बुआ के लिए अखिलेश के इस 'महा-बलिदान' ने बनाया उन्हें राजनीति का जेंटलमेन
नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ा जेंटलमैन कौन है? कुछ समय पहले तक यह सवाल बहुत कठिन सवाल था। मगर, अब यह बेहद आसान सवाल बन चुका है। जवाब है अखिलेश यादव। बेटे अखिलेश से नाराज़ हैं मुलायम सिंह यादव। वे खुलकर बोल रहे हैं कि समाजवादी पार्टी की ताकत 80 सीटों पर लड़ने की थी। किस आधार पर 38 सीट किसी और के हाथों लुटा दी गयी?
ऐसा लग रहा है मानो जमींदार का बेटा अपनी दौलत गरीबों में लुटा रहा हो और जमींदार को अपनी जमींदारी जाती दिख रही हो। कोई ये तर्क दे सकता है कि जमींदार का बेटा गुलछर्रे उड़ाकर बाप की संपत्ति बर्बाद करता है और इसलिए पिता को दुख होता है। मगर, अखिलेश के लिए कोई ऐसी बात करने की हिमाकत नहीं करेगा क्योंकि अखिलेश वास्तव में जेंटलमैन हैं। राजनीति के जेंटलमैन।
गठबंधन के लिए त्याग
एसपी-बीएसपी में महागठबंधन हुआ तो इसका श्रेय अखिलेश को जाता है। खुद के लिए 37 सीट और बीएसपी के लिए 38 सीट। वह भी तब जब गठबंधन का आधार 2009 लोकसभा का चुनाव हो। उस चुनाव में एसपी को सबसे ज्यादा सीट मिली थी। ऐसा तब है जब यूपी में पिछली सरकार के मुख्यमंत्री खुद अखिलेश यादव थे। अखिलेश ने राजनीतिक रूप से बड़ा भाई बनने के बजाए व्यक्तिगत रूप से अपनी बुआ का भतीजा बनना अधिक कबूल किया। ये है उनके जेंटलमैन होने की पहचान।
चुनौती वाली सीट एसपी ने अपने पास रखी
किन सीटों पर कौन लड़ेगा इसकी भी सूची एसपी और बीएसपी ने जारी कर दी है। इसे गौर से देखने पर पता चलता है कि महाभारत के विरोधी रणबांकुरों को अखिलेश ने अपने लिए चुन लिया है। वहीं, अपनी बुआ को विरोधी दल के छोटे-मोटे युद्धवीरों के इलाके सौंपे हैं। यहां भी वे दिखते हैं राजनीति के जेंटलमैन। वाराणसी में नरेंद्र मोदी से कौन लड़ेगी..एसपी। योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में कौन लड़ेगी...एसपी। लखनऊ में राजनाथ सिंह और कानपुर में मुरली मनोहर जोशी को हराने की जिम्मेदारी भी एसपी ने अपने पास रखी है।
इसके अलावा एसपी ने कैराना, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बदायूं, बरेली, इटावा, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फूलपुर, फैजाबाद, गोण्डा, गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी और मिर्जापुर में उम्मीदवार खड़े कर रही है। एसपी नेता अखिलेश ने बुआ मायावती को संदेश दिया है मानो महारथियों को मैं सम्भाल लूंगा, आप पैदल सैनिकों को की संख्या घटाइए। बीएसपी को जिन सीटों पर चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी मिली है उनमें शामिल हैं सहारनपुर, बिजनौर, अलीगढ़, आगरा, फतेहपुर सीकरी, सीतापुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बस्ती, जौनपुर, भदोही और देवरिया हैं।
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2009 को आधार बनाने पर भी एसपी ने किया त्याग
2009 में जिन सीटों पर एसपी को जीत मिली थी, उनमें से महज 11 सीटों पर ही समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार दिए हैं। यानी 12 वैसी सीटों पर एसपी चुनाव नहीं लड़ रही हैं जहां वह 2009 में जीती थी। इनमें से ज्यादातर सीटों पर बुआ की पार्टी लड़ रही है। भतीजे की ओर से यह बुआ का सम्मान है। इसलिए भी अखिलेश हैं राजनीति के जेंटलमैन। सवाल ये है कि क्या राजनीति के इस जेंटलमैन को इसका फायदा मिलेगा या नहीं? कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने वाले जेंटलमैन अखिलेश यादव को तब नुकसान का सामना करना पड़ा था। इस बार परिस्थिति बदल चुकी है। अखिलेश जितने महारथी को पैदल करेंगे, उनके पास उतने ज्यादा राजमुकुट इकट्ठा होते चले जाएंगे। यही उनकी ताकत होगी जो उन्हें राजनीति में स्थापित करेगी।
मोदी के ख़िलाफ़ हार्दिक!
चर्चा है कि अखिलेश यादव हार्दिक पटेल को नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाने जा रही है। निश्चित रूप से वे कांग्रेस के भी पसंद रहेंगे। अखिलेश की इस पहल को भी उनके राजनीतिक जेंटलमैन होने का प्रमाण माना जा रहा है क्योंकि एक तरह से वाराणसी सीट की भी कुर्बानी देने को तैयार हो गये हैं।
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