अमेरिकी सीनेट ने भारत को दिया नाटो देशों जैसा दर्जा, इस क्षेत्र में मिलेगा बड़ा फायदा
नई दिल्ली- अमेरिकी सीनेट ने एक विधायी प्रावधान पर मुहर लगाकर भारत को अमेरिका के नाटो सहयोगियों जैसा दर्जा दे दिया है। अब रक्षा संबंधों को लेकर अमेरिका भारत के साथ अपने नाटो सहयोगियों और इजरायल एवं साऊथ कोरिया की ही तरह से डील कर सकेगा। संभावना है कि बाकी संसदीय प्रक्रिया पूरी होने के बाद नया अमेरिकी कानून जुलाई महीने से ही अमल में आ जाएगा।
लंबे इंतजार के बाद मिला नाटो देशों जैसा दर्जा
भारत को नाटो देशों जैसा दर्जा दने वाले वित्त वर्ष 2020 के 'नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन ऐक्ट' को अमेरिकी सीनेट ने पिछले हफ्ते ही मंजूरी दी थी। अब इस विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव पर भी मुहर लग गई है। सीनेटर जॉन कॉर्निन और मार्क वॉर्नर की ओर से पेश किए गए संशोधन प्रस्ताव के तहत हिंद महासागर में भारत-अमेरिका के बीच मानवीय सहयोग, आतंक के खिलाफ जंग, काउंटर पाइरेसी और समुद्री सुरक्षा जैसे विषयों की व्यवस्था है। अमेरिका के इस कदम का इंतजार काफी लंबे वक्त से किया जा रहा था।
इसी महीने लागू हो जाएगा कानून
यह विधेयक अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट से पास होने के बाद कानून का शक्ल अख्तियार करेगा। संभावना है कि 29 जुलाई को सत्र स्थगित होने से पहले ही 'नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन ऐक्ट' को निचले सदन से भी मंजूरी मिल जाएगी। वैसे अमेरिका में सीनेट का दर्जा बहुत ही अहम है, जहां से इसे हरी झंडी दी जा चुकी है। इस विधेयक के पारित होने के बाद हिंदू अमेरिकी फाउंडेशन ने सीनेटर कॉर्निन और वॉर्नर का अभिनंदन किया। हिंदू अमेरिकी फाउंडेशन के एमडी समीर कालरा ने कहा है कि, 'भारत को गैर-नाटो देश के दर्जे से ऊपर लाना बेहद अहम है। यह भारत और अमेरिका के बीच अभूतपूर्व संबंधों की शुरुआत है।' हिंदू अमेरिका फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में शेरमैन ने कहा कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हमने अमेरिका और भारत के बीच के संबंधों के महत्व को समझा है।
अत्याधुनिक हथियार और संवेदनशील तकनीक खरीदना होगा आसान
2016 में ही अमेरिका ने भारत को बड़ा रक्षा साझीदार माना था। नाटो-सहयोगियों की तरह के दर्जे का मतलब है कि भारत उससे ज्यादा अत्याधुनिक हथियार और संवेदनशील तकनीक खरीद सकेगा। ये सुविधाएं अबतक अमेरिका अपने नाटो-सहयोगियों और इजरायल एवं साऊथ कोरिया जैसे सामरिक दोस्तों को ही उपलब्ध कराता था। माना जा रहा है कि अमेरिकी के इस कदम से दोनों देशों के आपसी और सामरिक संबंध और गहरे होंगे।
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