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जेएनयू हिंसा पर अमर्त्य सेन ने तोड़ी चुप्पी, मोदी सरकार के बारे में कही बड़ी बात

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नई दिल्ली- नोबल पुरस्कार विजेता और जाने-माने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने जेएनयू में हुई हिंसा से लेकर नए नागरिकता कानून तक पर अपनी चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने दोनों बातों के लिए सीधे सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि आज की सरकार विश्वविद्यालयों को अपना विरोधी मानने लगी है। यही नहीं उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून को भी असंवैधानिक बताया है और उसे रद्द करने तक की मांग की है। अमर्त्य सेन को 1998 में अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार मिला था और वह देश में हर विवादास्पद मुद्दों पर अपनी राय रखते रहे हैं और जब भी मौका मिलता है सरकार की जमकर आलोचना करते आए हैं।

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JNU Violence पर बोले Amartya Sen, आज Universities को सरकार विरोधी माना जा रहा है । वनइंडिया हिंदी
'विश्वविद्यालयों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगी है सरकार'

'विश्वविद्यालयों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगी है सरकार'

जेएनयू हिंसा की आलोचना करने के बहाने अमर्त्य सेन ने सीधे केंद्र सरकार को निशाने पर लेने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि सरकार अब विश्वविद्यालयों को अपना विरोधी मानने लगी है। उनके मुताबिक,'विश्वविद्यालयों के छात्र विरोध कर रहे हैं। 1951 से 1953 तक मैं प्रेसिडेंसी कॉलेज (अब प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी) का छात्र था, छात्र सरकार-विरोधी सवाल उठाते थे। लेकिन, उन दिनों की तरह अब विश्वविद्यालयों को सरकार का प्रतिद्वंद्वी माना जाने लगा है।' बता दें कि जेएनयू छात्र संघ का आरोप है कि उनपर जेएनयू कैंपस के भीतर बीजेपी की छात्र ईकाई एबीवीपी के लोगों ने हमला कराया था, जिसमें कुछ छात्रों और टीचरों को गंभीर चोटें आई थीं।

'बाहरी लोगों ने रची साजिश'

'बाहरी लोगों ने रची साजिश'

जेएनयू हिंसा को लेकर उन्होंने आरोप लगाया है कि न तो बाहरी लोगों की ओर से छात्रों के खिलाफ रची गई हिंसा को यूनिवर्सिटी प्रशासन रोक पाया और न ही पुलिस मौके पर समय से पहुंच सकी। उन्होंने कहा कि, 'कुछ बाहरी लोगों ने विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रताड़ित किया और अराजकरता फैलाने की कोशिश की। विश्वविद्यालय प्रशासन इसे रोकने में नाकाम रहा। पुलिस भी समय पर नहीं पहुंची।' गौरतलब है कि पिछले रविवार की शाम कुछ नकाबपोश गुंडों ने जेएनयू कैंपस के अंदर डंडों और रॉड से लड़कियों समेत छात्रों और टीचरों पर हमला किया था। इस घटना में जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन की अध्यक्ष आइशी घोष समेत कई लोग जख्मी हो गए थे।

'सीएए खत्म होना चाहिए'

'सीएए खत्म होना चाहिए'

इसी के साथ अमर्त्य सेन ने नागरिकता संशोधन कानून को भी बार-बार असंवैधानिक ठहराने की कोशिश की है। उन्होंने तो यहां तक मांग कर दी है कि इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए। सेन का मानना है कि, 'इस कानून के तहत नागरिकता मिलनी चाहिए या नहीं यह एक व्यक्ति के धर्म के आधार पर तय होगा। निश्चित तौर पर यह संविधान के आधार पर नहीं है।' 1998 में अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले अर्थशास्त्री के मुताबिक, 'मुझे लगता है कि इस कानून को खत्म किया जाना चाहिए, क्योंकि पहले तो इस कानून को पास ही नहीं होना चाहिए था।' अपने विचार के पक्ष में सेन की दलील ये है कि उनके पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। वे कहते हैं, 'मेरे पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। मेरा जन्म शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलपुर) में हुआ था।' गौरतलब है कि नए नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए हिंदू, सिख, क्रिश्चियन, बौद्ध, जैन और पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।

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English summary
Amartya Sen targets the government over JNU violence and CAA, says the government is starting to consider the university a competitor
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