सीएए पर केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद राज्यों का हस्तक्षेप हो जाएगा समाप्त
After the decision of the Central Government on CAA, the intervention of the states will end.र्केन्द्र सरकार द्वारा सीएए की प्रक्रिया ऑनलाइन की जा रही है ऐसा अगर होता है तो सीएए में राज्यों का हस्तक्षेप हो जाएगा समाप्त
बेंगलुरु। नागरिकता संशोधित कानून के विरोध में पिछले कई दिनों से हंगामा मचा हुआ हैं। संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद पूरे देश में लागू किए गए इस कानून का विरोध कई राज्यों की सरकारें कर रही हैं। अब तक केरल समेत कुल सात राज्यों की सरकार नागरिकता संशोधन बिल को अपने यहां लागू करने से इंकार कर चुकी हैं। लेकिन राज्यों में विपक्षी दलों द्वारा की जा रही राजनीति को मुंह तोड़ जवाब देने का अब केन्द्र सरकार ने मन बना लिया हैं। एक तरफ सीएए को लेकर लोगों में फैली भ्रान्तियों को जनसभाएं करके दूर करना आरंभ कर दिया है वहीं दूसरी ओर सीएए में राज्यों के विरोध को दरकिनार करते हुए सीएए के तहत नागरिकता देने की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन करने जा रही है।
सीएए के तहत नागरिकता प्रदान करने की समूची प्रक्रिया केंद्र द्वारा ऑनलाइन करने का उद्देश्य राज्यों को इस प्रक्रिया से बाहर करना है। केंद्र सरकार नागरिकता देने की प्रक्रिया को ऑनलाइन किए जाने के बाद इसमें जिलाधिकारियों की भूमिका खत्म हो जाएगी। कुछ राज्य इस नये कानून के खिलाफ हैं इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिलाधिकारी के जरिए नागरिकता के लिए आवेदन लेने की मौजूदा प्रक्रिया को छोड़ने के विकल्प चुनने वाली हैं।
इसलिए राज्य सरकार नहीं कर सकेंगी हस्तक्षेप
गौरतलब है कि राज्य सरकारों के पास सीएए के क्रियान्वयन को खारिज करने की कोई शक्ति नहीं है क्योंकि यह अधिनियम संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के तहत बनाया गया है। इस सूची में शामिल विषयों पर केंद्र सरकार को की कानून बनाने की शक्ति है। संघीय सूची में शामिल किसी कानून के क्रियान्वयन से इनकार करने का राज्यों को कोई शक्ति नहीं है। संघ सूची में 97 विषय हैं, जिनमें रक्षा, विदेश मामले, रेलवे, नागरिकता आदि शामिल हैं। उनके कानून बनाने के विषय दूसरे हैं जिनमें भू संपदा, कर संग्रह जैसी बातें शामिल हैं। कुछ विषयों जैसे कृषि पर दोनों यानी केंद्र व राज्य कानून बना सकते हैं।
इसके बाद राज्य नहीं कर सकेंगे हस्तक्षेप
गृह मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार ‘हम जिलाधिकारी के बजाय एक नये प्राधिकार को नामित करने और आवेदन, दस्तावेजों की छानबीन तथा नागरिकता प्रदान करने की समूची प्रक्रिया ऑनलाइन करने की योजना है। यदि यह प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन बन जाती है तो किसी भी स्तर पर कोई राज्य सरकार किस तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी।
राज्य इसलिए कर रहे विरोध
बता दें केरल के साथ पश्चिम बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित कुछ अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस कानून के असंवैधानिक होने की घोषणा की है और कहा कि इसके लिए उनके राज्यों में कोई जगह नहीं है। इतना ही नहीं केरल संशोधित नागरिकता क़ानून को वापस लेने की मांग वाला एक प्रस्ताव पारित करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। केरल विधानसभा द्वारा उठाया गया क़दम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा की सहयोगी जदयू के नेतृत्व वाले बिहार और ओडिशा सहित कम से कम सात राज्यों ने घोषणा की है कि वे क़ानून को लागू नहीं करेंगे।
पश्चिम बंगाल ने भाजपा पर ये लगाया आरोप
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था, आपके (भाजपा के) घोषणापत्र में विकास के मुद्दों के बजाय, आपने देश को विभाजित करने का वादा किया। नागरिकता धर्म के आधार पर क्यों दी जाए? मैं इसे स्वीकार नहीं करूंगी। हम आपको चुनौती देते हैं।आप लोकसभा और राज्यसभा में जबरन कानून पारित कर सकते हैं क्योंकि आपके पास वहां संख्या बल है. लेकिन हम आपको देश बांटने नहीं देंगे।
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि यह अधिनियम पूरी तरह से असंवैधानिक है. उन्होंने कहा, ‘इस पर कांग्रेस पार्टी में जो कुछ फैसला होगा हम छत्तीसगढ़ में उसे लागू करेंगे।
पंजाब
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इस अधिनियम को भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सीधा हमला करार देते हुए कहा कि उनकी सरकार अपने राज्य में इस कानून को लागू नहीं होने देगी।
मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम पर जो कुछ रुख अख्तियार किया है हम उसका पालन करेंगे. क्या आप उस प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहेंगे जो विभाजन का बीज बोती है।
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