कल जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलेंगे अमित शाह तो इन 4 मुद्दों पर जरूर होगी बात?
नई दिल्लीः बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच बुधवार शाम को अहम बैठक होने जा रही है। 'बीजेपी संपर्क फॉर समर्थन' अभियान के तहत होने जा रही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और अमित शाह की मुलाकात ने सियासी हलचल तेज कर दी है। बीजेपी से बगावत कर 2019 में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी शिवसेना क्या एनडीए के साथ जाएगी? उपचुनावों में लगातार हार के बाद सहयोगियों को मनाने में जुटे बीजेपी अध्यक्ष क्या पुराने दोस्त शिवसेना को मनाने में कामयाब होंगे? या अमित शाह मोदी सरकार का चार साल का रिपोर्ट कार्ड उद्धव ठाकरे को सौंपकर खाली हाथ लौट आएंगे? बिहार में नीतीश कुमार को बड़ा भाई स्वीकार करने वाली बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना को आखिर कौन सा भाई बनाएगी, छोटा भाई या बड़ा भाई? इनके सबके बीच अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच एक और अहम मुद्दे पर चर्चा हो सकती है और वह है मोदी सरकार का चौथा और अंतिम कैबिनेट विस्तार। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत से कुछ कदम दूर रहने के बाद बीजेपी में अंतिम केंद्रीय कैबिनेट विस्तार की तैयारी में है। पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस कैबिनेट विस्तार के जरिए एक तीर से दो निशाने साध सकते हैं। यह भी पढ़ें- 90 साल के लालकृष्ण आडवाणी को 2019 लोकसभा चुनाव में क्यों लड़वाना चाहते हैं मोदी?
महाराष्ट्र में कौन बनेगा बिग ब्रदर? बीजेपी या शिवसेना
बीजेपी और शिवसेना का रिश्ता बेहद पुराना है। बाला साहेब ठाकरे जब तक जीवित थे, तब तक कोई सोच भी नहीं सकता था कि शिवसेना और बीजेपी इस तरह एक-दूसरे आमने-सामने आ जाएंगे। लेकिन बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना की जमीन खोई और उसी पार्टी के हाथों खोई, जिसके साथ बरसों से गठबंधन चला आ रहा था। पहले लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने शिवसेना से ज्यादा सीटें जीतीं और उसके बाद विधानसभा चुनाव में शिवसेना पूरी तरह पिछड़ गई। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 23 सीटें जीतीं तो शिवसेना 18 पर ही जीत दर्ज कर सकी। इसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शिवसेना ने बिग ब्रदर का रुतबा पूरी तरह गंवा दिया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी 260 सीटों पर चुनाव लड़ी और 122 सीटें जीती, जबकि शिवसेना 282 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ 63 सीटें ही जीत सकी।
इस दांव से शिवसेना को लुभाएंगे अमित शाह
केंद्र में बीजेपी का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना और महाराष्ट्र में करीब-करीब बहुमत के पास पहुंच जाना। ये दो बातें शिवसेना को हजम नहीं हुईं तो दूसरी ओर बीजेपी की शिवसेना पर कोई निर्भरता नहीं बची। ऐसे में दोनों दलों के बीच टकराव स्वाभाविक था, जो कि हुआ और अब भी हो रहा है। लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव बीजेपी और शिवसेना दोनों के लिए आंखें खोलने वाले रहे। पहले महाराष्ट्र की ही दो सीटों- पालघर और भंडारा गोंदिया में हुए उपचुनाव की बात करते हैं। पालघर में शिवसेना और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला था, लेकिन जीत बीजेपी के हाथ लगी। दूसरी ओर भंडारा गोंदिया में एनसीपी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। यहां बीजेपी के हेमंत पटले को 30,000 से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी-शिवसेना ने अगर यह सीट साथ मिलकर लड़ी होती तो एनसीपी उम्मीदवार की हार तय थी। दो सीटों के दो नतीजे बताते हैं कि इस समय दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है।
बीजेपी-शिवसेना के बीच यह है असल झगड़े की वजह
बात नवंबर 2014 की है, यानी केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के कुछ समय बाद की। सुरेश प्रभु ने शिवसेना छोड़कर बीजेपी का दामन थामा और नरेंद्र मोदी ने उन्हें रेल मंत्री जैसा अहम पद सौंपा था। शिवसेना के साथ बीजेपी के झगड़े की शुरुआत यहीं से हो गई थी। विरोधस्वरूप शिवसेना ने कैबिनेट विस्तार तक का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद से दोनों दलों के बीच जो रिश्ते उलझने हुए वो अब तक नहीं सुधर पाए हैं।
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