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नागार्जुन के बाद आधुनिक हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवि थे केदारनाथ

पहले कुंवर नारायण, फिर चंद्रकांत देवताले और अब केदारनाथ सिंह. एक साल से भी कम समय में हमारे समय के तीन सबसे महत्वपूर्ण कवि एक के बाद एक करके दुनिया से विदा लेकर चले गए.

हिंदी कविता के लिए ये बेहद दुखद समय है. 70-80 साल को पार करने वाली पूरी पीढ़ी विदा लेकर चली गई है. हमारे सामने एक बड़ा सन्नाटा हो गया है, एक शून्य खिंच आया है.

 

By BBC News हिन्दी
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केदारनाथ सिंह
Facebook/Positive Politics/BBC
केदारनाथ सिंह

पहले कुंवर नारायण, फिर चंद्रकांत देवताले और अब केदारनाथ सिंह. एक साल से भी कम समय में हमारे समय के तीन सबसे महत्वपूर्ण कवि एक के बाद एक करके दुनिया से विदा लेकर चले गए.

हिंदी कविता के लिए ये बेहद दुखद समय है. 70-80 साल को पार करने वाली पूरी पीढ़ी विदा लेकर चली गई है. हमारे सामने एक बड़ा सन्नाटा हो गया है, एक शून्य खिंच आया है.

अब नए लोगों को कविता लिखने के लिए प्रेरित करने वाले, उम्मीद जगाने वाले शायद बहुत कम बड़े कवि बचे हैं.

केदारनाथ सिंह हिंदी के ऐसे अनोखे कवि थे जिन्होंने लोक संवेदना, ग्रामीण संवेदना और कस्बाई संवेदना, इन तीनों के लिए आधुनिक हिंदी काव्य भाषा के बीच में जगह बनाई और उसे विकसित किया.

एक हद तक ये काम सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने भी किया था, लेकिन केदारनाथ जी ने इस काम को बड़ी गहराई दी.

केदार जी की यात्रा नवगीत से शुरू हुई थी. उनके नवगीतों का संग्रह 'अभी, बिलकुल अभी' हिंदी में बहुत चर्चित रहा. आज भी, जब हिंदी में नवगीतों की परंपरा लगभग खत्म हो गई है, उनके नवगीत आज भी लोगों को आकर्षित करते हैं.

'गिरने लगे नीम के पत्ते, बढ़ने लगी उदासी मन की'...इस तरह के जो उनके गीत हैं वो सहज ही लोगों के दिलों में बस गए थे.

इसके बाद वो कस्बाई संवेदना के बीच आए. बनारस में लंबे समय तक रहने के बाद फिर वे पढ़ाने के लिए अपने कस्बे पढ़रौना चले गए. लंबे समय तक शिक्षक रहे. वहां से वे जवाहर लाल नेहरू विश्वविधालय आए. यहां आने के बाद से उनकी कविताओं में एक आधुनिक रूप उभरना शुरू किया.

वे तीसरा सप्तक के महत्वपूर्ण कवियों में थे. ये तब प्रकाशित हुई थी, जब वे बनारस में थे. वहां से होते हुए, नई कविता से होते हुए वे प्रगतिशील संवेदना तक कवि के तौर पर उनकी यात्रा रोमांचक और सार्थक रही.

दस्तावेज़ की तरह है उनकी संग्रह

आधुनिक कविताओं का उनका पहला संग्रह है 'ज़मीन पक रही है'. यह अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रह है. इस संग्रह से उनके प्रगतिशील होने की तरफ बढ़ने के संकेत मिल सकता है. उसके बाद उनके कई काव्य संग्रह आए, सब महत्वपूर्ण हैं.

उनका अंतिम काव्य संग्रह है 'सृष्टि पर पहरा'. कई अर्थों में यह महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. एक तो पर्यावरण संबंधी चिंताएं हैं, दूसरे उनकी राजनीतिक वक्तव्यों वाली कविताएं भी हैं. इन सबके साथ इसमें संसार से जाने की उदासी भी है, अपने ही भविष्य को लेकर जो चिंताएं होती हैं वो भी इस संग्रह की उनकी कविताओं में दिखती है.

उनकी लिखी कविताओं का असर कितना होता है, इसे बनारस से समझा जा सकता था. बनारस कविता, बनारस को ऐसे परिपेक्ष्य में देखती है जैसे पहले कभी नहीं देखा गया. बनारस पर काफी कुछ लिखा गया, उसके सांस्कृतिक महत्व को शायद सब लोग जानते हैं लेकिन बनारस को कभी इस तरह नहीं देखा गया जिस तरह से केदार जी ने देखा. बहुत गंभीर होते हुए भी बेहद लोकप्रिय कविता है.

केदारनाथ सिंह
BBC
केदारनाथ सिंह

कविता को बनायालोकप्रिय

ऐसी एक और कविता है नूर मियां. ये कविता देश के विभाजन पर, बढ़ती हुई सांप्रदायिकता और मुसलमानों की मुश्किलों पर महत्वपूर्ण टिपण्णी की. हालांकि उनका स्वर बहुत मुखर नहीं था, वे बेहद कम शब्दों में सहज अंदाज़ में कविता लिखा करते थे. लेकिन बिना मुखर हुए वे अपने को व्यक्त करते रहे, ये स्वर उनमें हमेशा बना रहा. उन्होंने इसी स्वर में कई महत्वपूर्ण कविताएं लिखीं.

केदार जी हिंदी के उन चुनिंदा कवियों में शामिल हैं जिन्होंने कविता को लोकप्रिय बनाया. उनकी कविता इस बात का उदाहरण है कि कैसे गंभीर होते हुए कविता को लोकप्रिय बनाया जा सकता है. उन्होंने गंभीर कविता और लोकप्रिय कविता के बीच के अंतर को पाटा.

वो खुद भी बेहद लोकप्रिय थे. मेरे ख्याल से आधुनिक हिंदी में बाबा नागार्जुन के बाद उनके जितना लोकप्रिय शायद ही कोई कवि रहा होगा.

उनके शिष्यों, जो बहुत हैं, के अलावा समाज में ऐसे ढेरों लोग हैं जो उनकी कविताओं को पढ़ते रहे, उनसे प्रेम करते रहे. गांव, कस्बे से लेकर वो जहां जहां गए- रहे, वहां के लोग उनको अपना.

उनके पेश करने का तरीका

केदार जी की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि वे अनुभव को बेहद आत्मीय और आत्मीय ढंग से पेश करते रहे. उनमें कोई ओढ़ी विद्धता या विद्धता का कोई विकार नहीं था. वे हमेशा देहाती, गांव के आदमी बने रहे. उनका मूल स्वभाव भी यही था.

इसलिए उनकी कविताओं में गांव से कस्बे में आने का, कस्बे से दिल्ली जैसे बड़े शहर में आने का तनाव भी दिखता है. ऐसे तनाव का इस्तेमाल जिस तरह से वो कविताओं में इस्तेमाल करते हैं वो भी अनोखा है.

दिल्ली के बारे में उनकी एक कविता देखिए- 'बारिश शुरू हो रही है, बिजली गिरने का डर है, वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर हैं.'

राजनीतिक टिप्पण्णियां भी उनके कविता में बखूबी मिलती हैं. उनकी लिखी एक गजल है-

'एक शख्स वहां जेल में है, सबकी ओर से

हंसना भी यहां जुर्म है क्या, पूछ लीजिए

अब गिर गई जंजीर, बजाएं तो क्या भला'

https://twitter.com/manojsinhabjp/status/975949738125148160

ऐसी टिप्पण्णियां मिलती हैं, लेकिन लोगों को उम्मीद थी कि वो ज्यादा मुखर होकर राजनीतिक हालात पर टिप्पण्णी करेंगे, लेकिन हर कवि का अपना शिल्प होता है.

केदार जी की कविताओं में सौंदर्य के दर्शन होते हैं. जीवन में सुंदरता और कोमलता कहां कहां मिल सकती है, उनकी कविताएं हमें वह टटोलने में मदद करती है, उन जगहों पर वे हमें ले जाते हैं.

उनकी एक कविता है सृष्टि पर पहरा. वे लिखते हैं-

'कितना भव्य था

एक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी पर

तीन चार पत्तों का हिलना

उस विकट सुखाड़ में

सृष्टि पर पहरा दे रहे थे

तीन चार पत्ते'

केदारनाथ सिंह
BBC
केदारनाथ सिंह

इस कविता के माध्यम से उन्हें उम्मीद है कि रेगिस्तान में तीन चार पत्ते भी हैं तो सृष्टि का निर्माण कर सकते हैं.

उनकी एक सशक्त एवं मार्मिक कविता है-

'मैं जा रही हूं- उसने कहा.

जाओ- मैंने उत्तर दिया

ये जानते हुए कि जाना

हिंदी की सबसे खौफ़नाक क्रिया है'

इस छोटी से कविता में देख लीजिए जीवन और वियोग की पूरी दुनिया छुपी है. एक और कविता में वे लिखते हैं-

'उसका हाथ

अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा

दुनिया को

हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए'

अब देखिए हाथ की उष्मा से दुनिया की तुलना. एक कवि यही तो करता है छोटी छोटी चीज़ों के माध्यम से अपना बड़ा वक्तव्य सामने रखता है.

केदार जी जितने सहज कवि थे, उतने ही सरल और मार्मिक मनुष्य भी थे. आत्मीयता से लोगों से मिलते थे. वे कविता के बारे में बात नहीं करते थे.

अपने बारे में और अपनी कविताओं के बारे में तो बिलकुल नहीं, ये उनको पसंद नहीं था.

कई जगहों पर मैंने देखा कि कविता पढ़ने से पहले अगर उनके परिचय में कुछ ज्यादा बोला जाता तो वो टोक देते, रहने दीजिए बहुत हो गया.लेकिन पढ़रौना के अपने दोस्तों नूर मियां, कैलाशपति निषाद जैसे दोस्तों को बारे में खूब बात करते थे. साल में दो-तीन पर अपने गांव ज़रूर जाते रहे. अपने लोगों के बीच बैठते थे, वही उनका संसार बना रहा.

उनके जीवन में पत्नी के निधन का सन्नाटा भी दिखता है, अक्सर उनके बारे में बातें करते थे. उन्होंने अपने अकेलेपन को पत्नी को समर्पित करते हुए भी कविताएं लिखी हैं. हिंदी में पत्नी पर लिखी बहुत कविताएं हैं और उनमें केदार जी की कविता बहुत अच्छी है.

मां और पिता पर भी उन्होंने कविताएं लिखी हैं. पिता पर लिखी कविता की पंक्ति दिलचस्प- 'जिस मुंह ने मुझे चुमा था, अंत में उस मुंह को मैंने जला दिया.'

दरअसल उनके सरोकार भी बहुत थे. भाषा को लेकर भी. भोजपुरी में उन्होंने तमाम कविताएं लिखी हैं. भिखारी ठाकुर बहुत मार्मिक कविता लिखी है उन्होंने, संभवत भिखारी ठाकुर पर ये पहली कविता है.

वैसे संयोग ये है कि उनका अंतिम संग्रह है सृष्टि पर पहरा, उस संग्रह की अंतिम कविता है- 'जाऊंगा कहां.' ऐसा लगता है कि ये उनका अंतिम वक्तव्य है-

'जाऊंगा कहां, रहूंगा यहीं

किसी किवाड़ पर

हाथ के निशान की तरह

पड़ा रहूंगा

किसी पुराने ताखे

या संदूक की गंध में

छिपा रहूंगा मैं

दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में

अपने स्थायी पते के

अक्षरों के नीचे

या बन सका

तो ऊंची ढलानों पर

नमक ढोते खच्चरों की

घंटी बन जाऊंगा

या फिर मांझी के पुल की

कोई कील

जाऊंगा कहां

देखना

रहेगा सब जस का तस

सिर्फ मेरी दिनचर्या बदल जाएगी

सांझ को जब लौटेंगे पक्षी

लौट आऊंगा मैं भी

सुबह जब उड़ेंगे

उड़ जाऊंगा उनके संग...'

तो केदार जी भी उड़ गए लेकिन वे कहां कहां रहेंगे, यह उन्होंने पहले ही बता दिया है.

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English summary
After Nagarjuna Kedarnath was the most popular poet of modern Hindi
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