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आजमगढ़: पिता के गढ़ से रिकॉर्ड वोटों से जीतने के लिए उतरे हैं अखिलेश?

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नई दिल्ली। सभी अटकलों पर विराम लगते हुए समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए प्रत्याशी का एलान कर दिया है। आजमगढ़ से इस बार उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में होंगे। यह पहला मौका है जब अखिलेश यादव पूर्वांचल की किसी सीट से चुनाव लड़ेंगे। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, आजमगढ़ हमेशा से पूर्वांचल की एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण सीट रही है। वही आजमगढ़, जहाँ 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दांवपेंच के उस्ताद महाबली मुलायम सिंह यादव को बीजेपी के बाहुबली रमाकांत यादव ने कड़ी टक्कर दी थी। वही आजमगढ़ जहाँ नतीजे घोषित होने के पहले तक मुलायम सिंह यादव को हार का डर सता रहा था और वही आजमगढ़ जिसने पिछले चुनाव में विपक्ष का झंडा बुलंद रखा था जबकि पूरे पूर्वांचल में बीजेपी की आंधी में विपक्षी दलों का सफाया हो गया था।

इस सीट पर मुस्लिम फैक्टर हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है

इस सीट पर मुस्लिम फैक्टर हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर यादव और मुस्लिम फैक्टर हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं और जीत-हार में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा में गठबंधन है और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बड़े नेताओं के खिलाफ पार्टी प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है। ऐसे में सपा के अखिलेश यादव के लिए अपने पिता के गढ़ आजमगढ़ को बचाना बहुत मुश्किल नहीं लगता। इसबार 2014 जैसी मोदी लहर भी नहीं है। प्रदेश भर में कांग्रेस ने भले ही सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया हो लेकिन मुलायम परिवार के खिलाफ कोई कैंडिडेट नहीं खड़ा करेगी। इसमें आजमगढ़ की सीट भी शामिल है। इस लिहाज से चुनावी गणित अखिलेश के पक्ष में जाता दिख रहा है।

यहाँ मुकाबले में कांग्रेस के न होने से मुस्लिम वोट बंटने की आशंका भी नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि आजमगढ़ सीट पर अखिलेश यादव के लिए कोई चुनौती नहीं होगी। अखिलेश को सबसे बड़ी चुनौती यादव बिरादरी से ही मिलने वाली है। यहाँ से बाहुबली रमाकांत यादव चार बार सांसद रह चुके हैं। खासबात है कि वह दो बार सपा के टिकट पर, एक बार बसपा के टिकट पर और एक बार बीजेपी के टिकट पर आजमगढ़ लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। रमाकांत यादव इस समय बीजेपी में हैं। पिछला लोकसभा चुनाव उन्होंने बीजेपी के ही टिकट पर लड़ा और मुलायम जैसे महारथी को इस बाहुबली ने कड़ी टक्कर दी। इसलिए आजमगढ़ में अखिलेश के सामने एक चुनौती रमाकांत यादव भी हैं।

क्षेत्रवाद और वोटबैंक की राजनीति पर भारी राष्ट्रवाद का मुद्दा !

क्षेत्रवाद और वोटबैंक की राजनीति पर भारी राष्ट्रवाद का मुद्दा !

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 1978 के बाद से जातिगत मतों का ध्रुवीकरण हमेशा से नतीजे पर असर डालता रहा है। यही कारण है कि आजमगढ़ में पार्टी के बजाय प्रत्याशी ज्यादा अहम रोल अदा करता है। उदाहरण के लिए रमाकांत यादव हैं जो सपा, बसपा और बीजेपी, तीनो पार्टियों के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। इस बार सपा-बसपा समर्थक दलित, पिछड़े और मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर मतदान करेंगे। इससे अखिलेश की राह आसान हो जाएगी। लेकिन चुनाव करीब आते ही सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दे और उसपर विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया ने हवा का रुख थोडा बदल दिया है। इसके चलते क्षेत्रवाद और वोटबैंक की राजनीति पर राष्ट्रवाद हावी होता लग रहा है। इस हवा ने रफ़्तार पकड़ी तो आजमगढ़ के वोटबैंक का गणित बिगड़ जायेगा।

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युवा मतदाता और सोशल मीडिया बिगाड़ सकते खेल

युवा मतदाता और सोशल मीडिया बिगाड़ सकते खेल

एक अन्य फैक्टर युवा मतदाता और सोशल मीडिया भी है। लोकसभा चुनाव 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए 12 मई को मतदान होना है। इस बार जिले में एक लाख 32 हजार मतदाता बढ़े हैं। इसमें 49,660 युवा मतदाताओं के नाम जोड़े गए जो पहली बार वोट करेंगे। एक अध्ययन से पता चलता है युवा वोटर, खासकर पहली बार मतदान करने वाले 18-19 आयु वर्ग के वोटर सोशल मीडिया से बहुत प्रभावित होते हैं। सोशल मीडिया में 4 से 5 प्रतिशत वोट इधर-उधर करने की क्षमता है। लगभग 40 से 50 प्रतिशत मतदाताओं के लिए सूचनाओं का प्राथमिक स्रोत सोशल मीडिया है। ऐसे में आजमगढ़ सीट पर पिछले चुनाव के मुकाबले अखिलेश को बीजेपी से कहीं अधिक कड़ी टक्कर मिल सकती है।

आंकड़े फिलहाल अखिलेश के पक्ष में

आंकड़े फिलहाल अखिलेश के पक्ष में

इस बार आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के कुल 17,70,637 मतदाता वोट देंगे। इनमे में से 9,62,889 पुरुष और 8,07,674 महिला मतदाता हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान आजमगढ़ से कुल 18 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे । ऐसे में सपा मुखिया मिलायम सिंह यादव ने इस चुनाव में 3 लाख 40 हजार 306 वोट पाकर जीत हासिल की, वहीं दूसरी ओर भाजपा के प्रत्याशी रमाकांत यादव ने 2 लाख 77 हजार 102 वोट प्राप्त करके मुलायम सिंह को टक्कर देने की कोशिश की। इस लोकसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली 2 लाख 66 हजार 528 वोट लेकर तीसरे पायदान पर रहे. इसके अलावा कांग्रेस के कैडिंडेट अरविंद कुमार जायसवाल 17 हजार 950 वोट पाकर इस चुनाव में काफी पीछे रहे। गौरतलब है कि वोट प्रतिशत के आधार पर आजमगढ़ लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी को 35.43 प्रतिशत वोट हासिल हुए। वहीं भाजपा को 28.85 प्रतिशत वोटों से संतुष्ट होना पड़ा। साथ ही बहुजन समाज पार्टी को 27.75 फीसदी वोट मिले। इसके अलावा कांग्रेस को केवल 1.87 प्रतिशत वोट ही पड़े।

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आजमगढ़ के लोग नया इतिहास रचने के लिए जाने जाते

आजमगढ़ के लोग नया इतिहास रचने के लिए जाने जाते

वैसे भी आजमगढ़ के लोग नया इतिहास रचने के लिए जाने जाते हैं। आजमगढ़ में वर्ष 1971 तक लगातार कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा। आपातकाल के बाद 1977 में पहली बार कांग्रेस को यहाँ पराजय का सामना करना पड़ा। हालांकि 1978 में हुए उप चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मोहसिना किदवई सांसद बनी थीं। उसके बाद से कोई महिला सांसद नहीं बन सकी। पहला लोकसभा चुनाव सन् 1952 में हुआ। तब आजमगढ़ से अलगू राय शास्त्री ने पहला सासद होने का गौरव प्राप्त किया। 1957 के चुनाव में कालिका सिंह को प्रतिनिधित्व का मौका मिला। 1962 के आम चुनाव में आजमगढ़ से काग्रेस के रामहरख सासद चुने गए। 1967 के चुनाव में आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र से चंद्रजीत यादव ने काग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की । 1971 के चुनाव में आजमगढ़ से चंद्रजीत यादव ने लगातार दूसरा चुनाव जीता। 1977 के चुनाव में चंद्रजीत जीत का सिलसिला जारी नहीं रख सके। जनता पार्टी की लहर में आजमगढ़ से रामनरेश यादव ने जीत दर्ज की। उसके बाद दो चुनाव को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस कभी उबर नहीं पाई। 1980 के लोकसभा चुनाव में चंद्रजीत ने काग्रेस का दामन छोड़ जेएनपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और एक बार फिर सांसद चुने गए। 1984 के चुनाव में आजमगढ़ से कांग्रेस के युवा नेता संतोष कुमार सिंह सासद। 1989 के चुनाव में बसपा के रामकृष्ण को क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का मौका मिला। 1991 के चुनाव में चंद्रजीत यादव ने जनतादल के टिकट पर पुन: जीत हासिल की। 1996 में आजमगढ़ से सपा के रमाकांत यादव ने चुनाव जीता। 1998 के चुनाव में आजमगढ़ से बसपा के अकबर अहमद डंपी चुनाव जीते। 1999 में आजमगढ़ से रमाकांत यादव सपा पुनः सांसद बने। 2004 में आजमगढ़ से रमाकांत यादव बसपा के टिकट पर सांसद बने। 2008 के उपचुनाव में अकबर अहमद डम्पी बसपा के टिकट पर चुनाव जीते । 2009 में रमाकांत यादव बीजेपी के टिकट पर सांसद बने।

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(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
Analysis on Akhilsh yadav ticket from Azamgarh in lok sabha elections 2019
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