तैयार हो रही जर्मन “नस्ल” वाली एक और खतरनाक फ़ौज
नई
दिल्ली।
सावधान..!
फिर
से
जर्मन
“नस्ल”
की
एक
और
फ़ौज
तैयार
हो
रही
है
पूरी
दुनिया
पर
कब्ज़ा
करने
के
लिए।
इनके
पास
गजब
का
सुरक्षा
कवच
है।
यह
फ़ौज
खतरनाक
से
खतरनाक
केमिकल
हमले
को
झेल
सकती
है।
यहाँ
तक
की
परमाणु
हथियारों
के
रेडिएशन
को
भी
झेलने
की
गजब
की
क्षमता
है
इस
नई
फ़ौज
में।
अगर
इनको
प्रभावशाली
ढंग
से
शीघ्र
न
रोका
गया
तो
यह
पूरी
दुनिया
पर
कहर
ढाएगी।
नई-नई
बीमारियाँ
फैलेंगी।
इस
फ़ौज
के
सैनिक
इतने
खतरनाक
हैं
कि
इनका
सर
धड
से
अलग
कर
दिया
जाये
तो
भी
नौ
दिन
तक
जीवित
रह
सकते
हैं,
करीब
45
मिनट
तक
सांस
रोक
सकते
हैं,
शून्य
से
भी
नीचे
के
तापमान
में
रह
सकते
हैं।
इतनी
क्षमता
तो
दुनिया
के
सर्वश्रेष्ठ
कमांडों
में
भी
नहीं
होती।
घबराइये
नहीं
यहाँ
हिटलर
की
नाज़ी
फ़ौज
जैसी
नई
सेना
की
बात
नहीं
हो
रही
बल्कि
ऐसी
फ़ौज
की
बात
हो
रही
जो
इत्तफाक
से
मूल
रूप
से
जर्मनी
में
पनपी
है।
यहाँ
बात
हो
रही
है
कॉकरोच
या
तिलचट्टे
की
उन
खतरनाक
प्रजातियों
की
जो
गजब
की
प्रतिरोधक
क्षमता
के
साथ
जर्मनी
से
निकल
कर
दुनिया
भर
में
फ़ैल
रहीं
हैं।
कॉकरोच फैला रहे एलर्जी और अस्थमा
कॉकरोच या तिलचट्टे सदियों से मनुष्य के साथ रहते आये हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि कॉकरोच का विकास धरती पर डाइनोसॉर से भी पहले लगभग 12 से 30 करोड़ साल पहले हुआ। करीब पांच करोड़ साल पहले अन्तरिक्ष से बरसे उल्का पिंडों ने डाइनोसॉर को समाप्त कर दिया लेकिन कॉकरोच सर्वाइव कर गए। अक्सर कॉकरोच हमारे किचन और बाथरूम में घूमते मिल जाते हैं। इन्हें गंदगी का प्रतीक माना जाता है क्योंकि कॉकरोच गंदगी में पनपने वाले जीव हैं। इनकी वजह से कई बीमारियां हो सकती है। कॉकरोच की वजह से बच्चों में एलर्जी और अस्थमा जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। कॉकरोच जहां पर रहते हैं वहां पर 33 अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया मौजूद रहते हैं। इसीलिए लोग इसे भगाने के लिए नए नए तरीके आजमाते रहते हैं। इन्हें मारने या भगाने का एक प्रचलित तरीका है कीटनाशक का प्रयोग। लेकिन अब एक बुरी खबर आ रही है। धीरे धीरे इन कॉकरोच में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पनपती जा रही है। कीटनाशकों का असर इन पर कम होने लगा है। खासकर जर्मन कॉकरोच की एक खतरनाक प्रजाति ने कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। यहां तक कि अलग अलग कीटनाशकों का मिश्रण भी इन पर बेअसर होने लगा है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि केवल कीटनाशक से कॉकरोच को ख़त्म करना लगभग असम्भव हो जायेगा।
जर्मन प्रजाति के कॉकरोच ‘ब्लाटेला जर्मैनिका एल’
अमेरिका की पर्ड्यू यूनिवर्सिटी (Purdue University) ने हाल ही में एक नया शोधपत्र जारी किया है। इसमें चेताया गया है कि भविष्य में जर्मन प्रजाति के कॉकरोच ‘ब्लाटेला जर्मैनिका एल' को समाप्त करना अत्यंत कठिन हो जायेगा क्योंकि इनमें प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती ही जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन्हें नियंत्रित करना इसलिए भी बहुत जरूरी है क्योंकि भविष्य में इससे मानव जाति के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा। कॉकरोच के कारण बैक्टीरिया तेजी से फैलते हैं। इनके मल से मनुष्यों में एलर्जी और दमा होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
कीटविज्ञान के प्रोफेसर माइकल स्कार्फ के रिसर्च में कॉकरोच से मिलने वाली यह नई चुनौती सामने आई है। हाल ही में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट में एक खतरनाक तथ्य सामने आया है कि ये तिलचट्टे विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों के प्रति तुरंत प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेते हैं। ऐसे में केवल कीटनाशक से इन्हें ख़त्म करना लगभग असम्भव हो जायेगा। कहा जाता है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इसी तरह फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के खाद्य एवं कृषि संस्थान के अनुसार कॉकरोच ‘ब्लाटेला जर्मैनिका एल' की इस प्रजाति ने अन्य सभी प्रकार के तिलचट्टों को बदनाम कर रखा है। ‘ब्लाटेला जर्मैनिका एल' मानव आबादी से दूर रह कर जीवित नहीं रह सकती। ये घर के गर्म स्थानों में रहते हैं जहाँ इनके लिए खुराक और पानी उपलब्ध हो।
अधिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ पनप रहे कॉकरोच
पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक कीटनाशक और कीटनाशकों के मिश्रण के साथ कुछ कॉकरोच पर प्रयोग किये। तीन प्रकार के कीटनाशकों के मिश्रण के प्रयोग से इन तिलचट्टों की आबादी बढ़ी तो नहीं लेकिन खत्म भी नहीं हुई। दो प्रकार के कीटनाशकों के मिश्रण के प्रयोग का इन तिलचट्टों पर शुरू में थोडा असर हुआ लेकिन जल्द ही तिलचट्टों ने प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली। सबसे ज्यादा परेशान करने वाला परिणाम उन कॉकरोच पर प्रयोग से आया जिनमें शुरुआत में हल्की प्रतिरोधक क्षमता पाई गई थी। इन पर एक कीटनाशक का प्रयोग बेअसर दिखा और इनकी संख्या तेजी से बढ़ी। प्रोफेसर स्कार्फ का कहना है कि जिन तिलचट्टों पर कीटनाशकों का प्रयोग किया गया उनके बच्चे अपने आप इन कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के साथ पैदा होते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि इन कॉकरोच की अगली पीढ़ी पहले की तुलना में चार से छह गुना अधिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ पनप रही है।
रावण जैसे आसुरी लक्षणों वाले तिलचट्टे
कुल मिला कर रावण जैसे आसुरी लक्षणों वाली तिलचट्टों की इस फ़ौज ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। ये सिर कटने के बाद कॉकरोच 9 दिन तक बड़े आराम से ज़िंदा रह सकता हैं क्योंकि कॉकरोच मुंह से सांस नहीं लेते बल्कि अपने शरीर में मौजूद छिद्रों से सांस लेते हैं। 9 दिन बाद भी वह सिर कटने की वजह से नहीं बल्कि प्यास की वजह से मर जाता है। कॉकरोच की रेडिएशन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता इंसानों की तुलना कई गुना ज्यादा होती है। एक मनुष्य का शरीर 800 रेम्स (REMS) की रेडिएशन झेल सकता है जबकि एक तिलचट्टा 10,500 रेम्स तक की रेडिएशन बड़ी आसानी से झेल सकता है। इसीलिये माना जाता है कि अगर परमाणु युद्ध छिड़ा तो मानव जाति समाप्त हो जाएगी लेकिन कॉकरोच बचे रहेंगे। फिलहाल युद्ध मनुष्यों और इन तिलचट्टों के बीच है।