अमित शाह किस खेल में कभी नहीं हारते
कई साल बीत चुके हैं और वो लड़का जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के दूसरे दिग्गज नेताओं के लिए पोस्टर चिपकाता था, आज खुद पार्टी का पोस्टर ब्यॉय बन चुका है.
अधिक मसालेदार पाव भाजी पसंद करने वाले अमित शाह राजनीति में कुछ कम मिले, इसके लिए तैयार नहीं होते हैं.
"मुझे वो दिन याद है जब मैं एक युवा कार्यकर्ता के रूप में नारनपुरा इलाक़े में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के लिए पोस्टर चिपकाता था. वर्षों बीत गए हैं और मैं बहुत बड़ा हो गया हूं लेकिन यादें अभी भी ताजा हैं और मुझे पता है कि मेरी यात्रा यहीं से शुरू हुई थी."
30 मार्च को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले आयोजित रोड शो में ये बातें कही थीं.
गुजरात की गांधीनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे शाह उस समय की बात कर रहे थे जब 1982 में वो एबीवीपी के युवा कार्यकर्ता थे.
कई साल बीत चुके हैं और वो लड़का जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के दूसरे दिग्गज नेताओं के लिए पोस्टर चिपकाता था, आज खुद पार्टी का पोस्टर ब्यॉय बन चुका है.
एबीवीपी से शुरू हुआ सफ़र
अमित शाह की अब तक की यात्रा नाटकीय घटनाक्रम से भरी रही है. इसकी तुलना किसी बॉलीवुड फ़िल्म के नायक के जीवन से की जा सकती है.
शाह ने अपने जीवन में हर तरह के अच्छे-बुरे वक़्त देखे हैं. एबीवीपी कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने वाले शाह आज उस मुकाम तक पहुंच गए हैं, जहां वो पार्टी के प्रदर्शन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं, चाहे पार्टी चुनाव जीते या हारे.
शाह का जन्म 22 अक्तूबर 1964 को मुंबई के एक बनिया परिवार में हुआ था. 14 वर्ष की छोटी आयु में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए थे और यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत समझी जाती है.
गांधीनगर के एक छोटे से शहर मनसा में उन्होंने यह शुरुआत 'तरुण स्वयंसेवक' के रूप में की थी. यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था.
बाद में अमित शाह अपनी कॉलेज की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद आए, जहां उन्होंने एबीवीपी की सदस्यता ली. साल 1982 में बायो-केमेस्ट्री के छात्र के रूप में अमित शाह को अहमदाबाद में छात्र संगठन एबीवीपी के सचिव की जिम्मेदारी दी गई.
बाद में उन्हें भाजपा की अहमदाबाद इकाई का सचिव बनाया गया. तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने पार्टी में प्रदेश इकाई के कई महत्वपूर्ण पदों को संभाला.
1997 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें भाजपा प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई.
हालांकि पदोन्नति का ये सिलसिला कुछ वक़्त के लिए तब थम गया जब उन्हें सोहराबुद्दीन और कौसर बी के फर्जी मुठभेड़ मामले में जेल जाना पड़ा.
राजनीतिक के पंडित इसे उनकी यात्रा का अंतिम पड़ाव मान रहे थे, लेकिन अमित शाह ने विरोधी लहरों के बीच से एक दमदार गोता लगाया और राजनीति में जबरदस्त वापसी की.
जेल से रिहा होने के बाद वो पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करने लगे और तेज़ी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए.
मोदी को सुपर स्टार बनाने वाले शाह
अमित शाह को करीब से जानने वालों का कहना है कि उन्होंने अपने पूरे दमखम के साथ गांधीनगर सीट पर काम करना शुरू किया और इससे अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेताओं को फायदा पहुंचाया.
राजनीति पर नजर रखने वालों और पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि वाजपेयी और आडवाणी की ही तरह उन्होंने नरेंद्र मोदी को राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर लाने में मदद की.
दोनों नेताओं के करीब रहने वाले भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, "उनका कहना है कि मोदी और शाह एक ऐसे बल्लेबाज़ों की जोड़ी है जो एक साथ कई शतक बनाती है."
"मोदी और शाह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. वो दशकों से एक साथ रहे हैं. वो एक जैसा सोचते हैं. वो एक परफेक्ट टीम की तरह काम करते हैं."
"वे जीवन और राजनीतिक जीवन के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हुए दिख सकते हैं, लेकिन वे दोनों एक दूसरे को पूरा करते हैं."
"शाह एक ऐसे बल्लेबाज़ हैं जो अपने बल्लेबाज़ साथी का साथ देते हैं और उन्हें ज्यादा से ज्यादा सेंचुरी स्कोर करने में मदद करते हैं."
"वो एक ऐसे बल्लेबाज़ हैं जो अपने निजी स्कोर की चिंता नहीं करते हुए अपनी टीम के लिए धमाकेदार जीत सुनिश्चित करते हैं."
2014 की जीत के लिए मोदी उन्हें "मैन ऑफ द मैच" का खिताब देते हैं.
वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि शाह एक फ़िल्म निर्देशक की तरह हैं जो कैमरे के पीछे काम करते हैं और अभिनेताओं को स्टार बनाते हैं. शाह ने कई पॉलिटिकल स्टार बनाए हैं लेकिन सुपर स्टार नरेंद्र मोदी रहे हैं.
संगठनात्मक कौशल
राजनीतिक पर नजर रखने वालों का कहना है कि शाह एक बेहतरीन मैनेजर हैं. उनका अनुशासन सेना की तरह है जो भाजपा कार्यकर्ताओं में देखने को मिलता है.
वो अपने कैडर को खुद अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं. वो दशकों से बूथ मैनेजमेंट पर जोर दे रहे हैं, जिसका परिणाम पहले गुजरात और फिर 2014 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिला है.
उनकी रणनीति और प्रशासनिक कुशलता की वजह से पार्टी ने उन्हें साल 2010 में महासचिव का पद दिया और उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा.
शाह ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनावी भाग्य को बदल दिया और पार्टी ने शानदार जीत हासिल की. 80 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में पार्टी ने 73 पर बाजी मारी.
उनके प्रभारी रहते हुए महज दो साल में पार्टी का वोट शेयर राज्य में करीब ढाई गुणा बढ़ गया. 2014 के चुनावों में शाह भाजपा के चुनावी कमेटी के सदस्य थे और उन्होंने जनसंपर्क, बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचने और नए वोटरों को जोड़ने को जिम्मेदारी दी गई थी.
परिणाम आधारित रणनीति बनाने के उनके कौशल ने 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. शाह के चुनाव पूर्व और चुनाव बाद गठबंधन बनाने के कौशल के तो सब कायल हैं.
ये भी दावा किया जाता है कि वो विपक्षी दलों के सांसदों और विधायकों को तोड़ने और अपने साथ जोड़ने में माहिर हैं. जब भी उनकी पार्टी को इसकी ज़रूरत होती है वो ये कर ही लेते हैं. वो अक्सर ऐसे प्रस्ताव देते हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता है.
बीजेपी की भीतरी ख़बर रखने वाले कहते हैं कि पार्टी ने देश के उत्तर, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों के राजनीतिक रणक्षेत्र को न सिर्फ़ जीत लिया है बल्कि इस पर अपनी महारथ भी हासिल कर ली है. हालांकि बीजेपी अभी दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में प्रभावसाली असर बनाने के लिए संघर्ष कर रही है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, "शाह दक्षिणी राज्यों में काफ़ी समय से ख़ामोशी से काम कर रहे हैं. उन्होंने दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्य में ज़मीनी स्तर पर बहुत काम किया है. ये वो राज्य है जहां अभी तक बीजेपी का कोई भविष्य दिखाई नहीं देता है. वो बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए नए राजनीतिक मोर्चे खोल रहे हैं और उन्हें यहां लड़ने के लिए तैयार कर रहे हैं. उनका काम इन आम चुनावों के नतीजों में दिख सकता है."
सिर्फ़ पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों के नेता भी अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग के कायल हैं. एक वरिष्ठ बीजेपी नेता कहते हैं, "अमित जी की तरह कोई और नेता जाति के धागों को नहीं पिरो सकता है. वो जाति की राजनीति को भीतर और बाहर दोनों तरफ़ से पूरी तरह जानते हैं. उनका अकेले का कौशल कांग्रेस के सभी रणनीतिकारों पर भारी रहता है."
आगे का रास्ता क्या है?
अगर पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजे लाती है तो सिर्फ़ अमित शाह ही इसके लिए सुर्ख़ियों में नहीं रहेंगे. हालांकि, अगर पार्टी नाकाम होती है तो इसकी पूरी ज़िम्मेदारी अमित शाह के कंधों पर ही डाली जाएगी. शाह अपनी पार्टी के लिए सिर्फ़ गुलदस्ते ही नहीं बल्कि आलोचना स्वीकार करने के लिए भी तैयार हैं. क्योंकि कई बार वो विनम्रता से स्वीकार कर चुके हैं कि बीजेपी के बिना वो सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं हैं.
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नारनपुरा के रोड शो में कार्यकर्ताओं और समर्थकों के भारी जमावड़े के बीच पार्टी को अपने आप से ऊपर बताते हुए शाह ने कहा था, "अगर बीजेपी को मेरे जीवन से निकाल लिया जाए तो सिर्फ़ ज़ीरो ही बचेगा. मैंने जो कुछ भी सीखा और देश को दिया है सब बीजेपी का ही है."
शतरंज के खिलाड़ी शाह
शाह खाने के शौकीन हैं. उन्हें मसालेदार खाना पसंद हैं. वो जब भी अहमदाबाद में होते हैं तो वो रायपुर ज़रूर आते हैं और यहां भजिया या अधिक मसालेवाला भाजी पाव ज़रूर खाते हैं.
अमित शाह ने अपने जीवन में कभी भी चार पहिया वाहन नहीं चलाया है. उन्हें 'दो-पहिये वाला आदमी' तक कहा जाता था. साल 2000 तक वो अपना स्कूटर चलाते थे.
शाह शतरंज के एक अच्छे खिलाड़ी भी हैं और खाली समय में शतरंज खेलना पसंद करते हैं.
उन्हें ज्योतिष में गहरा विश्वास है. कोई भी महत्वपूर्ण फ़ैसला लेने से पहले वो ज्योतिष की सलाह लेना बेहतर समझते हैं. अमित शाह ने जब अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था तब ही उन्हें एक ज्योतिष ने बताया था कि उनके भाग्य में राजयोग है.
उनकी भगवान शिव और विशेषकर सोमनाथ महादेव मंदिर में गहरी आस्था है. ये जानते हुए ही मोदी ने उन्हें सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट का सदस्य बनाया था.
शाह को भारतीय शास्त्रीय संगीत भी पसंद है. अपनी लंबी कार यात्राओं के दौरान वो कार में ऊंची आवाज़ में संगीत सुनना पसंद करते हैं. वो गायक मुकेश के फ़ैन हैं. उन्हें अंताक्षरी खेलना भी पसंद है. ये कहा जाता है कि शाह कभी भी अंताक्षरी के खेल में नहीं हारे हैं.
शाह की याद्दाश्त हाथी जैसी है. वो किसी विधानसभा के छोटे-छोटे इलाक़ों, नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम याद रख सकते हैं. उन्हें हिंदी के कई पूरे गाने याद हैं.
वो सर्दियों के दिनों में भी तेज़ छत पंखे या एसी के बिना नहीं रह सकते हैं. अमित शाह कभी भी पर्फ्यूम का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
1995 में वो गुजरात राज्य वित्तीय कार्पोरेशन के चेयरमैन बने थे. इस पद पर पहुंचने वाले वो सबसे युवा नेता थे.
अमित शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से सबसे पहले 1982 में हुई थी. इस समय मोदी आरएसएस के प्रचारक थे और अमित शाह एबीवीपी के युवा नेता थे. कहा जाता है कि जब दोनों ही राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे तब मोदी ने अमित शाह की बहुत मदद की थी. दोनों के बीच दशकों चलने वाले दोस्ती की शुरुआत तुरंत ही हो गई थी.
शाह का सफ़रनामा
1964, 22 अक्तूबरः मुंबई में अमित शाह का जन्म
1978: आरएसएस के तरुण स्वयंसेवक बने
1982: एबीवीपी गुजरात के सहायक सचिव बने
1987: भारतीय जनता युवा मोर्चा में शामिल हुए
1989: बीजेपी की अहमदाबाद शहर इकाई के सचिव बने
1995: गुजरात की जीएसएफ़सी के अध्यक्ष बनाए गए
1997: भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने
1998: गुजरात बीजेपी के राज्य सचिव बने
1999: गुजरात बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने
2000: अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक के चेयरमैन बने
2002-2010: गुजरात सरकार में मंत्री रहे
2006: गुजरात शतरंज एसोसिएशन के अध्यक्ष बने
2009: सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट एसोसिएशन अहमदाबाद के अध्यक्ष और गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रहे
2010: शोहराबुद्दीन कौसर बी फ़र्ज़ी एनकाउंटर मामले में गिरफ़्तार किए गए
2013: बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बने
2014: गुजरात राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने
2014: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने
2016: सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के सदस्य बने
2016: बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए फिर से चुने गए
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