TMC-NCP की चुनौती के बाद कांग्रेस के पास बच गए हैं सिर्फ 3 उपाय
नई दिल्ली, 2 दिसंबर: एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार अबतक कहते रहे थे कि बगैर कांग्रेस के भाजपा विरोधी किसी मोर्चे की बात करना बेमानी है। लेकिन, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात करने के बाद उनके टोन भी बदले हुए हैं और यह एक तरह से कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिरने जैसा है। क्योंकि, अबतक कांग्रेस मानकर चल रही थी कि बाय डिफॉल्ट वही भाजपा-विरोधी गठबंधन का नेतृत्व कर रही है। वह 10 साल तक यूपीए सरकार की अगुवाई भी कर चुकी है, लेकिन ममता ने अब उसके अस्तित्व को ही नकार दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस क्या करे? उसके पास क्या विकल्प हैं? अभी भी समय है और पार्टी अगर तीन चीजों का समाधान कर ले तो वह अभी भी ममता-पवार को अपने पीछे चलने को मजबूर कर सकती है।
ममता-पवार ने कांग्रेस को दी है बड़ी चुनौती
तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी ने मुंबई में कुछ सिविल सोसाइटी के सदस्यों से मिलकर और फिर एनसीपी चीफ शरद पवार से मुलाकात के बाद यही संदेश देने की कोशिश है कि कांग्रेस अब राजनीति को लेकर गंभीर नहीं रह गई है। ममता ने एक सवाल के जवाब में कहा भी है, 'वहां पर बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे, जहां कांग्रेस नहीं लड़ रही।' उन्होंने यूपी का उदाहरण देकर कहा है कि वहां क्षेत्रीय दल (समाजवादी पार्टी) भाजपा के खिलाफ जोरदार तरीके से लड़ रही है, इसलिए उनकी पार्टी वहां नहीं लड़ रही है। उन्होंने दूसरा उदाहरण महाराष्ट्र का भी दिया है, जहां महा विकास अघाड़ी की सरकार है और कांग्रेस भी उसकी एक घटक है। वो बोलीं, 'हम महाराष्ट्र को क्यों छेड़ेंगे।' उनके कहने का मतलब है कि यहां तो बीजेपी-विरोधी गठबंधन की सरकार चल ही रही है। 'लेकिन, जहां कोई संभावना नहीं होगी, जहां कांग्रेस नहीं लड़ रही है और बीजेपी बढ़ रही है, हम इसे बढ़ने नहीं देंगे।' इसपर शरद पवार ने कहा, 'लक्ष्य वैकल्पिक प्लेटफॉर्म देने का है, जो लोगों का भरोसा जीत सके। जो बीजेपी के खिलाफ हैं, उनका स्वागत है।'
कांग्रेस के सामने उपाय नंबर-1
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुंबई यात्रा से कांग्रेस के सामने जो परिस्थितियां पैदा हुई हैं,उसके बाद उसके पास जो पहला उपाय बचता है कि वह है आने वाले पांच विधानसभा चुनावों पर ईमानदारी से फोकस करना। पांच में से पंजाब में उसकी सरकार भी है। बाकी उत्तर प्रदेश को अगर छोड़ भी दें तो उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी पार्टी के पास अपना संगठन है। वह अगर ठीक से जमीन पर उतरे तो बीजेपी को टक्कर दे सकती है। इन पांचों राज्यों में तृणमूल कांग्रेस का अपना कोई भी वजूद नहीं है। भाजपा-मोदी विरोधियों की नजर में ममता पूरी तरह से कांग्रेस-विरोधी भी नहीं दिखना चाहतीं। उन्होंने कहा है कि, 'बीजेपी से वहां लड़ेंगे, जहां कांग्रेस नहीं लड़ेगी।' मतलब, साफ है कि 2024 में बीजेपी-विरोधी दलों का नेतृत्व करना है तो कांग्रेस को इन पांच राज्यों में से कम से कम चार में अपना प्रदर्शन सुधारना ही होगा। गोवा में उसे टीएमसी की जगह खुद सत्ताधारी भाजपा के मुकाबले में आना ही पड़ेगा। पार्टी अगर इसमें सफल हुई तो ममता जो माहौल बनाना चाह रही हैं, उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकती।
कांग्रेस के सामने उपाय नंबर-2
ममता बनर्जी सड़कों पर संघर्ष करके आज अपने लिए 7 लोक कल्याण मार्ग में घुसने का वातावरण बनाने की स्थिति में पहुंची हैं। कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व को भी अब सही मायने में ड्रॉइंग रूम पॉलिटिक्स से बाहर निकलना पड़ेगा। कांग्रेस को इस समय ऐसे नेतृत्व की दरकार है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद को भी धरातल पर चुनौती देता हुआ दिखे और ममता के आक्रामक तेवरों से अलग भाजपा-विरोध होने का ज्यादा स्वीकार्य विकल्प नजर आए। ममता बनर्जी ने किसी का नाम तो नहीं लिया है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने यह कहकर चुटकी ली है कि राजनीति में लगातार संघर्ष की आवश्यकता पड़ती है। उनके मुताबिक, 'अगर आप मस्ती के लिए विदेश चले जाते हैं, तो लोग आप पर कैसे विश्वास करेंगे?' विश्लेषकों का मानना है कि उनका इशारा बिना किसी पद के कांग्रेस की कमान संभाल रहे राहुल गांधी की ओर है। कांग्रेस के लिए यही सही मौका है कि वह पार्टी नेतृत्व को इस छवि से बाहर निकाले। सिर्फ विरोध के लिए विरोध करके वह बीजेपी के मुकाबले टिक पाएगी, यह बहुत ही मुश्किल है। अगर कांग्रेस पार्टी इस गंभीरता को जल्द समझ लेगी तो मोदी-विरोधी खेमा भी उसे फिर से गंभीरता से लेने लगेगा और तब तृणमूल कांग्रेस के लिए इसका मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा।
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कांग्रेस के सामने उपाय नंबर-3
2017 के गोवा विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पास बहुमत का आंकड़ा होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाने को लेकर ममता ने पार्टी पर फैसला नहीं ले पाने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कई और उदाहरण भी दिए हैं। यह आज की बात नहीं है। करीब डेढ़ साल पहले कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ही यही मुद्दा उठाया था, जो जी-23 के नाम से मशहूर हो चुके हैं और उनमें से ज्यादातर पर असंतुष्ट होने का ठप्पा लग चुका है। उन्होंने पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को लेकर बहुत जोर दिया था। यहां तक बात रखी गई थी कि एक ही परिवार के तीन-तीन लोगों (सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा) को प्रमोट करेंगे तो यह लंबी अवधि की राजनीति में नुकसान पहुंचाएगा। बीजेपी के लिए यह हमेशा से मुद्दा रहा है। जी-23 के नेताओं ने सोनिया को लिखी चिट्ठी में एक तरह से कलेक्टिव लीडरशिप की बात रखी थी। शरद पवार ने भी ममता से मिलकर भाजपा के खिलाफ नए विकल्प को लेकर यही कहा है, 'हमें सामूहिक नेतृत्व का एक ऐसा मंच चाहिए जो मजबूत हो और जिस पर देश के लोग विश्वास कर सकें। यह सोच आज के लिए नहीं, बल्कि 2024 के लिए है।' अगर कांग्रेस भाजपा-विरोधी दलों के किसी मोर्चे की अगुवाई करना चाहती है तो उसे पहले घर से ही इसकी शुरुआत करनी होगी। अगर वह इसमें सफल होती है तो अभी भी करीब ढाई साल हैं, बीजेपी और मोदी के मुकाबले कांग्रेस खुद को एक बेहतर विकल्प के रूप में पेश कर सकती है।