अजित पवार की घरवापसी, लेकिन ये 7 सवाल अभी भी कायम
"मैं एनसीपी में ही हूँ. शरद पवार हमारे नेता हैं. मैं कभी भी एनसीपी से बाहर नहीं गया था. एनसीपी ही हमारा परिवार है." अजित पवार ने ये बात विधायक की शपथ लेने के बाद बीबीसी मराठी को बताई थी. 'मैं एनसीपी के साथ हूँ' अजित पवार को बार-बार यह बात दोहराने की नौबत क्यों आई? 23 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र में एक अलग ही किस्म का सियासी नाटक देखा गया.
"मैं एनसीपी में ही हूँ. शरद पवार हमारे नेता हैं. मैं कभी भी एनसीपी से बाहर नहीं गया था. एनसीपी ही हमारा परिवार है."
अजित पवार ने ये बात विधायक की शपथ लेने के बाद बीबीसी मराठी को बताई थी. 'मैं एनसीपी के साथ हूँ'
अजित पवार को बार-बार यह बात दोहराने की नौबत क्यों आई?
23 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र में एक अलग ही किस्म का सियासी नाटक देखा गया. इससे एक दिन पहले एनसीपी-शिवसेना और कांग्रेस ने सरकार बनाने की बात कही थी. पर मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली. उनके साथ अजित पवार ने भी उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
शपथ समारोह के बाद ये सवाल पूछा जाने लगा कि क्या अजित पवार ने पार्टी तोड़ी है या एनसीपी वाकई बीजेपी के साथ चली गई है.
उसके तुरंत बाद शरद पवार ने ट्वीट के ज़रिए कहा कि बीजेपी के साथ जाना अजित पवार का व्यक्तिगत फ़ैसला है. और वो उसका समर्थन नहीं करते हैं. इसके बाद अजित पवार को एनसीपी विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया.
Ajit Pawar's decision to support the BJP to form the Maharashtra Government is his personal decision and not that of the Nationalist Congress Party (NCP).
— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) November 23, 2019
We place on record that we do not support or endorse this decision of his.
इससे एक बात तो साफ़ हो गई कि बीजेपी का साथ देना अकेले अजित पवार का ही फ़ैसला था.
अगले तीन दिन महाराष्ट्र की सियासत में काफ़ी गहमागहमी वाले रहे. अजित पवार की मान-मुनौव्वल की कोशिशें होती रहीं. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
जिसके बाद अजित ने इस्तीफ़ा दिया और अब वो अपने चाचा की पार्टी और परिवार के पास लौट आए हैं. लेकिन इस सारे घटनाक्रम ने अपने पीछे सात अनुत्तरित सवाल छोड़ दिए हैं. आइये तलाशते हैं इन्हीं सात सवालों के जवाब-
1. अजित पवार अकेले बीजेपी से क्यों जा मिले?
अजित पवार बार-बार दोहरा रहे हैं कि वो हमेशा से ही एनसीपी के साथ थे. पार्टी के अन्य नेता भी यही कह रहे हैं. पर वो क्या सोचकर बीजेपी के खेमे में शामिल हुए थे इसपर खुलकर कोई बात नहीं कर रहे हैं. एनसीपी के नेता धनजंय मुंडे कहते हैं कि ये सब न होता तो बेहतर होता.
राजनीतिक विशेषज्ञ अभय देशपांडे कहते हैं, ''विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही अजित पवार और एनसीपी का एक गुट बीजेपी के साथ जाने पर विचार बना रहा था. लेकिन शरद पवार इसके पक्ष में बिल्कुल नहीं थे. इस गतिरोध का कोई समाधान नहीं हो पा रहा था. और आख़िर अजित पवार बीजेपी के साथ चले गए.''
देशपांडे आगे कहते हैं, ''तकनीकी तौर अजित पवार एनसीपी को तोड़कर बीजेपी के साथ नहीं गए थे बल्कि विधायक दल के नेता के रूप में समर्थन की चिट्ठी लेकर गए थे. उन्हें लगा कि पार्टी के 25 के करीब विधायक उनका साथ देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं.''
हफ़िंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट में पवन दहाट बताते हैं, ''पार्टी की 17 नवंबर को हुई बैठक में अजित पवार, धनंजय मुंडे, प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे ने बीजेपी के साथ जाने का प्रस्ताव रखा था. शरद पवार ने इसका विरोध किया. 22 नवंबर की शाम को शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनने का ऐलान किया और 23 नंवबर को अजित पवार ने बीजेपी के साथ शपथ ली. ये क्यों हुआ, इसका जवाब मिलना आसान नहीं है.''
शायद अजित पवार को लगा होगा कि अगर वो शिव सेना के साथ गए तो उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलेगा.
2. अगर एनसीपी के किसी अन्य नेता ने यह सब किया होता तो क्या शरद पवार उसके ख़िलाफ़ एक्शन लेते?
अभय देशपांडे के मुताबिक इस सवाल का जवाब निश्चित तौर पर हां है. अजित पवार, शरद पवार के भतीजे हैं इसलिए उनकी घर वापसी करना पार्टी और परिवार के लिए महत्तवपूर्ण था. फ़्लोर टेस्ट के समय विधायकों में दरार सामने न आए शायद ये सोचकर अजित पवार को वापिस लाने की भरसक कोशिश की गई.
जब ये स्पष्ट हो गया कि देवेंद्र फडणवीस बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे तब अजित पवार को वापिस लाने की कोशिशें तेज़ हो गईं. फिर भी उन्हें संस्पेड तक नहीं किया गया. अगर उन्हें पार्टी से निकालते, तो पार्टी दो-फाड़ हो सकती थी.
देशपांडे कहते हैं, ''महाराष्ट्र में और ख़ासकर बारामती में अजित पवार को समर्थन देने वाले कई नेता और कार्यकर्ता हैं. अगर उन्हें पार्टी से निकालते तो एनसीपी को परिवार के इस गढ़ में काफ़ी नुकसान उठाना पड़ सकता था.''
3. क्या पवार परिवार का होने की वजह से मिली अजित पवार का ख़ास ट्रीटमेंट
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश पवार कहते हैं कि ये बात पूरी तरह से सच नहीं है. अजित पवार के बिना एनसीपी की ग्रोथ मुमकिन नहीं है. लेकिन अब शायद शरद पवार, अजित पवार को कस कर रखेंगे.
प्रकाश पवार आगे बताते हैं, ''दूसरी तरफ़ एनसीपी में एक गुट ऐसा भी है जिन्हें अजित पवार पसंद नहीं हैं और वो उन्हें पार्टी से बाहर निकालना चाहते हैं. अब पार्टी में साफ़ दो गुट नज़र आ रहे हैं लेकिन अजित पवार का पलड़ा विद्रोह के बावजूद भारी है.'
4. क्या अब एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस अजित पवार पर पूरा भरोसा कर सकते हैं क्या?
बीबीसी ने यही सवाल कि वरिष्ठ पत्रकार राही भिड़े से किय तो उन्होंने बताया, ''अजित पवार ने अपना भरोसा गंवा दिया है. कभी बीच में ही मीटिंग छोड़कर चले जाना, कभी इस्तीफ़ा दे देना....अजित पवार के लिए नई बात नहीं है. लेकिन बीजेपी से हाथ मिलाना ऐसी तुनकमिजाज़ी जैसा नहीं था. ये संभव है कि उन्हें सिंचाई घोटाले में जांच तेज़ करने की धमकी दी गई हो.''
हालांकि बीच में अजित पवार के खिलाफ़ कुछ मुकद्दमें वापिस लेने की ख़बरें आई थीं लेकिन उनकी कोई पुष्टि नहीं की जा सकी है.
5. परिवार की फूट को ढंकने के लिए हुई है ये पूरी कवायद?
पवार परिवार अकसर कहता है कि वो एक संयुक्त परिवार है और उनके परिवार का प्रमुख जो भी कहता है वही पत्थर पर लकीर है.
कुछ महीने पहले बीबीसी मराठी को दिए गए एक इंटरव्यू में अजित पवार ने कहा था कि उत्तराधिकार के मुद्दे पर बाकी परिवारों में जो कुछ भी हुआ है वो उनके परिवार में नहीं होगा.
ख़ुद ये कहने वाले अजित पवार ही पार्टी और परिवार से, भले कुछ दिन के लिए ही सही, दूर चले गए थे.
पवार परिवार अब भी उत्तराधिकार के मुद्दे पर कुछ स्पष्ट कहता नहीं दिख रहा है.
6. बार-बार नाराज़ होकर अजित पवार क्या जताना चाहते हैं?
विधानसभा चुनाव के कुछ दिन पहले शरद पवार को प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस आया था. उसके बाद तुरंत अजित पवार ने विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
काफ़ी समय तक वो ग़ायब रहे. उसी समय से ये चर्चा शुरू हो गई थी कि परिवार में कुछ अनबन हो गई है.
जब ये सवाल शरद पवार से पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि वो जो कहेंगे वही बात अंतिम होगी.
अजित पवार की नाराज़गी कोई नई बात नहीं है. कांग्रेस-एनसीपी की सरकार के समय भी अजित पवार ने कई बार अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी.
7. क्या शरद पवार अजित पवार के पर कतरते हैं?
हफ़िंगटन पोस्ट के रिपोर्टर पवन दहाट कहते हैं, ''शरद पवार ने कभी भी अजित पवार को पूरी छूट नहीं दी क्योंकि शरद पवार उन्हें भावुक व्यक्ति मानते हैं. यही वजह है कि एनसीपी की कमांड अब तक अजित पवार को नहीं दी गई है. इतना ही नहीं अजित पवार को आजतक महाराष्ट्र प्रदेश एनसीपी का भी अध्यक्ष नहीं बनाया गया है.
पवन दहाट आगे बताते हैं कि उधर अजित पवार के मन में ये दुख है कि चाचा ने कभी उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं दिलवाया. उदयन राजे भोंसले का पार्टी में आना भी उन्हें मंज़ूर नहीं था.
अजित के बेटे पार्थ पवार लोकसभा का चुनाव हार गए थे. लेकिन उनके भतीजे रोहित पवार विधायक चुन गए हैं. रोहित को अकसर शरद पवार के साथ देखा जाता है लेकिन पार्थ को सीनियर पवार के साथ नहीं देखा गया है. शायद ये बात भी अजित पवार को चुभती है.