कोर्ट के फैसले ने हिंदू महिला को मुस्लिम पति से मिलवाया, कहा-अपनी शर्तों पर जीने का हक
नई दिल्ली: दूसरे धर्म में शादी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court) ने एक एतिहासिक फैसला सुनाया है। साथ ही एक हिंदू महिला को उसके मुस्लिम पति से मिलवाया। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने ये भी साफ किया कि किसी भी महिला के पास अपनी शर्तों पर जीवन जीने का हक है। इसके अलावा हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तय प्रावधानों का पालन नहीं किया है। कोर्ट ने महिला के पति पर लगाए गए अपहरण के आरोपों को भी खारिज कर दिया।
दरअसल एक हिंदू महिला ने मुस्लिम युवक के साथ शादी की। इसके बाद नारी निकेतन/चाइल्ड वेलफेयर (CWC) कमेटी ने महिला को उसके माता-पिता के पास भेज दिया। इस पर पति ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका हाईकोर्ट में दायर कर दी। पति का आरोप था कि उसकी पत्नी बालिग है, इसके बावजूद CWC ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसे माता-पिता के पास भेज दिया। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने सबसे पहले महिला का बयान सुना। साथ ही कहा कि महिला स्वेच्छा से अपने पति के साथ रहना चाहती है, ऐसे में किसी तीसरे पक्ष को उस में बाधा नहीं पहुंचानी चाहिए।
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वहीं चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट ने महिला को शादी के बाद नारी निकेतन भेजने का आदेश दिया था। जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। खंडपीठ ने कहा कि महिला की जन्मतिथि 4 अक्टूबर 1999 है, जिससे जाहिर होता है कि वो अब बालिग हो चुकी है। वहीं जब महिला की ओर से जन्मतिथि को साबित करने के लिए स्कूल सर्टिफिकेट दिखाए गए तो अन्य किसी सबूत की जरूरत ही नहीं थी। ऐसे में साफ होता है कि ट्रायल कोर्ट ने प्रावधानों का पालन नहीं किया। लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने महिला को उसके पति के साथ रहने की इजाजत दे दी।