10 फीसदी आरक्षण से 90 फीसदी सवर्णों को खुश करने के पीछे ये है बीजेपी की असल वजह
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव चलते हुए आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। आदेश को मंजूरी दिए जाने के अगले ही दिन मंगलवार लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश कर दिया गया। संविधान संशोधन को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा की कार्यवाही को एक दिन के लिए बढ़ाया भी गया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवाने के बाद मोदी सरकार ने यह ब्रह्मास्त्र चला है। ऐसे में दो सवाल उभरकर सामने आते हैं। पहला- सवर्णों को आरक्षण की मंजूरी क्यों देनी पड़ी और दूसरा- आरक्षण के इस दांव से बीजेपी को क्या लाभ होगा।
2014 में अपर कास्ट ने बीजेपी को छप्पर फाड़कर दिया वोट
बीजेपी जब से अस्तित्व में आई है तभी से उसकी एक पहचान रही है- ब्राह्मण, बनिया की पार्टी। मतलब सवर्ण वोटर शुरू से बीजेपी का कोर वोटर रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने के बाद बीजेपी को कोर वोटर यानी सवर्ण मतदाता का वोट पहले कहीं ज्यादा मिला। मतलब सवर्ण समाज ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी की पर अटल-आडवाणी की बीजेपी से भी ज्यादा भरोसा किया और बंपर वोट देकर पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। लोकनीति सर्वे के मुताबिक, 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों को करीब 56 प्रतिशत सवर्ण मतदाताओं का वोट प्राप्त हुआ। 2009 लोकसभा चुनाव के परिणामों से तुलना करें तो यह 30 प्रतिशत ज्यादा था। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 19 प्रतिशत अपर कास्ट वोट मिला था। 2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी हार गई थी, कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई थी, लेकिन तब भी बीजेपी और कांग्रेस का अपर कास्ट वोट प्रतिशत एकदम बराबर था। मतलब बुरे समय में सवर्ण मतदाताओं ने बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा। लोकनीति सर्वे में सबसे अहम बात जो सामने आई, वह यह रही कि बीजेपी के हिंदी हार्टलैंड में अपर कास्ट वोट सबसे ज्यादा शिफ्ट हुआ। जैसे- बिहार और उत्तर प्रदेश। बिहार में बीजेपी का अपर कास्ट वोट 2009 की तुलना में 2014 में 14 प्रतिशत बढ़ा। यह वोट कांग्रेस से शिफ्ट होकर सीधे बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के पक्ष में गया। ऐसा ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में देखा गया।
मोदी सरकार के दो फैसलों ने सवर्णों को किया नाराज, अब नाराजगी दूर करने को लाई आरक्षण
मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद अपर कास्ट वोटर बीजेपी से लगातार दूर जा रहा था। मोदी सरकार के दो फैसले अपर कास्ट को सबसे ज्यादा नागवार गुजरे। यहां तक कि पार्टी के भीतर सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी का मुद्दा जोर पकड़ने लगा। यहां तक कि तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसका असर भी दिखा। मोदी सरकार के दो अहम फैसले सवर्णों को नागवार गुजरे। नंबर एक- दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार SC/ST एक्ट को मूल स्वरूप में बहाल करने के लिए संशोधन विधेयक लाई और उसे पास कराया। नंबर दो- सुप्रीम कोर्ट में SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन दिए जाने के पक्ष में मोदी सरकार खड़ी है। इन दो फैसलों ने सवर्ण मतदाता को नाराज कर दिया, जिससे पार्टी के भीतर हलचल मची हुई थी। ऐसे में सवर्ण वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी को कोई न कोई बड़ा कदम उठाना ही था।
तीन राज्यों में सवर्ण वोटर दिखा बीजेपी से नाराज
हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तीन में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवा दी। एससी-एसटी एक्ट के चलते सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को मध्य प्रदेश में हुआ। एमपी की राज्य की 230 विधानसभा सीटों में सवर्ण-ओबीसी के सीधे प्रभाव वाली 148 सीटें हैं। 2013 में बीजेपी ने इन 148 में से 102 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2018 में इन सीटों पर बीजेपी को काफी नुकसान हो गया। ऐसे में सवर्ण वोटर को मनाने के लिए कदम उठाना बीजेपी के लिए बेहद जरूरी हो गया था।
तीन राज्यों में सवर्ण वोटर दिखा बीजेपी से नाराज
हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तीन में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवा दी। एससी-एसटी एक्ट के चलते सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को मध्य प्रदेश में हुआ। एमपी की राज्य की 230 विधानसभा सीटों में सवर्ण-ओबीसी के सीधे प्रभाव वाली 148 सीटें हैं। 2013 में बीजेपी ने इन 148 में से 102 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2018 में इन सीटों पर बीजेपी को काफी नुकसान हो गया। ऐसे में सवर्ण वोटर को मनाने के लिए कदम उठाना बीजेपी के लिए बेहद जरूरी हो गया था।
बीजेपी के 43.3 प्रतिशत सांसद अपर कास्ट से आते हैं
आंकड़ों की बात करें तो देश की करीब 125 लोकसभा सीटों पर सवर्ण वोटर सबसे बड़ा फैक्टर है। 2007 में सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वे के अनुसार, सवर्णों की संख्या 31% है। सवर्णों की कुल आबादी में करीब 33 प्रतिशत से ज्यादा गरीब हैं। 2014 में बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की। इनमें 122 सांसद अपर कास्ट के हैं। मतलब बीजेपी के कुल सांसदों में 43.3 प्रतिशत अपर कास्ट से आते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बीजेपी 10 सांसदों में से चार अपर कास्ट के हैं।
सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत कोटा के पीछे इस रिपोर्ट को बनाया गया आधार
इकनॉमिकली बैकवर्ड क्लासेज के लिए गठित कमीशन ने 22 जुलाई 2010 को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक को रिपोर्ट सौंपी थी। कमीशन ने मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसआर सिन्हो की अध्यक्षता में यह रिपोर्ट तैयार की। इस कमीशन का गठन 2006 में किया गया था। सोमवार को मोदी सरकार ने जब सवर्णों को आरक्षण के मुद्दे पर कैबिनेट की मीटिंग बुलाई, तब एसआर सिन्हो कमीशन की रिपोर्ट को आधार बनाकर फैसला लिया। कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, अपर कास्ट में 35.3 प्रतिशत आबादी के पास कोई जमीन नहीं है। कमीशन की रिपोर्ट में 2004-05 NSSO सर्वे और 2001 की जनगणना के आधार पर 18.2 प्रतिशत अपर कास्ट के लोगों को गरीबी रेखा के नीचे बताया था। उस वक्त गरीबी रेखा के नीचे अपर कास्ट के लोगों की संख्या 5.85 करोड़ बताई गई थी।