लोकसभा चुनाव 2019: पश्चिमी यूपी में अजीत सिंह लगाएंगे महागठबंधन की नैय्या पार!
नई
दिल्ली:
लोकसभा
चुनाव
2019
में
महागठबंधन
से
यूपी
में
भाजपा
को
कड़ी
टक्कर
मिलती
दिख
रही
है।
सपा-बसपा
ने
पश्चिमी
यूपी
में
मुजफ्फरनगर
सीट
इस
बार
आरएलडी
के
लिए
छोड़ी
है।
इस
क्षेत्र
को
जाटलैंड
कहा
जाता
है
और
यहां
आरएलडी
की
पकड़
मजबूत
है।
पिछले
लोकसभा
चुनाव
में
आरएलडी
को
अपने
गढ़
में
हार
का
सामना
करना
पड़ा
था।
किसानों
के
नेता
कहे
जाने
वाले
चौधरी
चरण
सिंह
के
बेटे
और
आरएलडी
प्रमुख
अजित
सिंह
खुद
बागपत
सीट
से
हार
गए
थे
और
उनके
बेटें
जयंत
चौधरी
को
मथुरा
में
हार
मिली
थी।
अजीत सिंह लगाएंगे महागठबंधन की नैय्या पार!
मुजफ्फरनगर सीट पर महागठबंधन के बाद लड़ाई दिलचस्प हो गयी है। आरएलडी के लिए ये सीट भी साख का सवाल है। इस सीट पर एसपी बीएसपी मजबूत रही है। ऐसे में चौधरी अजित सिंह के लिए गठबंधन को इस सीट पर जिताने की जिम्मेदारी है। भाजपा को पिछली बार यहां से जीत मिली थी और उसने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस सीट पर जाट वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो यहां पर दलित-मुस्लिम वोटों के साथ अपने कोर वोटर को ला पाते हैं या नहीं।
2014 मे भाजपा से मिली थी हार
साल 2014 के चुनाव में आरएलडी ने मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था। उसने ये सीट कांग्रेस के लिए छोटी थी। उस चुनाव में कांग्रेस और आरएलडी का गठबंधन था। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जीत दर्ज की थी और संजीव बालियान सांसद बने थे। इस चुनाव में बीएसपी दूसरे नंबर पर रही थी। एसपी के वरिष्ठ नेता उदयवीर सिंह ने कहा कि पश्चिम यूपी में मुजफ्फरनगर में जाटों की संख्या अधिक है आरएलडी चीफ अजित सिंह इनके बड़े नेता हैं। वो खुद इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे और गठबंधन में शामिल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी इसका सम्मान किया। मुजफ्फरनगर को जाटलैंड का दिल कहते हैं। यहां हमेशा किसानों के मुद्दे ही प्रमुख हैं। आरएलडी का प्रभाव यहां मुस्लिमों और जाटों में बराबर है। हालांकि साल 2013 में पश्चिमी यूपी का मुजफ्फरनर हिंदू और मुसलमान दंगो का मुख्य केंद्र बन गया था और यहां राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए थे। इसके बाद यहां अगले साल 2014 में हुए चुनाव में किसान हिंदू-मुस्लिम में बंट गए और 1998 के बाद भाजपा को यहां पहली बार जीत मिली।
कैराना का इतिहास दोहरा पाएंगे!
एसपी नेता उदयवीर सिंह ने कहा कि आरएलडी ने कोर जाट वोटर होने के बावजूद यहां से एक भी सीट नहीं जीती थी। अब भले ही आरएलडी सपा और बसपा के साथ गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि क्या बसपा प्रमुख मायावती के कोर दलित वोटर जाटों के साथ मिलकर वोट करते हैं। ये कुछ ऐसा है जो पारंपरिक रूप से ऐसा करने के लिए नहीं जाना जाता है। यह प्रयोग पिछले साल कैराना उपचुनाव में पहले भी काम कर चुका है और इस बार हम पश्चिमी यूपी में एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर कर रहे हैं। साल 2009 में बीएसपी के कादिर राणा ने मुजफ्फरनगर सीट आरएलडी की अनुराधा चौधरी को हराकर जीती थी। वहीं साल 2004 में एसपी के मुन्नवर हसन से ये सीट जीती थी। पिछले साल हुए उपचुनाव में तबस्सुम हसन ने आरएलडी के टिकट पर चुनाव जीता था। आरएलडी के एक नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी इस बार बागपत से लड़ेंगे। इसके अलावा मथुरा सीट भी गठबंधन के जरिए आएलडी के खाते में है। अजित चौधरी मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव लड़ेंगे। इससे पश्चिमी यूपी में महागठबंधन को फायदा होना तय है।