वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रहा है मृत बच्चे पैदा होने और नवजात की अकाल मृत्यु होने का खतरा- विशेषज्ञ
प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं में बढ़ते वायु प्रदूषकों के कारण मृत बच्चों को जन्म देने के मामले बढ़ रहे हैं और यह नवजात की अकाल मृत्यु का कारण बन रहे हैं।
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर। सफदरजंग अस्पताल के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के निदेशक और विभागाध्यक्ष जुगल किशोर ने कहा कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं में बढ़ते वायु प्रदूषकों के कारण मृत बच्चों को जन्म देने के मामले बढ़ रहे हैं और यह नवजात की अकाल मृत्यु का कारण बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीएम 2.5 के उच्च स्तर के संपर्क में आने से जन्म के 1 से 2 सप्ताह बाद भी नवजात शिशुओं में समय से पहले मौत हो जाती है, और कभी-कभी समय से पहले जन्म भी हो जाता है।
कोरोना
रोगियों
की
बढ़ा
सकता
है
समस्या
जुगल
किशोर
ने
कहा
कि
वायु
प्रदूषक
रक्त
के
माध्यम
से
प्लेसेंटा
में
जाते
हैं
और
उस
नली
में
रुकावट
पैदा
करते
हैं
तो
नवजात
शिशु
के
मृत
जन्म
और
समय
से
पहले
मौत
का
कारण
बनता
है।
किशोर
ने
कहा
कि
ये
मानव
शरीर
पर
वायु
प्रदूषण
के
कुछ
अप्रत्यक्ष
प्रभाव
हैं,
जिन
पर
गंभीरता
से
ध्यान
देने
की
आवश्यकता
है।
उन्होंने
चल
रही
कोरोना
महामारी
को
लेकर
कहा
वायु
प्रदूषक
कोरोना
से
जूझ
रहे
रोगियों
की
समस्या
को
बढ़ा
देते
हैं
क्योंकि
उनके
फेफड़े
पहले
से
की
कोरोना
से
प्रभावित
होते
हैं।
ये
कण
फेफड़े
के
एल्वियोली
में
फंस
जाते
हैं
जहां
फेफड़े
और
रक्त
सांस
लेने
की
प्रक्रिया
के
दौरान
ऑक्सीजन
और
कार्बन
डाइऑक्साइड
का
आदान-प्रदान
करते
हैं
इससे
मरीज
की
समस्या
बढ़
जाती
है
और
उसे
सांस
लेने
में
समस्या
होती
है।
कई
बीमारियों
के
लिए
जिम्मेदार
वायु
प्रदूषण
वायु
प्रदूषण
न
केवल
श्वसन
समस्याओं
में
योगदान
देता
है,
बल्कि
इसका
दीर्घकालिक
स्वास्थ्य
प्रभाव
भी
होता
है
जिसमें
हृदय
रोग,
फेफड़े
का
कैंसर,
ब्रेन
स्ट्रोक
और
कई
अन्य
रोग
शामिल
हैं।
एम्स
में
मेडिसिन
के
अतिरिक्त
प्रोफेसर
नीरज
निश्चल
ने
कहा
कि
वायु
प्रदूषण
के
कई
दुष्प्रभाव
हैं
और
इसे
केवल
फेफड़ों
और
सांस
की
समस्याओं
तक
सीमित
नहीं
किया
जा
सकता
है।
उन्होंने
आगे
कहा
कि
सांस
की
बीमारी
से
पीड़ित
लोग
इसके
प्रमुख
शिकार
हैं।
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श्वांस
रोगियों
के
लिए
ज्यादा
खतरनाक
निश्चल
ने
कहा
कि
यदि
कोई
व्यक्ति
अस्थमा
या
एलर्जिक
ब्रॉकाइटिस
से
जूझ
रहा
है,
ऐसे
व्यक्ति
को
वायु
प्रदुषण
से
अधिक
परेशानी
हो
सकती
है।
वहीं
कोरोना
रोगियों
पर
वायु
प्रदूषण
के
असर
को
लेकर
उन्होंने
कहा
कि
ये
प्रदूषण
उन
सभी
लोगों
को
महत्वपूर्ण
रूप
से
प्रभावित
नहीं
करेंगे
जो
कोरोना
से
संक्रमित
है,
बल्कि
ये
उन
लोगों
को
प्रभावित
करेगा
जिनके
फेफड़े
संक्रमण
के
कारण
क्षतिग्रस्त
हो
गए
हैं।
एम्स
के
डॉक्टर
निश्चल
ने
कहा
कि
प्रदूषण
किसी
के
मनोवैज्ञानिक
व्यवहार
को
भी
प्रभावित
करता
है।
यह
पूरे
शरीर
को
प्रभावित
कर
सकता
है,
लेकिन
उच्च
स्तर
के
प्रदूषण
के
कारण
मुख्य
अंग
जो
अत्यधिक
क्षतिग्रस्त
हो
सकते
हैं,
वे
हैं
फेफड़े
और
हृदय।
दीर्घकालिक
है
वायु
प्रदूषण
का
प्रभाव
राष्ट्रीय
राजधानी
क्षेत्र
(एनसीआर)
में
अक्टूबर
और
नवंबर
के
दौरान
वायु
प्रदूषण
के
बढ़ते
स्तर
में
जलवायु
परिस्थितियों
की
भूमिका
पर
प्रकाश
डालते
हुए,
एम्स
में
सामुदायिक
चिकित्सा
के
अतिरिक्त
प्रोफेसर
हर्षल
साल्वे
ने
कहा
कि
वायु
प्रदूषण
का
शराब
और
तंबाकू
जैसे
दीर्घकालिक
प्रभाव
हैं।
साल्वे
ने
कहा
कि
वायु
प्रदूषण
गैर-संचारी
रोगों
जैसे
फेफड़ों
की
समस्याओं,
हार्ट
अटैक,
ब्रेन
स्ट्रोक
और
कई
अन्य
बीमारियों
के
लिए
सबसे
अधिक
जिम्मेदार
कारकों
में
से
एक
है।
भारत
में
85
प्रतिशत
से
अधिक
मौतें
गैर-संचारी
रोगों
से
जुड़ी
हैं।
उन्होंने
कहा
कि
दिल्ली
में
सर्दियों
के
दौरान
वायु
प्रदूषण
के
कारण
पुरुषों
में
0.52
प्रतिशत
अधिक
मौतें
होती
हैं।