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वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से भारत की आधी से ज्यादा आबादी पर संकट

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नई दिल्ली- पर्यावरण से जुड़े आंकड़े जुटाने वाले दुनिया के सबसे बड़े अमेरिकी संस्था नेशनल ओशिएनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडिमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की मानें तो 1880 से इसके रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से 2018 धरती का सबसे गर्म साल रहा। आज स्थिति यह हो चुकी है कि तापमान में असमान्य उतार-चढ़ाव को लोग आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं। क्योंकि, पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण में इतना परिवर्तन हो चुका है कि लोग मौसम की असमानता को ज्यादा दिन तक महसूस ही नहीं कर पाते। सच्चाई ये है कि आज भारत में गंगा के मैदानी हिस्सों की अधिकतर जनसंख्या बहुत बड़े संकट के दौर से गुजर रही है, जिसपर जितना ध्यान देने की आवश्यकता है, वह अभी तक हो नहीं पा रहा है।

60 करोड़ से ज्यादा आबादी पर खतरा

60 करोड़ से ज्यादा आबादी पर खतरा

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2018 के एक सर्वे के आधार पर बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी आज पृथ्वी के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुका है। करीब 12 लाख की आबादी वाला यह शहर 2016 से ही प्रदूषण के मामले में राजधानी दिल्ली को भी पीछे छोड़ रहा है। अकेले वाराणसी ही नहीं, गंगा के मैदानी इलाकों की 60 करोड़ से अधिक जनसंख्या आज वायू प्रदूषण और पर्यावरण परिवर्तन के सबसे बड़े खतरों से जूझने के लिए मजबूर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वाराणसी के साथ-साथ भारत के जो 5 बड़े शहर 2.5 माइक्रोन डायमीटर(PM 2.5) या उससे कम के कणों से प्रदूषित हैं, उनमें कानपुर,फरीदाबाद, गया और पटना जैसे शहर भी शामिल हैं। ये कण दिल के रोगों के अलावा, सांस सबंधी रोगों और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार माने जाते हैं। अगर पीएम 10 (PM 10) के आधार पर भी प्रदूषण को आंकें तो विश्व के 15 में से 11 शहर भारत में हैं। ये कण सिर्फ इंसान के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि ग्रीनहाऊस के प्रभाव वाले लक्षणों के कारण पृथ्वी के तापमान को भी असमान्य ढंग से बढ़ा रहे हैं। इसके कारण गंगा के मैदानी इलाकों में गर्मी असमान्य रूप से बढ़ रही है और मानसून भी असामान्य हो चुका है।

वायु प्रदूषण का मानव पर असर

वायु प्रदूषण का मानव पर असर

दावे के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण वाराणसी आने वाले सैलानियों को भी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। इसके कारण वे गंगा में सैर के लिए जाने से कतराने लगे हैं। इसका असर नाव चलाकर आजीविका कमाने वालों पर भी पड़ रहा है। वायु प्रदूषण पर रिसर्च करने वाले कुछ लोगों के हवाले से दावा किया गया है कि आज वाराणसी जैसे शहरों में भी वायु प्रदूषण की रोकथाम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सच्चाई ये है कि विश्व के विकसित देशों में हवा की गुणवत्ता सुधर रही है, लेकिन गरीब और विकासशील देशों में हालात खराब ही होते जा रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू और घर के बाहर के प्रदूषण की चपेट में आकर करीब 70 लाख लोगों की मौत हुई थी, जो कि हैदराबाद जैसे शहर की आबादी के बराबर है। इसमें अकेले करीब 24 लाख लोग दक्षिण-पूर्वी एशिया के थे। यानी अगर हवा और गंदा होता है तो हार्ट, लंग्स और सांस की बीमारियां बढ़ना भी तय है।

तापमान और बारिश पर असर

तापमान और बारिश पर असर

निश्चित है कि जिस रफ्तार में हवा की स्वच्छता बिगड़ती जा रही है, क्लाइमेट चेंज का खतरा भी बढ़ रहा है। इसका बुरा असर ये होगा कि तापमान में इजाफा होता जाएगा और बारिश की मात्रा घटती जाएगी। खतरनाक गैसों और हवा में मौजूद खतरनाक कणों के कारण इसका संकट और गहराता जा रहा है। जानकार बताते हैं कि एयरोसोल्स जैसे पदार्थ तो बादलों की प्रकृति तक बदल रहे हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि वायु प्रदूषण से पीड़ित इलाकों में अचानक अत्यधिक बारिश होने का भी खतरा रहता है, जो भीषण बाढ़ का शक्ल अख्तियार कर सकता है। 2016 के अगस्त में नागपुर और 2019 के फरवरी महीने में दिल्ली में हुई बारिश और आंधी-तूफान को इसका एक बड़ा कारण माना जा सकता है। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत का हिस्सा 7% था, जो कि 2016 के 6% से 1% बढ़ गया था। यानी इसकी रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में चीन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के बाद भारत दुनिया का चौथा कार्बन डायऑक्साइड (CO2)उत्सर्जक है। लेकिन, चिंता की बात ये है कि उन देशों में इसकी मात्रा घट रही है, लेकिन भारत में यह बढ़ती ही जा रही है। खास बात ये है कि इसके कारण प्रदूषित होने वाले दुनिया के 20 बड़े शहरों में भी ज्यादातर गंगा के मैदान में ही मौजूद हैं।

2011 की नासा (NASA)की एक स्टडी के मुताबिक गंगा का मैदान 'ग्लोबल एयरोसोल हॉटस्पॉट' बन चुका है, जिसके कारण हिमालय के बर्फ तेजी से पिघलने शुरू हो गए हैं। वहीं, अकेले के गंगा मैदान की बात नहीं है, मुंबई और हैदराबाद के आसपास के इलाके भी अध्यधिक प्रदूषित हैं। लेकिन, मुंबई में समुद्री हवाओं के कारण उसका असर सुस्त पड़ जाता है। आईआईटी दिल्ली के एक एसिस्टेंट प्रोफेसर के मुताबिक देश में कुल 130 स्वचालित वायु प्रदूषण मॉनिटरिंग सिस्टम हैं, जिनमें से 40 अकेले एनसीआर (NCR) में लगाए गए हैं। जबकि, भारत के करीब 500 जिले ऐसे किसी भी सिस्टम से अबतक वंचित रहे हैं। इसके कारण टियर-2 और टियर-3 जैसे शहरों के बारे में कुछ पता लगाना भी नामुमकिन है।

अब निगरानी पर दिया जा रहा है जोर

अब निगरानी पर दिया जा रहा है जोर

जनवरी 2019 में असामान्य वायु प्रदूषण और जनता के दबाव के कारण सरकार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) शुरू करने के लिए मजबूर हुई। 5 वर्षीय इस कार्यक्रम के तहत देश के 102 शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार पर जोर देना है। इसके तहत इस बात पर जोर दिया जाना है कि कम से कम खर्च में वायु प्रदूषण के आंकड़े जमा किए जाएं, ताकि उसके अनुसार उसे सुधारने के उपाय अमल में लाए जा सकें। एक्सपर्ट का मानना है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम सही दिशा में की गई पहल है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसपर और ज्यादा निवेश की आवश्यकता है।

लेकिन, राहत की बात ये है कि अगर निरीक्षण पर जोर रहेगा, तो धीरे-धीरे स्थिति में परिवर्तन भी आना संभव है। इसके लिए जनता में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता और सरकारी विभागों में संजीदा तालमेल बढ़ाने की भी जरूरत है, ताकि हालात की गंभीरता को समझते हुए सार्थक पहल हो सकें।

इसे भी पढ़ें- मोदी सरकार की FAME-2 स्‍कीम के बारे में जानने के ल‍िए ये पढ़ें

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English summary
air pollution and climate change effecting & changing lifes of more than 60 crores indians
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