सपा से अलग होने के बाद पहली परीक्षा में ही बसपा फेल, हमीरपुर की हार पर भी इसलिए मुस्कुराए अखिलेश
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के हमीरपुर विधानसभा उपचुनाव को मायावती और बहुजन समाज पार्टी के लिए कई तरह से बड़ा झटका माना जा सकता है। अमूमन उपचुनाव से दूर रहने वाली बीएसपी ने इसबार हमीरपुर में भाग्य आजमाया भी तो उसे बुरी तरह से मात खानी पड़ गई। पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जितने वोट हासिल किए थे, उसे उसके आधे जुटाने के भी लाले पड़ गए, वह भी बुंदेलखंड के अपने जनाधार वाले इलाके में। वहीं समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को हारने के बावजूद चुनाव परिणाम से थोड़ी राहत जरूर मिली होगी। समाजवादी पार्टी इस बात पर सुकून कर सकती है कि लोकसभा चुनाव के महज चार महीने बाद ही उसने नंबर दो का अपना दर्जा वापस पा लिया है। तब बीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन करके उससे दोगुनी सीटें जीत ली थी। सपा-बसपा की इस कश्मकश के बीच भाजपा उपचुनाव जीत जरूर गई है, लेकिन उसकी जीत का स्वाद फीका रहा है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि हमीरपुर विधानसभा उपचुनाव ने पार्टियों को क्या संकेत दिए हैं।
मायावती की बढ़ी चुनौती
हमीरपुर विधानसभा उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी 2017 विधानसभा जैसे अपना प्रदर्शन भी बरकरार नहीं रख सकी। नौशाद अली को उतारकर मायावती ने मुस्लिम कार्ड चलने की कोशिश की थी, लेकिन पार्टी के लेने के देने पड़ गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां हमीरपुर में बसपा को 60,543 वोट मिले थे, वह इस बार आधे से भी घटकर सिर्फ 28,798 वोट ही रह गए। जाहिर है कि आने वाले दिनों में पार्टी में चीजों पर सवाल उठ सकते हैं और इसका असर आने वाले विधानसभा की 11 सीटों पर उपचुनाव में भी दिख सकता है। पार्टी के मनोबल के लिए बड़ा झटका ये भी कहा जा रहा है कि उसने उपचुनाव लड़ने का फैसला किया और वही उसको नुकसान कर गया और दूसरे स्थान बचाने की जगह वह बुरी तरह तीसरे पायदान पर खिसक गई।
बुंदेलखंड में भी बुरी तरह से पिछड़ने पर उठे सवाल
सबसे बड़ी बात ये है कि बसपा को इतना बड़ा झटका बुंदेलखंड इलाके में लगा है, जहां उसका जनाधार बेहद मजबूत माना जाता है। उपचुनाव के परिणाम से साफ है कि अगर यहां बुआ और बबुआ की पार्टी मिलकर चुनाव लड़ी होती तो भाजपा की हार तय थी। लेकिन, मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद अपनी मर्जी से अखिलेश यादव की पार्टी से गठबंधन तोड़ने का एकतरफा ऐलान किया था। माया का फैसला सिर्फ इसपर आधारित था कि आम चुनाव में गठबंधन नहीं चला था। पार्टी के अंदरखाने ये बात भी उठ रही है कि धारा-370 पर खुलकर समर्थन करने की जगह अगर मायावती मौन साध लेतीं तो ज्यादा बेहतर हो सकता था। क्योंकि, पार्टी में कुछ लोगों को लगता है कि धारा-370 का समर्थन करने से ये संकेत गया कि बीएसपी भाजपा के साथ जा रही है। इसके चलते मुसलमानों में संदेह का वातावरण बना और उन्हें मुस्लिम उम्मीदवार भी नहीं रिझा पाया।
हार ने भी जगाई अखिलेश की उम्मीद
ये तथ्य है कि हमीरपुर विधानसभा उपचुनाव में वोट प्रतिशत घटा है और समाजवादी पार्टी के पक्ष में पड़े वोटों में भी कमी आई है। लेकिन, फिर भी सपा के घटे वोटों का अंतराल कम है और वह बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर जगह बना पाने में कामयाब हुई है। इस चुनाव में उसे बसपा से दोगुना यानि 56,542 वोट मिले हैं। जबकि, 2017 में पार्टी ने 62, 233 वोट प्राप्त किए थे। लेकिन, इस हार में भी समाजवादी पार्टी को बड़ी जीत दिख रही है। उसे इस बात का सुकून है कि गठबंधन तोड़ने का फैसला मायावती ने किया और उन्हें जनता ने पिछली बार के मुकाबले आधे वोट भी नहीं दिए। जबकि, सपा ने अपने वोट लगभग बरकरार रखे हैं। यानि आगे जो उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उसको लेकर पार्टी का हौसला काफी बढ़ गया है।
जीत के बावजूद भी बीजेपी का स्वाद पड़ा फीका
हमीरपुर उपचुनाव बीजेपी भले ही जीत गई है, लेकिन इसने पार्टी मैनेजरों के कान जरूर खड़े कर दिए होंगे। कम वोटिंग होने से वोटों का नुकसान तो सभी दलों को हुआ है, लेकिन बीजेपी के नजरिए से देखें तो उसके लिए चौकन्ना हो जाने की जरूरत है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को यहां 1 लाख 10 हजार वोट मिले थे, लेकिन उपचुनाव में उसे 36 हजार से अधिक वोटों का नुकसान हुआ है। बीजेपी के लिए सोचने वाली बात ये भी है कि इसबार निषाद पार्टी भाजपा के साथ है, जबकि 2017 में वह अलग से चुनाव लड़ी थी। यानि, सपा और बसपा के मुकाबले वोटों के मामले में बीजेपी को लगा झटका ज्यादा बड़ा है। ऐसे में आने वाले 11 सीटों के उपचुनाव में उसे और ज्यादा जोर लगाने की आवश्यकता पड़ेगी।
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