय बचा है, उसके लिए राजस्व घाटा पाटना करीब-करीब नामुमकिन सा लग रहा है। बीएमसी में जारी इस आर्थिक मंदी के बारे में खुद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी पूरी तरह से वाकिफ हैं। गौरतलब है कि बीएमसी पर उनकी पार्टी शिवसेना का ही कब्जा है। जानकार मान रहे हैं कि अगर बीएमसी घाटे को पाटने का कोई उपाय नहीं ढूंढ़ पाया तो उसे अपनी एफडी (FD) तोड़नी पड़ सकती है, जो कि 70,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा बताई जा रही है।
ऐतिहासिक आर्थिक मंदी की चपेट में बीएमसी
देश के सबसे अमीर निगम और कई राज्यों से ज्यादा बजट वाले बीएमसी पर ऐतिहासिक आर्थिक संकट मंडरा रहा है। चालू वित्त वर्ष खत्म होने में अब तीन महीने से भी कम बचे हैं, लेकिन अगर 30 नंबर तक का उसका बैलेंस सीट देखा जाय तो पता चलता है कि बीएमसी लक्ष्य का 50 फीसदी राजस्व भी नहीं जुटा पाया है। पिछले साल फरवरी में कॉर्पोरेशन ने जो 30,692 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था, उसमें 25,513.41 करोड़ रुपये राजस्व से आय का अनुमान रखा गया था। लेकिन, बीते 30 नवंबर तक वह महज 12,930.99 करोड़ रुपये का ही राजस्व जुटा सका। अगर खर्च को भी शामिल किया जाय तो इस तारीख तक कॉर्पोरेशन को 1,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका था।
क्यों घटी बीएमसी की कमाई?
मुंबई मिरर के मुताबिक बीएमसी की कमाई में आई इस मंदी के कई कारण हैं। मसलन रियल एस्टेट सेक्टर में डेवलपमेंट चार्ज का कलेक्शन घटा है, 500 वर्ग फीट के घर पर प्रॉपर्टी टैक्स को लेकर असमंजस की स्थिति से भी उगाही घटी है और कॉर्पोरेशन को चुंगी जुटाने में हुए नुकसान की भरपाई करने में भी राज्य सरकार नाकाम रही है। जैसे डेवलपमेंट चार्ज बीएमसी की कमाई का एक मुख्य जरिया है, जिसमें वह 3,454.44 करोड़ रुपये के निर्धारित लक्ष्य की जगह सिर्फ 1,835.99 करोड़ रुपये ही जुटा सका है। देश के किसी भी निगम की आमदनी का बड़ा स्रोत चुंगी मानी जाती है। लेकिन, जीएसटी की वजह से अब उसे इसके बदले राज्य सरकार से मिलने वाले मुआवजे के भरोसे रहना पड़ रहा है। यह मुआवजा बीएमसी के लिए 5 साल के लिए सालाना 9,073.28 करोड़ रुपये फिक्स है, लेकिन चालू वित्त वर्ष में राज्य सरकार से महज 6,040.80 रुपये की रकम ही मिली है।
'बाकी समय में राजस्व का लक्ष्य पाना असंभव'
प्रॉपर्टी टैक्स से होने वाली कमाई में इस साल अबतक बीएमसी फिसड्डी साबित हुआ है। जैसे कि पिछले साल एक अप्रैल से लेकर आने वाले 31 मार्च तक उसने प्रॉपर्टी टैक्स से 5,016.19 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया था। लेकिन, 30 नवंबर तक उसके खजाने में सिर्फ 1,387.61 करोड़ रुपये ही जुट पाए थे। पानी और सीवेज से प्राप्त होने वाले राजस्व का भी ऐसा ही हाल है। बीएमसी ने इस साल इस हेड के तहत 1,459.13 करोड़ रुपये जमा करने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन 30 नवंबर तक इसमे भी उसे 46% रकम जुटाना बाकी रह गया था। बीएमसी के एक पूर्व एडिश्नल म्युनिसिपल कमिश्नर ने नाम नहीं जाहिर होने देने की शर्त पर बताया कि तीन महीने में लक्ष्य के मुताबिक राजस्व जुटा पाना बीएमसी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, 'हमारे पिछले अनुभवों को देखते हुए, अगले दो महीनों में अनुमानित राजस्व लक्ष्य का 20% से ज्यादा जुटा पाना संभव नहीं है। बीएमसी को टैक्स जुटाने पर जरूर ध्यान देना चाहिए और पैसे बचाने के लिए खर्च घटाने के कदम उठाने चाहिए।'
70,000 रुपये की एफडी तोड़ेगी बीएमसी?
बीएमसी पर नजदीकी नजर रखने वालों के मुताबिक किसी को याद भी नहीं है कि पिछली बार कब इसने अपना घाटे का लेखा-जोखा दिखाया था। सच्चाई तो ये है कि मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोर्शन ऐक्ट इसे अपने खाते को घाटे के साथ बंद करने से रोकता है। जानकारों की राय में अब बीएमसी के पास तीन उपाय हैं- पहला, सारा बकाया राजस्व बाकी के तीन महीने से भी कम वक्त में जुटा ले, जो कि बहुत बड़ी रकम है। दूसरा, खर्च में कटौती कर दी जाय। लेकिन, इससे चल रहे प्रोजेक्स पर संकट छाने का खतरा है। तीसरा, बीएमसी अपनी फिक्स डिपॉजिट तोड़ दे। बीएमसी का 70,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम एफडी में जमा है। इसे तोड़ना एक आसान उपाय हो सकता है, लेकिन इससे एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी।
सीएम उद्धव से भी जताई जा चुकी है चिंता
पिछले महीने जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बीएमसी के हेडक्वार्टर पहुंचे थे, तब फंड की किल्लत को लेकर उनके सामने भी चिंता जताई गई थी। ऊपर से कर्मचारियों की सैलरी के खर्चे में हर साल भारी इजाफा ही होता जा रहा है। इस साल बीएमसी ने अपने ऊपर एक बोझ और ले लिया है कि उसने बेस्ट (BEST) को विशेष अनुदान के तौर पर 1,736.84 करोड़ रुपये दिए हैं। बीएमसी के चीफ अकाउंटेंट (फाइनेंस) प्रदीप पडवाल ने भी माना है कि रेवेन्यू कलेक्शन में भारी कमी आई है। हालांकि, उन्होंने भरोसा जताया है कि 'वित्त वर्ष के आखिर तक घाटे को पूरा कर लिया जाएगा।' इस बीच समाजवादी पार्टी के कॉर्पोरेटर रईस शेख ने कहा है कि 'बीएमसी का वित्तीय संकट चिंता की बात है और इसे फौरन खर्च कम करने के उपाय शुरू कर देनी चाहिए या इसे अपनी एफडी तोड़नी पड़ जाएगी।'
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