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कानून से चूहे- बिल्ली का खेल खेलने के बाद ICJ पहुंचे निर्भया के दोषी, जानिए क्या मिलेगी राहत?

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बेंगलुरू। पिछले 7 वर्षों से कानून और न्यायिक विकल्पों को फांसी टालने का जरिया बनाकर लगातार तीन डेथ वारेंट को कैंसिल कराने में सफल रहे गैंगरेप और मर्डर के दोषी निर्भया के चारो दोषी और उनके वकील एपी सिंह की हिमाकत ही कहेंगे कि अब उन्होंने चौथे डेथ वारेंट को रोक लगाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट और जस्टिस (ICJ) पहुंच गए हैं।

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यह अलग बात है कि उन्हें लेस मात्र भी चौथे डेथ वारेंट को अटकाने में सफलता नहीं मिलने वाली है, क्योंकि ऐसे केसों की सुनवाई आईसीजे के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता है। आईसीजे किसी देश के घरेलू विवादों को सुनवाई तक नहीं करता है। फिर आईसीजे कोर्ट के पास पहुंचे दोषियों और उनके वकील की मंशा क्या है, यह समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है, क्योंकि पिछले तीन महीने से निर्भया के दोषी फांसी टालने के लिए ऐसे ही तिकड़म करते आ रहे हैं।

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दरअसल, कानून और कानूनी लूप होल्स से खेलते आ रहे निर्भया गैंगरेप और मर्डर के चारो दोषियों में किए गए जघन्य अपराधों का अपराध बोध बिल्कुल नहीं है। यही कारण है कि वो लगातार कानूनी विकल्पों को हथियार बनाकर उससे खेल रहे हैं। सभी कानूनी विकल्पों से समाप्त होने के बाद दोषियों के परिवार की इच्छा मृत्यु की अपील भी इन्हीं तिकड़मों का हिस्सा है।

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निर्भया गैंगरेप और मर्डर के चारो दोषियों में जरा सभी अपराध बोध नहीं है। इसका मुजाहरा उनमें से एक दोषी मुकेश सिंह द्वारा एक इंटरव्यू दिया गया शर्मनाक बयान काफी है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि चारों को अपने कुकर्मों का बिल्कुल पछतावा नहीं है। यही नहीं, वो अपने कुकर्मों के लिए भी पीड़िता को ही दोषी मानते हैं और जो उन्होंने निर्भया के साथ किया, उसके लिए भी पीड़िता को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।

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इंटरव्यू में दिए बयान में दोषी मुकेश सिंह ने महिलाओं के बारे में अपनी छोटी और सतही सोच का परिचय देते हुए कहा था, 'शालीन महिलाओं को रात में नौ बजे के बाद घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए। दुष्कर्म के लिए लड़की हमेशा लड़के से ज्यादा जिम्मेदार होती है, लड़का और लड़की बराबर नहीं हैं। दोषी मुकेश सिंह यही नहीं रूका, उसी इंटरव्यू में दोषी मुकेश ने कहा वह कान में खून निकाल देने के लिए काफी है।

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बकौल मुकेश सिंह, उसे (निर्भया को) दुष्कर्म के वक्त विरोध नहीं करना चाहिए था, बल्कि उसे चुपचाप दुष्कर्म होने देना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो हम उसे बिना कोई नुकसान पहुंचाए छोड़ देते, और सिर्फ उसके दोस्त की पिटाई की जाती। लड़की को घर का काम करना चाहिए, न कि रात को डिस्को या बार में जाकर गलत काम करने और खराब कपड़े पहनने चाहिए'।

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मुकेश सिंह और उसके साथियों की यही सतही सोच और महिलाओं के प्रति उनकी रूढ़िवादी मानसिकता का परिणाम कहेंगे कि गत 16 दिसंबर, 2012 की घटना के करीब 8 वर्ष बाद भी उनकी आंखों में कभी पछतावा नहीं दिखा। घटना वाले दिन गैंगरेप के बाद निर्भया को अधमरा करने वाले दोषी मुकेश सिंह को पिछले 8 वर्षों में एक बार गिड़गिड़ता हुआ नहीं देखा गया।

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गौरतलब है देश शीर्ष कोर्ट द्वारा फांसी की सजा पा चुके चारो दोषी क्रमशः मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर और विनय शर्मा ने गत 12 दिसंबर, 2012 को 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली हरकत की थी, जिसने पूरे देश को हिला दिया था।

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महिलाओं को लेकर निर्भया के दोषियों की बीमार सोच उजागर होने और अब फांसी को टालने के लिए उनके शातिर तरीके देख-सुनकर किसी भी आम इंसान में खून में उबाल आना स्वाभाविक है। दिल्ली के कोर्ट ने चारो दोषियों को फांसी पर चढाने के लिए चौथा डेथ वारेंट 20 मार्च, सुबह 5:30 बजे मुकर्रर की है और वो उसे भी कैंसिल करवाने के लिए आईसीजे पहुंच गए हैं, क्योंकि फांसी का टालने के सभी विकल्प भारत में अब उनके खत्म हो चुके थे।

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1 मार्च को दिल्ली कोर्ट ने दोषियों का तीसरा डेथ वारेंटर रद्द कर दिया था

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इससे पहले, चारो दोषियों के लिए दिल्ली की कोर्ट ने गत 1 मार्च को चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए तीसरा डेथ वारेंट जारी किया था, लेकिन दोषी पवन गुप्ता की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबति होने की वजह वह डेथ वारेंट भी कैंसिल हो गया था

दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए 20 मार्च जारी हुआ चौथा डेथ वारेंट

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लेकिन जब राष्ट्रपति ने पवन गुप्ता की भी दया याचिका का खारिज कर दिया तो लगा था कि अब चारो दोषियों के लिए जारी किया चौथा डेथ वारेंट, जो कि 20 मार्च के लिए जारी हुआ है, उसको चुनौती नहीं दी जा सकेगी, लेकिन शातिर मुकेश सिंह बाज नहीं आया और उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फांसी को लटकाने के लिए एक नया शिगूफा छोड़ दिया है और इस बार वह फांसी को जुलाई, 2021 तक खींचना चाहता था।

अब चारो दोषी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय फरियाद लेकर चले गए हैं

अब चारो दोषी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय फरियाद लेकर चले गए हैं

सुप्रीम कोर्ट में यह शिगूफा काम नहीं आया तो चारो दोषी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय फरियाद लेकर चले गए, लेकिन दरिंदों और उनके वकील को इतनी अक्ल नहीं होगी कि संयुक्त राष्ट्र का प्राथमिक न्यायिक अंग आईसीजे सिर्फ दो देशों के बीच विवादों का निपटारा करता है। यह मानना मुश्किल हैं।

अब दुनिया की कोई भी अदालत उनकी सजा को नहीं पलट सकती है

अब दुनिया की कोई भी अदालत उनकी सजा को नहीं पलट सकती है

निर्भया केस भारत का घरेलू मामला है और जब तक कोई दूसरा देश निर्भया कांड में शामिल नहीं होता है, आईसीजे उसकी सुनवाई तो छोड़िए नोटिस भी नहीं करता है। अब यह है कि चौथे डेथ वारेंट के दिन यानी 20 मार्च को चारों का एक साथ फांसी पर चढ़ाया जाना तय है, क्योंकि अब दुनिया की कोई भी अदालत उनकी सजा को नहीं पलट सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाना हास्यास्पद प्रयास है

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाना हास्यास्पद प्रयास है

ICJ चारो दोषियों और उनके वकील एपी सिंह की आखिरी कोशिश है, जो सिर्फ भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं है ताकि वो जारी किए गए चौथे डेथ वारेंट को कैंसिल करवाने में सफल हो सकें। लेकिन मौजूदा परिदृश्य में यह असंभव प्रतीत होता है। दोषियों में शामिल तीन दोषी अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा और पवन गुप्ता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाना महज एक हास्यास्पद प्रयास है, क्योंकि निर्भया मामले पर ICJ का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

फांसी टालने के लिए राष्ट्रपति को इच्छा मृत्यु वाले भावनात्मक पत्र लिखे गए

फांसी टालने के लिए राष्ट्रपति को इच्छा मृत्यु वाले भावनात्मक पत्र लिखे गए

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2021 तक फांसी को टालने के लिए दोषी मुकेश सिंह दायर याचिका को खारिज कर दिया था। मुकेश सिंह ने आरोप लगाया था कि उनके वकीलों ने उन्हें अंतिम कानूनी उपाय दायर करने में गुमराह किया था। यह भी निर्भया के दोषियों की एक व्यर्थ की चाल थी। यह चाल फेल हुआ तो दोषियों के माता-पिता, भाई-बहन और बच्चों द्वारा राष्ट्रपति को इच्छा मृत्यु वाले भावनात्मक पत्र भेजने की सूचना सामने आई।

हमारे देश में "महापापी" (महान पापी) को भी क्षमा किया जाता रहा हैं

पत्र में लिखा गया था, "हम आपसे (राष्ट्रपति) और पीड़िता के माता-पिता से अनुरोध करते हैं कि वे हमारे अनुरोध को स्वीकार करें और हमें इच्छामृत्यु की अनुमति दें और भविष्य में होने वाले किसी भी अपराध को रोकें, ताकि निर्भया जैसी कोई दूसरी घटना न हो अदालत को एक के स्थान पर पांच लोगों को फांसी नहीं देनी चाहिए। हमारे देश में, यहां तक ​​कि "महापापी" (महान पापी) को भी क्षमा किया जाता रहा हैं। बदले में नहीं बल्कि क्षमा में शक्ति है। साथ ही पत्र में यह भी कहा कि कोई ऐसा अपराध नहीं है जिसे माफ नहीं किया जा सकता हो।

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English summary
This time Nirbhaya convicts are not going to get success in trapping the fourth death warrant, because hearing of such cases does not come under the jurisdiction of the ICJ itself. The ICJ does not even listen to a country's domestic disputes. Then it is not difficult to understand what is the intention of the convicts and their lawyers who have reached the ICJ court, because for the last three months, Nirbhaya convicts have been doing similar tricks to avoid hanging.
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