कांग्रेस शासित एक और राज्य पंजाब में भी मच सकता है बवाल, सिद्धू का इस्तीफा बनेगा वजह!
नई दिल्ली- पंजाब के कांग्रेस सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री आवास तक अपना इस्तीफा पहुंचाने में 35 दिन लग गए। 34 दिन तक तो पता ही नहीं चला कि वह इस तरह का कोई विचार भी कर रहे हैं। सवाल ये उठ रहे हैं कि अगर उन्हें अपना मंत्री पद छोड़ना ही था, तो उन्होंने राहुल गांधी को इस्तीफा क्यों भेजा? अगर वे पार्टी में कोई मोलभाव नहीं करना चाहते थे, तो 35 दिन पहले ही सीधे सीएम को इस्तीफा भेज देते। क्योंकि, संवैधानिक तौर पर तो उनके त्यागपत्र पर फैसला सीएम अमरिंदर सिंह को ही करना है। इसलिए, मानना गलत नहीं होगा कि पंजाब के दोनों कांग्रेस नेताओं के बीच जिस तरह के मतभेद सामने आए हैं, उसमें कांग्रेस को कर्नाटक और गोवा की तरह यहां भी कुछ बड़ा उलटफेर देखने को मिल जाए तो बड़ी हैरानी नहीं होनी चाहिए।
मतभेद बहुत गहरे हो चुके हैं
नवजोत सिंह सिद्धू ने राहुल गांधी को भेजे जिस इस्तीफे का रविवार को खुलासा किया, वह लिखा भी कांग्रेस अध्यक्ष को गया था। जब उनकी नियुक्ति मुख्यमंत्री की सिफारिश पर गवर्नर ने की थी, तो राहुल गांधी को इस्तीफा भेजने का मतलब क्या था? यही नहीं, जब सिद्धू को अपने इस रवैये पर जवाब देना भारी पड़ने लगा तो उन्होनें मुख्यमंत्री तक अपनी इच्छा पहुंचाने के लिए भी सीधे उनसे मुलाकात करना जरूरी नहीं समझा। बल्कि, उनके सरकारी आवास तक किसी तरह अपना खत पहुंचवा दिया। उसी तरह जब अमरिंदर सिंह से उनके इस्तीफे के बारे में सवाल पूछे गए, तो वह कहते हैं कि अभी उन्होंने इस्तीफा देखा नहीं है कि उसमें क्या लिखा है? जब एक-दो दिन में वे दिल्ली से चंडीगढ़ पहुंचकर इस्तीफा देख लेंगे, तब उसपर कोई फैसला लेंगे। सिद्धू और अमरिंदर की बातों से साफ है कि दोनों के बीच सामान्य बातचीत होनी भी मुश्किल हो चुकी है। ऐसे में पंजाब कांग्रेस में सबकुछ ठीक रहेगा, इसकी गारंटी कौन दे सकता है।
दोनों में क्यों बढ़ा विवाद?
सिद्धू और अमरिंदर के बीच खींचतान तो शुरू से ही चल रहा था, लेकिन जब पिछले 6 जून को अमरिंदर ने 13 मंत्रियों के साथ सिद्धू का विभाग बदला तो उन्होंने आरपार की लड़ाई ठान दी। उन्हें निकाय विभाग से बिजली महकमा दिया गया था। लेकिन, वे मुख्यमंत्री का फैसला मानने के लिए तैयार नहीं हुए। इसके चलते एक महीने से ज्यादा वक्त तक अमरिंदर को बिजली विभाग का भी काम देखना पड़ा। इस दौरान सिद्धू दिल्ली जाकर पार्टी आलाकमान से मामले का कोई हल भी नहीं निकलवा सके, क्योंकि वहां राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से अलग ही आफत मची है। जब सिद्धू को लगा कि अब कैप्टन उनका कैबिनेट से पत्ता साफ कर सकते हैं या उनसे उनका विभाग छीना जा सकता है, तो उन्होंने जल्दीबाजी में राहुल को इस्तीफा भेजने की बात सार्वजनिक कर दी। इससे पहले सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर को लोकसभा चुनाव में मनचाही सीट से टिकट नहीं दिए जाने को लेकर दोनों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ चुके थे। हालांकि, कैप्टन का कहना है कि उन्होंने तो उन्हें बठिंडा से टिकट देने की सिफारिश तक की थी, लेकिन वो चंडीगढ़ से टिकट लेने के लिए अड़े रह गए।
इसे भी पढ़ें- सिद्धू के इस्तीफे पर सीएम अमरिंदर ने तोड़ी चुप्पी, दिया ये बड़ा बयान
कई मुद्दों पर सार्वजनिक हो चुके हैं मतभेद
पिछले साल अगस्त में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा करतारपुर कॉरिडोर की नींव रखने के कार्यक्रम में सिद्धू भी पहुंचे थे। उनका यह कदम मुख्यमंत्री अमरिंदर को पसंद नहीं आया था। कैप्टन नहीं चाहते थे कि सिद्धू वहां जाएं। जानकारी के मुताबिक उन्होंने इसके लिए उन्हें फोन तक किया, लेकिन वे सीएम की बात काटकर चले गए और वहां जाकर पाकिस्तानी सेना के चीफ जावेद बाजवा को गले लगा लिया। जब इसको लेकर सिद्धू का विरोध हुआ, तो उसमें कैप्टन भी शामिल हो गए। इसके जबाव में पांच राज्यों के चुनाव प्रचार के दौरान नवजोत सिद्धू ने मीडिया वालों के एक सवाल के जवाब में कह दिया था कि सीएम अमरिंदर पंजाब के कैप्टन हो सकते हैं, लेकिन उनके कैप्टन तो राहुल गांधी हैं। जब इसपर विवाद बढ़ा, तो उन्होंने अमरिंदर से माफी मांग ली और उन्हें पिता तुल्य बता दिया। हालांकि, अमरिंदर के खिलाफ उनकी नाराजगी बरकरार ही रही। इसी को देखते हुए कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के प्रचार में सिद्धू को पंजाब से दूर ही रखा, लेकिन जब एक जनसभा में उन्हें मौका मिला तो उन्होंने फिर अमरिंदर को निशाने पर ले लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पर अकाली दल के बादलों से मिलीभगत तक के आरोप लगा दिए। उन्होंने बेअदबी कांड को लेकर भी अमरिंदर को घेरने की कोशिश की।
पंजाब कांग्रेस में आगे क्या होगा?
पंजाब में सिद्धू-अमरिंदर प्रकरण तब चरम पर पहुंचा है, जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर भयंकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। गोवा और तेलंगाना में पार्टी लगभग साफ हो चुकी है और कर्नाटक में सरकार गिरने तक का खतरा है। ऐसे में अमरिंदर और सिद्धू की सियासी रंजिश से पंजाब कांग्रेस में सब कुछ सहज रहेगा, यह कहना बहुत मुश्किल है। क्योंकि, कांग्रेस नेतृत्व का इस समय अपने संगठन पर पकड़ बहुत ही ढीला नजर आ रहा है। वैसे मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह प्रदेश के बहुत कद्दावर नेता हैं और वहां उनकी सरकार पूरी बहुमत में भी है। लेकिन, कहा जाता है कि जबसे ये सरकार बनी है, तभी से सिद्धू की नजरें सीएम की कुर्सी पर लगी हुई है। ऐसे में वो इस्तीफा देकर शांत बैठ जाएंगे, ये लगता तो नहीं है। उन्होंने बीजेपी छोड़ी, तो वे कई सपने लेकर भी कांग्रेस में आए होंगे। वैसे भी अगर उन्हें सिर्फ सरकार से किनारा करना होता, तो राहुल की दरबार में हाजिरी लगाकर महीने भर तक आदेश का इंतजार नहीं करते। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि उनका अगला कदम क्या होगा? यह सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि अगर सरकार में मंत्री रहकर वे मुख्यमंत्री के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल सकते हैं और आलाकमान भी उन्हें रोक नहीं सका, तो मंत्री नहीं रहकर वे क्या गुल नहीं खिला सकते?
इसे भी पढ़ें- राजद में बवाल का डर, जानबूझ कर दबा दी चुनावी हार की समीक्षा रिपोर्ट