आपबीती: हर तरफ चीख-पुकार, चीथड़ों में अपनों को तलाश रहे थे लोग
अमृतसर। विजयदशमी के दिन रावण दहन देखने पहुंचे उन लोगों को क्या पता था कि उनपर मुसीबतों का ऐसा पहाड़ टूट पड़ेगा जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। इस दिल दहला देने वाले हादसे के बाद जो तस्वीरें सामने आईं, उसे देख किसी के भी रोंगटे खड़े जाएंगे। अमृतसर रेल हादसे में अब तक 61 लोगों की जान चली गई है जबकि 70 से अधिक लोग घायल हैं, उनमें से 40 लोगों की हालत बेहद ही नाजुक है और वे जिंदगी और मौत से अस्पताल में जूझ रहे हैं। घटनास्थल पर लोग बदहवास थे, अपने प्रियजनों को ढूंढ रहे थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेल की पटरी पर और आसपास पड़े शरीर के टुकड़ों के बीच अपनों की पहचान करें, चारों तरफ चीख-पुकार, मातम और गम में डूबे लोग..
चीथड़ों के बीच अपनों को ढूंढती रही गम में डूबी आंखें
लोग लाश से कपड़ों के टुकड़े उठाकर अपने परिजनों की पहचान करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बुरी तरह से कुचले जा चुके शरीर को परिजन तक पहचान पाने में खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। पटरी के पास किसी का पैर पड़ा था तो हाथ कहीं दूर जा गिरा था। वे लोग रात के अंधेरे में कुछ ढूंढ नहीं पा रहे थे। जिस तेज रफ्तार से डीएमयू ने लोगों को रौंदा था, उसके बाद किसी की पहचान करना बहुत ही मुश्किल काम था।
रोती-बिलखती मां रातभर ढूंढती रही अपने बेटे को
घटनास्थल पर एक मां की हालत देखकर हर कोई स्तब्ध था। मां बेचारी अपने जिगर के टुकड़े को ढूंढने की कोशिश कर रही थी, कभी वो अपने बेटे की बात करते-करते हंस पड़ती तो अगले ही पल आंखों से आंसुओं की धार फूट पड़ती। मां कह रही थी, 'गुल्लू घर बोल कर गया कि ट्रैक के पास रुक कर जलता रावण देखेगा।' रोते-बिलखते बेचारी मां अपने गुल्लू की तलाश कर रही थी। स्थानीय लोगों का कहना था कि गुल्लू का देर रात तक पता नहीं चल पाया था।
तरसेम सिंह ने अपने पोते को गंवा दिया
इस भीषण रेल हादसे में तरसेम सिंह ने अपना 15 साल का पोता गंवा दिया। तरसेम सिंह को यकीन नहीं हो रहा था कि उनका पोता अब लौटकर नहीं आएगा। वे कहते हैं कि पोता सुबह से जिद कर रहा था कि वो दशहरा देखने जाएगा। लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। पर शाम को चुपके से वो रावण दहन देखने निकल गया। तरसेम बताते हैं कि जब शाम को पता चला कि रेलवे ट्रैक पर ट्रेन के नीचे कई लोग दब गए हैं, वो डर गए। फफकते हुए उन्होंने बताया कि ट्रैक पर उनके पोते की लाश मिली। उन्हें अफसोस इस बात का था कि काश, वे पोते को घर से निकलने से रोक पाए होते तो आज वो उनके बीच होता।