मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी को खली इस नेता की कमी, डेढ़ साल बाद भी पार्टी तलाश रही विकल्प
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार थम चुका है और प्रदेश की 230 सीटों पर 28 तारीख को होने वाले मतदान की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। हालांकि बीजेपी को इस चुनाव में एक ऐसे नेता की कमी महसूस हो रही है जिनके देहांत के बाद से आज तक उनका विकल्प पार्टी तलाश ही रही है। भाजपा के रणनीतिकार और वरिष्ठ नेता अनिल दवे के निधन ने मध्य प्रदेश में पार्टी की चुनावी तैयारियों को प्रभावित जरूर किया है।
मध्य प्रदेश में भाजपा के रणनीतिकार रहे अनिल माधव दवे
केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने वाले अनिल दवे पिछले तीन चुनावों में संगठन और सत्ता के बीच एक सेतु का काम करते रहे। अनिल दवे बागी नेताओं को भी मना लेते थे और उनकी सक्रियता और राजनीतिक सूझबूझ पार्टी को चुनाव में बहुत फायदा पहुंचाती थी। अनिल दवे के काम करने का तरीका काफी अलग था। वे उम्मीदवारों के चुनाव से लेकर वर्तमान विधायकों की पररफॉर्मेस रिपोर्ट तक अपनी टीम के लोगों से तैयार कराते थे और उसे पार्टी आलाकमान को भेजते थे।
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अनिल दवे का विकल्प नहीं तलाश पाई पार्टी
बीजेपी को इस नेता का विकल्प नहीं मिल पाया है और ये इसी से समझा जा सकता है कि जो काम अनिल दवे करते थे, उसे संभालने के लिए कई लोगों को मध्य प्रदेश बुलाया गया। संबित पात्रा, नरेंद्र तोमर और धर्मेद्र प्रधान को पार्टी ने भोपाल बुलाया। बावजूद उसके बागी नेताओं को मनाने में कामयाबी नहीं मिली और ना ही बेहतर संवाद स्थापित हो सका है।
डेढ़ साल पहले हुआ था अनिल दवे का निधन
मध्य प्रदेश में भाजपा की जड़ें मजबूत करने के पीछे अनिल दवे का बड़ा हाथ रहा। 'मिस्टर बंटाधार' जैसी पंच लाइन भी अनिल दवे ने ही दी थी जिसने कांग्रेस की सरकार की मध्य प्रदेश में वापसी की राह ही मुश्किल कर दी। साल 2008 के चुनाव में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मध्य प्रदेश में पार्टी या सरकार के किसी भी बड़े आयोजन की जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी जाती थी और अपनी काबिलियत के दम पर वे कार्यक्रम को सफल बनाते थे। बता दें कि 18 मई 2017 को अनिल दवे का निधन हुआ था।