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अमित शाह ने माना सुशांत सिंह राजपूत होंगे बिहार चुनाव में मुद्दा

अमित शाह ने माना सुशांत सिंह राजपूत होंगे बिहार चुनाव में मुद्दा

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नई दिल्ली: सुशांत सिंह राजपूत बिहार चुनाव में मुद्दा हैं। यह बात शीर्ष स्तर पर बीजेपी ने मान ली है। अमित शाह ने कहा है कि सुशांत सिंह चुनावी मुद्दा इसलिए हैं क्योंकि समय रहते सीबीआई जांच की मांग नहीं मानी गयी। इससे पहले 5 सितंबर को ही बीजेपी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ में एक पोस्टर जारी किया था जिसमें कहा गया था- ना भूले हैं ना भूलने देंगे। अमित शाह का बयान सीबीआई के उस बयान के दिन बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि सुशांत सिंह राजपूत की जांच अभी पूरी नहीं हुई है।

amit shah

सीबीआई की जांच के दौरान ही एम्स की वह रिपोर्ट आयी थी जिसमें सुशांत सिंह की मौत के मामले में किसी किस्म के गलत होने की आशंका को खारिज किया गया था। ऐसे में सीबीआई सुशांत सिंह की मौत के मामले में आत्महत्या की थ्योरी को किस आधार पर बदलेगी, इस पर सबकी नजर है। ऐसे में एक बात तय है कि 7 नवंबर से पहले यानी
अंतिम चरण के मतदान पूरा होने तक सुशांत सिंह राजपूत का मसला जिन्दा रहेगा।

किसे जरूरत है सुशांत सिंह को मुद्दा बनाने की?

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सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे को जिन्दा रखने की ज़रूरत किसे है? निश्चित रूप से गैर एनडीए यानी महागठबंधन को इसकी जरूरत नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि महाराष्ट्र में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और बीजेपी विरोधी दलों की सरकार है। सुशांत केस को बिहार का सवाल बनाकर पेश करने की सियासत के पीछे गैर बीजेपी दलों को दोष देना और उसे चुनाव में भुनाना रहा है। मगर, सवाल यह है कि सुशांत केस में डीजीपी रहते हुए गुप्तेश्वर पांडे ने जिस तरह से सुशांत को इंसाफ दिलाने का बीड़ा उठाया था और राजनीति में कदम रखा, उसे देखते हुए जेडीयू ने गुप्तेश्वर पांडे को चुनाव मैदान में क्यों नहीं उतारा? जबकि, बक्सर से चुनाव लड़ने की बात खुद गुप्तेश्वर पांडे कर चुके थे।

एनडीए के भीतर भी अलग-अलग सियासत है। बीजेपी सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे को सियासी मुद्दा बनाना चाहती है क्योंकि ऐसा करने से उसे महाराष्ट्र सरकार पर भी हमला करने का उसे अवसर मिलता है और सवर्णों की सियासत भी सध जाती है। बिहार में खुलकर सवर्ण सियासत अगर कोई दल कर रहा है तो वह बीजेपी ही है। पहले चरण की

27 में से 16 सीटें और दूसरे चरण की 46 में से 22 सीटें यानी दोनों चरणों में 73 सीटों में 38 सीटों पर बीजेपी ने सवर्ण उम्मीदवार दिए हैं। वह खुद को सवर्ण हितैषी के तौर पर पेश कर रही है। बिहार में सवर्णों का हिस्सा 18 फीसदी है।

सवर्ण और बनिया मिलकर 24 फीसदी से ज्यादा का वोट बैंक हो जाता है। बीजेपी को फोकस इन्हीं जातियों पर है। वहीं, एनडीए में जेडीयू का फोकस पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलितों के वोट हैं। सवर्ण अगर जेडीयू के फोकस में होते तो निश्चित रूप से गुप्तेश्वर पांडे बेटिकट नहीं रहते।

amit shah

अमित शाह ने बात पते की कही, पर जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते?

अमित शाह निश्चित रूप से सही कह रहे हैं कि सुशांत केस की जांच ने सियासी रंग तभी पकड़ा जब यह मामला सीबीआई की जांच की मांग में तब्दील हुआ। जीरो एफआईआर दर्ज न कर बिहार पुलिस इस मामले की समांतर जांच करने को महाराष्ट्र भेज दी गयी। वहां उन्हें क्वारंटीन कर लिया गया। बिहार बनाम महाराष्ट्र पुलिस की स्थिति बनने के बाद सुशांत सिंह के पिता की ओर से सीबीआई की जांच का आग्रह और फिर घंटे भर में ही सीबीआई जांच की सिफारिश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कर दी थी। निश्चित रूप से इस मामले में नीतीश सरकार ने वही किया जो केंद्र सरकार चाहती थी। मगर, इन तमाम घटनाओं की जिम्मेदारी लेते अमित शाह नहीं दिखते। वे इसके लिए इशारों-इशारों में महाराष्ट्र सरकार और विपक्ष को जिम्मेदार बताते हैं।

सुशांत सिंह केस से ही बॉलीवुड का ड्रग्स एंगल निकला। इस बहाने बॉलीवुड भी दो भागों में बंट गया। वह अलग सियासत है जो जारी है। मगर, बिहार में सुशांत सिंह केस जिन्दा रहे इसके लिए सीबीआई जांच का जारी रहना और इस संभावना का जिन्दा रहना जरूरी है कि सुशांति सिंह की मौत स्वाभाविक नहीं थी। वह आत्महत्या न होकर
हत्या थी या फिर सुशांत सिंह किसी की साजिश का शिकार हो गये। और, कुछ भी नहीं तो कम से कम ये कि सुशांत सिंह की मौत के मामले में जानबूझकर हीला-हवाली की गयी और कइयों को बचाने का प्रयास किया गया। इनमें से एक भी बात जिन्दा रही तो बिहार चुनाव में सवर्ण कार्ड खेलने की स्थिति बनी रहेगी।

sushant singh rajput

हाथरस केस को भी होगी भुनाने की कोशिश?

सीबीआई जांच के बहाने हाथरस केस में भी बीजेपी ने सवर्ण कार्ड खेला है। हाथरस केस में अभियुक्त सवर्ण हैं और पीड़ित परिवार दलित। गैंगरेप और मर्डर के इस मामले में पीड़ित परिवार को ही झूठ बोलने, पीड़ितों के पक्ष में खड़ा होने वालों को दंगों की साजिश करने वाला करार देने और विपक्ष पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए योगी सरकार ने इस जांच को आगे बढ़ाया है। पीड़ित परिवार का ही नार्को टेस्ट कराने का फैसला हो या मृतका के मृत्यु पूर्व बयान पर शक जताने की बात- यह योगी सरकार ने किया है। अब सीबीआई गैंगरेप और मर्डर के मसले में भी पूरी जांच का दायरा हाथरस गैंगरेप न होकर गैंगरेप के बाद की घटनाएं हो गयी हैं।

हालांकि यह कहना एकतरफा होगा कि केवल बीजेपी इस मामले का राजनीतिक फायदा उठाने जा रही है। कांग्रेस भी हाथरस केस का इस्तेमाल दलितों को लुभाने के लिए बिहार चुनाव में करने जा रही है। यह कोशिश जारी है। सुशांत सिंह मर्डर केस का मुद्दा बिहार में चुनाव का मुद्दा जरूर बना रहेगा। इस पर सियासत भी होती रहेगी। मगर, बिहार चुनाव के बाद सुशांत सिंह को इंसाफ दिलाने वाली ब्रिगेड अपनी मुहिम पर बने रहेंगे या नहीं, इस पर खामोशी है।

काश! अमित शाह ने यह भी कहा होता कि चाहे चुनाव हो या न हो, सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे को वे अंजाम तक पहुंचा कर रहेंगे और सुशांत सिंह के पिता और परिवार को इंसाफ दिलाकर रहेंगे। सुशांत सिंह राजपूत केस का चुनावी मुद्दा होना अगर इस मुद्दे के जिन्दा रहने तक सीमित है तो यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।

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English summary
BJP Top leader and home minister Amit Shah says sushant singh rajput to be an issue in Bihar assembly elections 2020
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