377 के बाद समलैंगिक विवाह और अन्य अधिकारों की जंग शुरू, केंद्र करेगा विरोध!
नई दिल्ली। सेक्शन 377 पर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है उसके बाद केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह को लेकर किसी भी तरह की याचिका का विरोध करने का मन बना रही है। सेक्शन 377 को लेकर याचिका दायर करने वाले सुनील मेहरा ने कहा कि अगर समलैंगिक संबंध मौलिक अधिकार है तो लोगों को शादी करने का भी अधिकार है, उन्हें संपत्ति में बराबर का अधिकार, बीमा, जैसी तमाम सुविधाओं का भी अधिकार है। हम इन लोगों को अधिकार और स्वाभिमान की मांग कर रहे हैं और इससे इनकार करना असंवैधानिक है। मैं उन लोगों की बात को सुनकर आश्चर्यचकित हूं जो लोग कहते हैं कि हमें ये अधिकार नहीं मिल सकते हैं।
सरकार नहीं है पक्ष में
आपको बता दें कि गुरुवार को 493 पेज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में विस्तार से अपना फैसला सुनाया है, जिसमे कहा गया है कि कैसे समाज के नियम संविधान को नहीं चला सकते हैं, लोगों की आजादी को नहीं छीन सकते हैं। इससे पहले जुलाई माह में सरकारी वकील ने कोर्ट से कहा था कि सेक्शन 377 की सुनवाई सीमित हो और इसे घरेलू अधिकार तक लेकर नहीं जाए। गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में कई समलैंगिकों ने आपस में शादी की है और वह एक दूसरे के साथ रह रहे हैं।
शादी के लिए दूसरे देश जाना पड़ता है
कोर्ट में सेक्शन 377 की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने बताया कि कैसे उसे समलैंगिक विवाह करने के लिए विदेश जाना पड़ा। हमे शादी के लिए यूके, यूए जाना पड़ता है, जहां समलैंगिक विवाह कानूनी है और यह लोगों का अधिकार है कि वह किसी पार्टनर के साथ रहना चाहते हैं। इस मामले में दिल्ली स्थित एक उद्योगपति केशव सूरी ने कहा कि सही नहीं है कि दूसरे देश में मेरे अधिकार अपने देश की तुलना में अधिक हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस देश का समान नागरिक हूं, कोर्ट के फैसले ने हमे उम्मीद दी है और मुझे भारतीय होने पर गर्व है, मैं कुछ अन्य मसलों को लेकर याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा हूं।
लोगों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट के फैसले का कांग्रेस ने भी स्वागत किया है, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला से जब इस बारे में पूछा गया कि क्या कांग्रेस समलैंगिकों को सिविल राइठ देने के पक्ष में है, तो उन्होंने कहा कि यह सरकार पर निर्भर है कि वह इसपर अपना रुख साफ करे, इसके बाद हम इसपर अपनी राय देंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि समलैंगिकों को काफी पीड़ा से गुजरना पड़ता था, उन्हें उनके सेक्स को बदलने के लिए परेशान किया जाता था, ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि लोगों को इस तरह की हिंसा से बचाया जाए।
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