अमित शाह की वर्चुअल रैली, पुरानी रैलियों से कितनी अलग
ममता बनर्जी का आरोप है कि यह बेहद ख़र्चीला तरीक़ा है और बीजेपी जैसी पैसे वाली पार्टी ही इसका बोझ उठा सकती है.
बिहार और ओडिशा के बाद, बारी थी पश्चिम बंगाल की. रविवार से शुरू हुआ बीजेपी की वर्चुअल रैली का सिलसिला मंगलवार को पश्चिम बंगाल पहुंचा.
बंगाल बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी की प्रदेश शाखा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की पहली वर्चुअल रैली के लिए बीते कई दिनों से बड़े पैमाने पर प्रचार कर रही थी. बिहार की रैली के बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही आम लोगों में भी उत्सुकता बढ़ गई थी. सबकी ज़ुबान पर कई सवाल थे. मसलन आख़िर यह वर्चुअल रैली होती क्या है और इसका आयोजन कैसे किया जाता है? असल रैली और इसमें क्या फ़र्क़ है ?
वर्चुअल रैली का अनुभव
इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए ही दक्षिण कोलकाता के एक बूथ में जुटे बीजेपी कार्यकर्ता सुरेश कुमार मंडल कहते हैं, "यह अनुभव टीवी पर किसी नेता का भाषण सुनने की तरह ही था. लेकिन शाह जी ने इसके ज़रिए अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों का प्रचार शुरू कर दिया है."
वह कहते हैं कि वर्चुअल रैली कभी असली रैली की जगह नहीं ले सकती. स्टेडियम या किसी बड़े मैदान में होने वाली रैली में शामिल होने का जो रोमांच होता है वह इसमें नदारद था.
कोरोना की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग के नियम ने भी इसका मज़ा किरकिरा कर दिया. दक्षिण 24-परगना के बारुईपुर के रहने वाले ज्ञानेश्वर दास ने तो अपने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए पार्टी के फ़ेसबुक पेज पर ही शाह का भाषण सुना. वह कहते हैं, "शाह का भाषण तो अच्छा था. लेकिन इसमें असली रैली वाला माहौल नहीं था."
यह दोनों कार्यकर्ता चाहे कुछ भी कहें, प्रदेश बीजेपी के नेता इस वर्चुअल रैली से गदगद हैं.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "ममता बनर्जी सरकार से लोगों का भरोसा उठ गया है और यह सरकार सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुकी है. इस रैली के ज़रिए बंगाल में बदलाव का अभियान शुरू हो गया है." उनका दावा है कि करोड़ों लोगों ने शाह के भाषण को लाइव सुना है.
क्या है वर्चुअल रैली?
आख़िर वर्चुअल रैली क्या है और इसके आयोजन की ज़रूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब है कोरोना महामारी के दौर में तकनीक के इस्तेमाल से किसी नेता का भाषण लाइव प्रसारण विभिन्न चैनलों और सोशल मीडिया मंच मसलन फ़ेसबुक पेज, यू ट्यूब के ज़रिए लोगों तक पहुंचाना ही वर्चुअल रैली है.
इसके ज़रिए आम रैली के दौरान जुटने वाली भीड़ से बचना संभव है. आम रैलियों की तरह इनको टीवी पर भी प्रसारित किया जा सकता है.
शाह की रैली का भी कई स्थानीय चैनलों ने सीधा प्रसारण किया. वैसे ऐसे आयोजन का काफ़ी ख़र्चीला माना जाता है. अमित शाह ने अपने भाषण में दावा किया कि इस रैली के लिए राज्य के विभिन्न स्थानों पर 70 हज़ार एलईडी स्क्रीन लगाए गए हैं.
वर्चुअल रैली में ख़र्च
तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "यह बेहद ख़र्चीला तरीक़ा है और बीजेपी जैसी पैसे वाली पार्टी ही इसका बोझ उठा सकती है. एक एलईडी स्क्रीन लगाने में लगभग 70 हज़ार रुपए ख़र्च होते हैं." तृणमूल के अलावा सीपीएम और कांग्रेस ने भी शाह की इस रैली पर भारी-भरकम ख़र्च का आरोप लगाया है."
लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "ऐसा कुछ नहीं है. हमने एलईडी स्क्रीन के अलावा स्मार्टफ़ोन, फ़ेसबुक लाइव और यू ट्यूब के ज़रिए भी इसका लाइव प्रसारण किया. पाँच लाख से ज़्यादा लोग सपरिवार फ़ोन के ज़रिए इस वर्चुअल रैली में शामिल हुए. लगभग 25 हज़ार व्हाट्सएप समूहों के ज़रिए भी रैली का प्रसारण किया गया."
उनकी दलील थी कि विपक्ष रैली के ख़र्च को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है. सोशल मीडिया पर इसका ख़र्च कम है. पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं के पास स्मार्टफ़ोन नहीं था वे एक ख़ास नंबर डायल कर भाषण का ऑडियो सुन सकते थे. प्रदेश मुख्यालय में एक बड़ा मंच बना था और वहां कई स्क्रीन लगाए गए थे जहां से लोग शाह का भाषण सुन सकते थे. घोष समेत किसी भी नेता ने एलईडी स्कीन की तादाद या इस रैली पर होने वाले ख़र्च के बारे में यह कहते हुए कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि यह मामला केंद्रीय नेतृत्व के ज़िम्मे है.
शाह ने किया ममता बनर्जी सरकार पर हमला
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने 50 मिनट के भाषण की शुरुआत में तकनीक और वर्चुअल रैली की सुविधा का ज़िक्र करते हुए कहा कि बंगाल के राजनीतिक इतिहास में ऐसी पहली रैली के ज़रिए हमने यहां सत्ता में बदलाव की मुहिम शुरू कर दी है. उन्होंने आम लोगों से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मौक़ा देने की अपील की.
शाह ने कहा, "आपने लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस को काफ़ी मौक़े दिए हैं. अब एक बार बीजेपी को मौक़ा दें. हम भ्रष्टाचार-मुक्त सोनार बांग्ला का निर्माण कर देंगे. देश के जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है वे विकास की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं."
भ्रष्टाचार, हिंसा, सिंडीकेट और पिछड़ेपन के लिए ममता बनर्जी सरकार पर हमला करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, "हम छह साल के मोदी सरकार के कामकाज का हिसाब लेकर आए हैं. अगर हिम्मत है ममता दीदी भी कल प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिए अपनी सरकार के दस साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा पेश करें. लेकिन उसमें हिंसा, हत्याओं और बम धमाकों का ज़िक्र नहीं होना चाहिए."
शाह ने अपने भाषण में दो मुद्दों पर ही सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया.
पहला - मोदी सरकार के छह साल के कार्यकाल और केंद्र की उपलब्धियां
दूसरा - बंगाल में कथित भ्रष्टाचार, सिंडीकेट और सत्ता परिवर्तन की ज़रूरत.
ममता पर तुष्टिकरण और ओछी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए गृह मंत्री ने कहा कि ममता दीदी उल्टे केंद्र सरकार पर राजनीति का आरोप लगाती रही हैं.
उन्होंने कहा, "राज्य सरकार कोरोना और अंफन पर भी राजनीति कर रही है. सरकार ने प्रवासी मज़दूरों की वापसी की राह में रोड़े अटका दिए हैं. प्रवासी मज़दूरों की वापसी और नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) का विरोध अगले विधानसभा चुनावों में उसे काफ़ी महंगा पड़ेगा."
शाह ने कहा कि पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य है जहां राजनीतिक हिंसा होती है. सीएए का विरोध ममता बनर्जी को बहुत महंगा पड़ेगा. अगले साल चुनावी नतीजों के बाद जनता उनको राजनीतिक शरणार्थी बना देगी.