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भारतीय सेना का वह जवान जो चीन के 300 सैनिकों को मारने के बाद हुआ शहीद, आज उनकी 'आत्‍मा' सीमा है पर तैनात

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नई दिल्‍ली। भारत और चीन के बीच तीन साल बाद रिश्‍ते फिर से तनावपूर्ण हो गए हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि साल 1962 में जब दोनों देशों के बीच जंग हुई थी तो उसके बाद से पहला मौका है जब चीन से सटे बॉर्डर पर हालात इतने तनावपूर्ण बने हैं। 62 की जंग में चीन और भारत पहली बार युद्ध के मैदान में थे। भारत वह जंग हार गया था लेकिन उस जंग ने भारतीय सेना के शौर्य से दुनिया को अवगत कराया था।

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अकेले मारे थे चीन के 300 सैनिक

अकेले मारे थे चीन के 300 सैनिक

62 की जंग में आधिकारिक तौर पर भारत के 1,383 सैनिक शहीद हुए थे। शहीद हजारों सैनिकों में एक नाम है जसवंत सिंह का। आज जसवंत सिंह को शहीद हुए पांच दशक से ज्‍यादा का समय हो गया है और कहते हैं कि उनकी आत्‍मा आज देश की सुरक्षा में लगी है। आइए आपको बताते हैं कि जसवंत सिंह कौन थे और क्‍यों वह हमेशा अपनी रेजीमेंट, अपने देश और पूरी सेना के लिए गौरव बने रहेंगे। आज भी जब गढ़वाढ़ राइफल का कोई जवान जसवंत सिंह की बहादुरी के बारे में बात करता है तो उसकी सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। न‍ सिर्फ गढ़वाल राइफल बल्कि जसवंत सिंह आज भी पूरे देश का गौरव हैं। जसवंत सिंह ने 62 की जंग में इंडियन आर्मी के ऐसे सिपाही थे जिन्‍होंने अकेले दम पर चीनी सेना के 300 सैनिकों को मार गिराया था।

जसवंत सिंह रावत ने अकेले 72 घंटे तक संभाला मोर्चा

जसवंत सिंह रावत ने अकेले 72 घंटे तक संभाला मोर्चा

उत्‍तराखंड के रहने वाले थे जसवंत सिंह जसवंत सिंह रावत उत्‍तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के तहत आने वाले गांव बादियू के रहने वाले थे। 19 अगस्‍त 1941 को जन्‍मे जसवंत सिंह चार गढ़वाल राइफल में तैनात थे। शहीद जसवंत सिंह 17 नवम्बर 1962 को भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल के नूरानांग में चीन सैनिकों के खिलाफ मोर्चा संभाला था। उन्‍होंने सीमा पर अकेले चीनी सैनिकों को 72 घंटे तक रोक कर रखा था। जसवंत सिंह ने उस समय मोर्चा संभाला था जब सेना के कई जवान और ऑफिसर शहीद हो चुके थे। जसवंत सिंह ने अकेले ही पांच पोस्‍ट्स की जिम्‍मेदारी ली और देखते-देखते 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

पांच दशक बाद भी अमर हैं जसवंत सिंह

पांच दशक बाद भी अमर हैं जसवंत सिंह

जसवंत सिंह हालांकि इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गये थे लेकिन उनकी वीरता हमेशा के लिए अमर हो गई। जिस जगह पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे अरुणाचल प्रदेश में उसी जगह पर उनकी याद में एक मेमोरियल बनाया गया है और यहां पर जसवंत सिंह रावत का मंदिर है। इस जगह को जसवंतगढ़ के तौर पर जानते हैं। यह जगह अरुणाचल के जिले तवांग से करीब 53 किलोमीटर दूर है। जसवंत सिंह का शहादत को पांच दशक से ज्‍यादा का समय हो चुका है।

आज भी प्रेस होती है उनकी यूनिफॉर्म

आज भी प्रेस होती है उनकी यूनिफॉर्म

जो मंदिर जसवंतगढ़ में जसवंत सिंह की याद में बना है, वहां पर उनसे जुड़ी कर्इ चीजें आज तक रखी हुई हैं। उनके जूते और उनका बिस्‍तर भी यहां पर देखने को मिल जाएगा। सिर्फ इतना ही नहीं आज भी पांच जवान हर पल उनका बिस्तर लगाते हैं और जूते पॉलिश करते हैं और उनकी यूनिफॉर्म भी प्रेस करते हैं। आज भी जसंवत सिंह को छुट्टी दी जाती है और उनकी फोटो को लेकर सेना के जवान उनके पुश्तैनी गांव जाते हैं। आज भी यहां पर तैनात सैनिक मानते हैं कि उनकी आत्मा सीमा की रक्षा के लिए हर पल तैनात रहती है।

आज भी सीमा की रक्षा में तैनात

आज भी सीमा की रक्षा में तैनात

कई सैनिक मानते हैं कि सीमा पर चौकसी के दौरान अगर किसी जवान को झपकी आ जाती है तो जसवंत की आत्मा चांटा मारकर जगा देती है। जसवंत सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जब उनकी छुट्टियां खत्‍म हो जाती हैं तो पूरे सम्‍मान के साथ उसे वापस उनकी पोस्‍ट पर रख दिया जाता है। भारतीय सेना में जसवंत सिंह अकेले ऐसे सैनिक है जिन्हें शहादत के बाद भी प्रमोशन दिए गए।

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English summary
India-China border: All about Indian Army Jawan Jaswant Singh who fought alone against China for 72 hours in 62 war.
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