जब संपादक ने नहीं छापी अटलजी की कविता तो उन्होंने ऐसी लिखी चिट्ठी
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नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले ही आज सदा के लिए मौन हो गए हों लेकिन उनके शब्दों की गूंज हमेशा लोगों के कानों में गूंजती रहेगी। उनके विचार, उनके शब्द, उनकी बातें और उनका व्यवहार सब-कुछ अनमोल और अनोखा था। उनके जीवन से जुड़ा हर किस्सा उनकी सादगी,उनकी सच्चाई और उनकी शराफत का नमूना पेश करता है। ऐसा ही एक किस्सा है, उनके और प्रतिष्ठित हिंदी प्रकाशन 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' के मशहूर संपादक और लेखक मनोहर श्याम जोशी के बीच का पत्र-संचार।
अटल बिहारी ने मनोहर श्याम जोशी को लिखी चिट्ठी
बात 1977 की है, तब अटल बिहारी वाजपेयी, भारत सरकार में विदेश मंत्री थे। दरअसल कवि हृदय अटल बिहारी ने अपनी एक कविता हिंदुस्तान में छपने के लिए भेजी थी, लेकिन लंबे इंतजार के बाद, जब उनकी वो कविता अखबार में नहीं छपी तो उन्होंने मनोहर श्याम जोशी, जो कि उनसे 9 बरस छोटे थे, को एक पत्र लिखा, जो कि कुछ इस प्रकार था।
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प्रिय संपादक जी, जयराम जी की…
समाचार
यह
है
कि
कुछ
दिन
पहले
मैंने
एक
अदद
गीत
आपकी
सेवा
में
रवाना
किया
था।
पता
नहीं
आपको
मिला
या
नहीं...नीका
लगे
तो
छाप
लें
नहीं
तो
रद्दी
की
टोकरी
में
फेंक
दें।
इस
सम्बंध
में
एक
कुंडली
लिखी
है..
कैदी
कवि
लटके
हुए,
संपादक
की
मौज,
कविता
'हिंदुस्तान'
में,
मन
है
कांजी
हौज,
मन
है
कांजी
हौज,
सब्र
की
सीमा
टूटी,
तीखी
हुई
छपास,
करे
क्या
टूटी-फूटी,
कह
क़ैदी
कविराय,
कठिन
कविता
कर
पाना,
लेकिन
उससे
कठिन,
कहीं
कविता
छपवाना!
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इसके बाद जोशीजी ने भी एक जवाबी चिट्ठी भेजी
आदरणीय अटलजी महाराज,
आपकी शिकायती चिट्ठी मिली, इससे पहले कोई एक सज्जन टाइप की हुई एक कविता दस्ती दे गए थे कि अटलजी की है। न कोई खत, न कहीं दस्तखत...आपके पत्र से स्थिति स्पष्ट हुई और संबद्ध कविता पृष्ठ 15 पर प्रकाशित हुई।आपने एक कुंडली कही तो हमारा भी कवित्व जागा -
कह
जोशी
कविराय
सुनो
जी
अटल
बिहारी,
बिना
पत्र
के
कविवर,
कविता
मिली
तिहारी,
कविता
मिली
तिहारी
साइन
किंतु
न
पाया,
हमें
लगा
चमचा
कोई,
ख़ुद
ही
लिख
लाया,
कविता
छपे
आपकी
यह
तो
बड़ा
सरल
है,
टाले
से
कब
टले,
नाम
जब
स्वयं
अटल
है।
सही मायने में भारत रत्न थे अटल जी
इस पत्राचार से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अटल का हर आचार-विचार उन्हें दूसरों से अलग और महान बनाता है। संयम, शिष्टाचार और शब्दों के जादूगर अटल बिहारी वाकई में शब्दकोश का वटवृक्ष थे और हर मायने में इस देश के सही 'भारत रत्न' थे।
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