जानिए क्या है कालापानी, जिस पर भिड़ने की कगार पर पहुंच गए हैं नेपाल और भारत
काठमांडू। साल 2015 के बाद भारत और नेपाल के बीच फिर से टकराव की स्थिति है। पिछली बार नेपाल के संविधान की वजह से दोनों देशों में तनाव था और इस बार कालापानी की वजह से टेंशन है। चीन की तरफ झुकाव रखने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत को अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत को कालापानी से तुरंत अपनी सेना हटानी होगी। पीएम ओली की मानें तो किसी को भी एक इंच जमीन नहीं लेने देंगे। इस मसले पर भारत के खिलाफ फिर से नेपाल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। पिछले दिनों भारत ने जो नया नक्शा पिछले दिनों आया है उसमें कालापानी को भारत ने अपने हिस्से में दिखाया है और इसे लेकर ही नेपाल का पारा हाई है।
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नेपाल ने कहा हमारा है कालापानी
भारत ने दो नवंबर को नया नक्शा जारी किया था। इस नए नक्शे में कालापानी को भी भारत की सीमा में दिखाए जाने पर नेपाल नाराज है। नेपाल सरकार की तरफ से बुधवार को इस स्थिति पर नाराजगी जाहिर करते हुए एक आधिकारिक बयान जारी किया गया है। नेपाल सरकार की तरफ से कहा गया था कि नेपाल के पश्चिमी इलाके में स्थित कालापानी उसके देश की सीमा में है। नेपाल के स्थानीय मीडिया ने खबर दी कि कालापानी नेपाल के धारचुला जिले का हिस्सा है जबकि भारत के मानचित्र में इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा दिखाया गया है।
दो दशकों का विवाद
कालापानी सीमा, भारत और नेपाल के बीच दो दशकों से ज्यादा समय से विवाद का विषय बना हुआ है। भारत इसे उत्तराखंड राज्य के तहत आने वाले पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा मानता आया है। इस हिस्से को कालापानी नदी के तहत दर्शाया गया है जो काली नदी की एक धारा है। काली नदी, हिमालय से निकलती है। कालापानी घाटी में सबसे ऊपर है लिपुलेख पास और यह रास्ता कैलाश-मानसरोवर यात्रा का अहम रास्ता है जो भारत में बसे हिंदुओं के लिए पावन यात्रा मानी जाती है। यही रास्ता उत्तराखंड में बसे भोतियास के लिए तिब्बत के रास्ते व्यापार करने में सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है।
नदी बनी हुई है बवाल का केंद्र
काली नदी, भारत और नेपाल के बीच सीमा निर्धारित करती है और नेपाल इसके पश्चिम में आता है। लेकिन भारत यह कहता आया है कि इसकी मुख्यधारा सीमा में शामिल नहीं हैं। वहीं, कालापानी गांच, कालापानी सीमा से बाहर है और इसकी वजह से सबसे ज्यादा कंफ्यूजन की स्थिति पैदा होती है। यह गांव कालापानी नदी के जिस तरफ वह नेपाल की साइड है और भारत इस पर कोई दावा नहीं करता है। नेपाल के पास एक और रास्ता है जिसे टिंकर पास या टिंकर लिपू कहा जाता है। भारत ने सन् 1962 में चीन के साथ हुई जंग के बाद लिपुलेख पास को बंद कर दिया था। इसके बाद भोतिया ट्रेड इसी टिंकर पास के जरिए होता था।
1998 से विवाद हल करने की कोशिश
कालापानी सीमा की शुरुआत सन् 1997 में हुई और उस समय नेपालियों ने खासा विरोध किया था। यह विरोध उस समय शुरू हुआ जब भारत और चीन लिपुलेख पास को दोबारा खोलने पर राजी हो गए थे। वर्तमान समय में नेपाल पूरी कालापानी नदी पर अपना दावा करता है। नेपाल के नक्शे में इस हिस्से को देश की सीमा में दिखाया जाता है और नेपाल 35 स्क्वॉयर किलोमीटर के हिस्से को धारचूला जिले में शामिल करता है। भारत और नेपाल के अधिकारी सन्1998 से इस मसले को दूसरे सीमा विवाद के साथ हल करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन आज भी यह मुद्दा जस का तस बना हुआ है।