चौधरी चरण सिंह की हार के 48 साल बाद मुजफ्फरनगर से मैदान में उतरेंगे अजित सिंह
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) मुजफ्फरनगर, बागपत और मथुरा सीट से चुनाव लड़ने जा रही है। मुजफ्फरनगर सीट से आरएलडी के अध्यक्ष अजित सिंह चुनाव लड़ेंगे। दिलचस्प बात ये है कि जिस मुजफ्फरनगर सीट को लेने के लिए आरएलडी को सपा और बसपा से काफी कोशिशें करनी पड़ी, उसी मुजफ्फरनगर सीट से 48 साल पहले अजित सिंह के पिता चरण सिंह चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे। अब करीब पांच दशक बाद मुजफ्फरनगर सीट पर चौधरी परिवार का सदस्य चुनाव लड़ने जा रहा है।
चरण सिंह पहला चुनाव हारे थे, अजित सिंह का 'आखिरी' चुनाव
1971 में चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) के निशान पर मुजफ्फरनगर से इलेक्शन लड़ा था। लोकसभा में उनका ये भले ही पहला चुनाव था लेकिन उस समय उनका कद उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बड़ा था। वो यूपी के दो बार सीएम रह चुके थे लेकिन अपना पहला लोकसभा चुनाव वो सीपीआई के ठाकुर विजयपाल सिंह से हार गए। ये हार इसलिए भी चौंका गई थी क्योंकि उस समय मुजफ्फरनगर की सभी आठ विधानसभा सीटें बीकेडी के पास थीं। वहीं अजित सिंह की बात करें तो माना जा रहा है कि 80 साल के हो चुके अजित सिंह का ये आखिरी चुनाव है। वहीं अपने पिता के समय के उलट वो ऐसे वक्त में इलेक्शन लड़ रहे हैं जब उनकी पार्टी के पास मुजफ्फरनगर में एक भी विधानसभा सीट नहीं है और वो अपना सियासी रुतबा बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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दो गुर्जर नेता माने गए थे चरण सिंह की हार की वजह
1971 में चौधरी चरण सिंह की हार के पीछे दो बड़े गुर्जर नेताओं नारायण सिंह और हुकुम सिंह का विरोध बड़ी वजह माना गई थी। इन दोनों नेताओं के वारिसों की बात करें तो बाबू नारायण सिंह के पोते चंदन सिंह अब सपा में हैं, जिससे रालोद का गठबंधन है। वहीं हुकुम सिंह की मौत के बाद उनकी बेटी मृगांका उनकी राजनीतिक विरासत संभालने की कोशिश कर रही हैं। उस समय खतौली से बीकेडी के विधायक वीरेंद्र वर्मा पर भी भीतरघात कर चरण सिंह को हराने के आरोप लगे थे। चरण सिंह की हार के बाद वीरेंद्र वर्मा कांग्रेस में चले गए थे।
1977 में बागपत चले गए थे चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह ने 1967 में भारतीय क्रांति दल का गठन किया था और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उनका कार्यकाल 328 दिन का ही रहा। फरवरी 1970 में चरण सिंह फिर 25 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। 1969 में बीकेडी ने मुजफ्फरनगर की सभी आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी। 1971 में चरण सिंह ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की। कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारकर सीपीआई के उम्मीदवार विजयपाल सिंह को समर्थन दिया। उन्होंने चौधरी चरण सिंह को 50 हजार वोट से ज्यादा वोटों से हरा दिया।
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट हारने के बाद ही चौधरी चरण सिंह ने इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में बागपत सीट से चुनाव लड़ा। वो यहां से बड़े अंतर से जीते और पहले केंद्रीय गृहमंत्री फिर देश के प्रधानमंत्री भी रहे। चरण सिंह के बाद अजित सिंह भी बागपत से लगातार चुनाव लड़ते रहे। पहली बार वो किसी और सीट से चुनाव लड़ेंगे।
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लोकदल के लिए 'लकी' नहीं रही है मुजफ्फरनगर सीट
चरण सिंह का पश्चिमी यूपी में जबरदस्त प्रभाव रहा है लेकिन मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर इस परिवार का ऐसा वर्चस्व कभी नहीं रहा, जैसा पड़ोस की बागपत, कैराना या दूसरी सीटों पर रहा। चरण सिंह जब खुद बीकेडी से मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े तो हार गए। उसके बाद उन्होंने भारतीय लोकदल बनाई और उसके बाद उनके बेटे अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल बनाई जिसके वो अध्यक्ष हैं। 1977 में मुजफ्फरनगर सीट से सईद मुर्तजा की भारतीय लोकदल के टिकट पर जीत को छोड़ दें तो यहां कभी इस पार्टी ने जीत दर्ज नहीं की है। 2009 में रालोद प्रत्याशी अनुराधा चौधरी बसपा के कादिर राना से करीबी मुकाबले में यहां से हार गई थीं।
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