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AMU : एक समलैंगिक प्रोफेसर की मौत का रहस्य आज भी नहीं सुलझा

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AMU : एक समलैंगिक प्रोफेसर की मौत का रहस्य आज भी नहीं सुलझा

Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एस आर सीरस की मौत सोशल और पुलिस सिस्टम पर बहुत बड़ा सवाल है। वे समलैंगिक थे। मर्यादा, सामाजिक सोच और कानून के अंतरसंघर्ष में उनकी जिंदगी का अंत हो गया। वे नैतिक थे या अनैतिक थे, इस पर तो बहस हुई। लेकिन वे इंसान भी थे, इस पर सोचने की जहमत किसी ने नहीं उठायी। उनकी मौत की वजह शर्मिंदगी थी या साजिश, इसका भी पता नहीं चला। इस मामले में अलीगढ़ विश्वविद्यालय के मुलाजिमों और तथाकथित पत्रकरों पर मामला भी दर्ज हुआ था। लेकिन सबूत ना मिलने के आधार पर केस रफा दफा हो गया। डॉ. सीरस जब जिंदा थे तब उन्होंने इस मामले में साजिश का आरोप लगाया था। लेकिन पुलिस इस साजिश का पता नहीं लगा सकी। इस पूरे प्रकरण में एएमयू प्रशासन की भूमिका बेहद अमानवीय रही। समलौंगिकता को कानूनी मान्यता 2018 में मिली। अगर ये कानून 2010 में बना होता तो शायद डॉ. सीरस की मौत नहीं हुई होती। इस विषय पर हंसल मेहता ने मनोज वाजपेयी को लेकर फिल्म अलीगढ़ बनायी थी। लेकिन डॉ. सीरस के इंसाफ का सवाल वक्त की खूंटी पर आज भी टंगा हुआ है।

मर्यादा बनाम निजता

मर्यादा बनाम निजता

डॉ. एस आर सीरस अलीगढ़ विश्ववविद्यालय में मराठी के प्रोफेसर थे। वे कवि थे, लेखक थे और मनोविज्ञान के जानकार थे। महाराष्ट्र साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत थे। लेकिन समलैंगिक भी थे। समाज की नजर में समलैंगिकता का मतलब पाप। वे दो दशक तक एएमयू में प्रोफेसर रहे। किसी को इस बात की जानकारी नहीं थी। चूंकि दुनिया की नजर में यह पाप थ इसलिए उन्होंने ये बात छिपाये रखी। लेकिन उनकी जिंदगी को जिस तरह बेपर्दा किया गया वह बहुत ही घिनौना था। कहा जाता है कि इस साजिश में विश्ववविद्यालय के लोग भी शामिल थे। उन्होंने आरोप लगया था, जब से वे आधुनिक भारतीय भाषाएं विभाग के अध्यक्ष बने थे, विभाग के ही कुछ लोग उनके खिलाफ हो गये थे। आरोप लगा था कि एएमयू के कुछ लोगों ने प्रो. सीरस के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन प्लांट किया था।

एक प्रोफेसर, एक रिक्शावाला

एक प्रोफेसर, एक रिक्शावाला

महाराष्ट्र के रहने वाले प्रोफेसर एसआर सीरस अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मराठी पढ़ाते थे। यूनिवर्सिटी कैंपस में ही उन्हें क्वार्टर मिला हुआ था। अकेले रहते थे। पत्नी से बहुत पहले अलगाव हो चुका था। उनका किसी से मिलना जुलना नहीं होता था। बहुत शांत और अपने में सीमित रहते थे। एक रिक्शावाला था जो कैंपस में छात्र और शिक्षकों को यहां-वहां पहुंचा कर रोजी-रोटी कमाता था। (उसकी पहचान छिपाने के लिए कोई उसे अब्दुल कहता कोई उसे इरफान कहता।) प्रोफेसर सीरस कैंपस की मेडिकल कालोनी में रहते थे जहां से आर्ट्स फैकल्टी जाने में करीब दस मिनट लगता था। 2009 की बात है। एक दिन जब प्रोफेसर सीरस अपने विभाग (आर्ट्स फैकल्टी) से घर जाने के लिए बाहर निकले तो सड़क पर रिक्शा लिये इरफान मिल गया। उस समय प्रोफेसर की उम्र 63 साल थी। इरफान करीब 29 साल का था। प्रोफेसर ने इरफान को मेडिकल कालोनी चलने के लिए कहा।

एक अस्वभाविक रिश्ता

एक अस्वभाविक रिश्ता

इरफान के मुताबिक, क्वार्टर के बाहर रिक्शा रुका। प्रोफेसर घर के अंदर चले गये। प्रोफेसर ने आवाज लगा कर इरफान को पैसा लेने के लिए घर के अंदर बुलाया। इरफान ने तब बताया था कि जब वह घर के अंदर गया तो पहली बार दोनों के बीच संबंध बना। इसके बाद धीरे-धीरे प्रोफेसर सीरस और इरफान के बीच संबंध गहरा होता गया। इरफान के मुताबिक, प्रोफेसर ने उसकी बहन की शादी कराने का वायदा किया था। उसकी देखभाल का भरोसा दिलाया था। इस अस्वभाविक संबंध में लालच का भी एक पुट था। कुछ समय तक यह समलैंगिक रिश्ता छिपा रहा। लेकिन लगता है कि कुछ लोगों को इसकी भनक लग गयी थी। हालांकि प्रोफेसर और इरफान यही समझते रहे कि वे दुनिया की नजरों से महफूज हैं। लेकिन एक दिन दोनों पर पहाड़ टूट पड़ा।

बेपर्दा हुई जिंदगी

बेपर्दा हुई जिंदगी

8 फरवरी 2010 को इरफान, प्रोफेसर के क्वार्टर में मौजूद था। दोनों अंतरंग क्षणों में थे। तभी अचानक कमरे का दरवाजा तेजी से खुला और कैमरा लिये तीन लोग दाखिल हो गये। उन्होंने खुद को पत्रकार बताया। प्रोफेसर और इरफान के संबंध को कैमरे में शूट कर लिया गया। इसके बाद कथित पत्रकार प्रोफेसर से बदसलूकी करने लगे। इरफान झटके से बाहर निकल गया। प्रोफेसर यह सब देख के घबरा गये। उन्होंने कहा, आप लोग जबरन मेरे कमरे में दाखिल कैसे हो गये, मेरी निजता को भंग करने का किसने अधिकार दिया ? लेकिन कथित पत्रकार किसी को फोन कर बताने लगे कि उन्होंने प्रोफेसर को रंगे हाथ पकड़ा लिया है। बाद में प्रोफेसर ने कोर्ट में आरोप लगाया था कि कथित पत्रकारों ने उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी। लेकिन वे झुकने के लिए तैयार नहीं थे।

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अपमान की आग

अपमान की आग

मीडिया में इस घटना की सीडी दिखायी जाने लगी। अगले दिन अखबारों में खबर भी छप गयी। ये सीडी अलीगढ़ विश्वविद्यालय प्रशासन के पास भी पहुंच गयी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रोफेसर को सस्पेंड कर दिया और क्वार्टर खाली करने का फरमान जारी कर दिया। उस समय ये सवाल उठा था कि जब प्रोफेसर और इरफान कमरे में अंतरंग क्षणों में थे तब दरवाजा कैसे खुला रह गया था ? क्या ऐसी स्थिति में कोई दरवाजा खोल कर कर रखता है कि कोई आये और उनकी वीडियो बना ले ? अगर दरवाजा बंद रहता तो कथित पत्रकार कैमरा लेकर दाखिल नहीं हो पाते। क्या प्रोफेसर के घर की रेकी हो रही थी कि जैसे ही इरफान आये कैमरा वाले लोग वहां पहुंच जाएं ? इन सवालों को लेकर इरफान पर भी शक जाहिर किया गया था। अगर कमरे का दरवाजा खुला रह गया तो इरफान ही वह वाहिद शख्स था जिस पर शक किया जा सकता था। हो सकता है कि उसने ऐसा न किया हो। लेकिन कोई तो था जिसने इस पूरे मामले में जबर्दस्त जाल बिछाया था। बाद में इस बात की अफवाह उड़ी थी कि यूनिवर्सिटी के कुछ लोगों ने प्रोफेसर को बदनाम करने के लिए वीडियो बनाने वालों से बीस हजार रुपये में डील की थी। लेकिन पुलिस की जांच में कुछ भी सामने नहीं आया था। इस घटना के बाद रिक्शावाले की जिंदगी भी नर्क बन गयी।

क्या किया एएमयू प्रशासन ने ?

क्या किया एएमयू प्रशासन ने ?

सस्पेंड होने के बाद प्रोफेसर को क्वार्टर खाली करना पड़ा। अब समस्या आ गयी कि वे रहे कहां। अलीगढ़े के लोग उन्हें पापी और अनैतिक समझ कर घर देने से मना कर देते। अंत में एक वकील उन्हें किराया पर कमरा देने के लिए राजी हुए। प्रोफेसर ने अपने साथ हुए अन्याय की पुलिस में शिकायत की। लेकिन पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया। तब उन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने फरियाद की। कोर्ट के आदेश पर पुलिस छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए बाध्य हुई जिसमें दो कथित पत्रकार, यूनिवर्सिटी के तत्कालीन प्रोक्टर, कुलपति के मीडिया सलाहकार और पीआरओ शामिल थे। प्रोफेसर ने अपने निलंबन के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की।

प्रोफेसर कोर्ट में जीते लेकिन जिंदगी में हारे

प्रोफेसर कोर्ट में जीते लेकिन जिंदगी में हारे

कोर्ट ने सुनवाई के बाद 5 अप्रैल को एएमयू प्रशासन को आदेश दिया कि वह प्रोफेसर सीरस को तत्काल पद पर बहाल करे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उन्हें केवल इस आधार पर सस्पेंड नहीं किया जा सकता कि वे समलैंगिक हैं। इस फैसले के दो दिन बाद वे अपने कमरे में मृत पाये गये थे। कहा जाता है कि कोर्ट का फैसला आने के बाद वे यूनिवर्सिटी में अपना पद वापस पाने के लिए गये थे। लेकिन उन्हें यह कह कर लौटा दिया गया था कि अभी कोर्ट के आदेश का आधिकारिक पत्र नहीं मिला है। प्रोफेसर सीरस की मौत को पुलिस ने खुदकुशी का मामला माना था। हालांकि शुरुआती जांच में उनके शरीर में जहर होने की बात भी कही गयी थी। लेकिन पुलिस की जांच में किसी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला और इस केस की फइल बंद कर दी गयी। प्रोफेसर सीरस की मौत आज भी एक रहस्य है।

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English summary
AMU Aligarh Muslim University: Mystery of the death of a gay professor has still not been solved
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