आख़िर कितने चरमपंथियों ने किया था पठानकोट पर हमला
आज से ठीक तीन साल पहले भारतीय वायुसेना के पठानकोट सैन्य बेस पर चरमपंथियों ने हमला बोला था.
जवाबी कार्रवाई में वायुसेना ने चरमपंथियों के मंसूबों को कुचलते हुए अपने अभियान को अंजाम दिया.
पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए इस हमले में कुल आठ लोगों की जानें गई थी.
उस जवाबी कार्रवाई में शामिल रहे एयर मार्शल एसबी देव हाल ही में वायुसेना के उप प्रमुख के पद से रिटायर हुए हैं.
आज से ठीक तीन साल पहले भारतीय वायुसेना के पठानकोट सैन्य बेस पर चरमपंथियों ने हमला बोला था.
जवाबी कार्रवाई में वायुसेना ने चरमपंथियों के मंसूबों को कुचलते हुए अपने अभियान को अंजाम दिया.
पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए इस हमले में कुल आठ लोगों की जानें गई थी.
उस जवाबी कार्रवाई में शामिल रहे एयर मार्शल एसबी देव हाल ही में वायुसेना के उप प्रमुख के पद से रिटायर हुए हैं.
रिटायरमेंट के बाद एयर मार्शल एसबी देव ने बीबीसी से बात करते हुए पठानकोट हमले से जुड़े अपने अनुभवों और कुछ अहम सवालों के जवाब दिए हैं.
सवालः पठानकोट चरमपंथी हमले को तीन साल पूरे होने वाले हैं, आप उस अभियान में शामिल रहे थे. आपको आज भी इस ऑपरेशन से जुड़ी कौन सी चीज़ याद है?
जवाबः हम जब किसी एयरफील्ड पर हमले की बात करते हैं तो इसके मायने ही बदल जाते हैं. पठानकोट वायुसेना अड्डा जम्मू-कश्मीर जैसे विवादित क्षेत्र में स्थित नहीं था. बल्कि पंजाब जैसे राज्य में स्थित है. और वायुसेना अड्डों की उस तरह सुरक्षा नहीं की जाती है जिस तरह देश की सीमाओं की सुरक्षा की जाती है.
इसकी वजह ये है कि वे हमारे ही देश में स्थित होते हैं. लेकिन वायुसेना के अड्डों को हवाई हमले की स्थिति से बचाने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम किए जाते हैं. ऐसे में वायुसेना अड्डा एक आसान शिकार है.
लेकिन मुझे ये अब तक समझ नहीं आया कि सरकार इस मुद्दे को लेकर बचाव की मुद्रा में क्यों थी. इस अभियान को सही तरीक़े से अंजाम दिया गया था.
सवालः सरकार की किस प्रतिक्रिया से आपको लगा कि वे रक्षात्मक मुद्रा में हैं?
जवाबः मुझे ये सच में पता नहीं है. लेकिन उस दौरान मीडिया में एक मज़बूत अभियान चलाया गया जिसमें तीस साल पुरानी बातों की आलोचना की गई.
लोगों ने भारतीय वायुसेना के स्पेशल कमांडो फ़ोर्स 'गरुड़' के बारे में ग़लत बयानबाज़ी की. अगर इस सुरक्षाबल की क़ाबिलियत जाननी है तो भारतीय सेना से समझना चाहिए.
इस सुरक्षाबल ने अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र हासिल किया हैं. ऐसे में सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में होने की ज़रूरत नहीं थी.
चलिए, अब बात करते हैं कि लेफ़्टिनेंट कर्नल निरंजन की. उन्हें जिस तरह से प्रेस में कवरेज मिली. वो राजद्रोह था. मैं कल्पना नहीं कर सकता था. अफ़वाहें उड़ाई गईं कि वह सेल्फ़ी ले रहे थे. इसके बाद गरुड़ टीम बेहद आहत थी. वे मेरे पास आए और उन्होंने मुझे मीडिया में छप रही तमाम ख़बरें दिखाईं और बताया कि किस तरह की स्टोरीज़ को प्रेस में लीक किया जा रहा है.
सवालः क्या सरकार के रक्षात्मक मुद्रा में नहीं होने से सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ता?
जवाबः बिल्कुल, मेरे मुताबिक़ सरकार को बचाव करने की मुद्रा में नहीं होना चाहिए था. पठानकोट में चरमपंथी हमले के बाद मज़बूती से जवाबी कार्रवाई की गई.
लेकिन एक वायुसेना अड्डा ऐसी जगह होती है जहां पर कई जगहों को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसी जगह पर ईंधन और हवाई जहाज़ जैसी तमाम चीज़ें होती हैं जिन पर हमला किया जा सकता है. लेकिन हम सब कुछ बचाने में कामयाब रहे.
सवालः क्या आपने सरकार से इस मुद्दे पर बात की थी कि रक्षात्मक मुद्रा में दिखने का सुरक्षाबलों के मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ रहा था?
जवाबः हां, मैंने कुछ मौक़ों पर इस बारे में बात की. लेकिन गरुड़ टीम ने अपने आपको कश्मीर में साबित किया है. इसके बाद मेरे कुछ कहने की गुंजाइश काफ़ी कम है.
सवालः आपके मुताबिक़, लोगों को पठानकोट को किस तरह याद रखना चाहिए?
जवाबः हमने पठानकोट से दो सबक़ सीखे हैं. एक तकनीकी सबक़ है. हम ये हमेशा से जानते थे कि अगर कभी पठानकोट चरमपंथी हमले जैसी घटना होती है तो उस स्थिति में 5.56 कैलिबर की बंदूक़ें किसी काम की नहीं होती हैं.
चरमपंथी यहां पर अपने आपको स्टेरॉइड और इंजेक्शन लगाकर पागल कुत्तों की तरह आते हैं. उनके अंदर डर ख़त्म हो जाता है.
आप ये कहेंगे कि तीन साल बीत गए हैं और इंटीग्रेटेड पेरीमीटर सिक्योरिटी सिस्टम जैसी व्यवस्था को पुख़्ता बनाए जाने की दिशा में क्या हुआ है. ऐसे में मैं आपको आश्वासन देना चाहता हूं कि काम हो रहा है और प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया में समय लगता है. और ये पहला सिस्टम है जो हम स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसे में ये कहना चाहूंगा कि इसमें थोड़ा ज़्यादा समय लग गया है लेकिन इस पर काम चल रहा है. ऐसे में जैसे ही इस सिस्टम को अड्डों पर शुरू कर दिया जाता है तो उसके बाद ऐसी घुसपैठ के मामले सामने नहीं आएंगे.
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सवालः एनआईए के मुताबिक़, जब चरमपंथी मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस शेड और गाड़ियों को नुक़सान पहुंचा रहे थे तो वो सबकी नज़रों से बच गए.
जवाबः मुझे बताने दीजिए कि उनकी योजना क्या थी. वो ये चाहते थे कि वे एमईएस शेड से एक गाड़ी हासिल करके वायुसेना अड्डे के अंदर घुस सकें. मुझे याद है कि हमें तीन बजे पता चला कि वह अंदर थे.
हमें ये नहीं पता था कि वे हमारी ओर आ रहे हैं. तत्कालीन एयर ऑफ़िसर इन चार्ज (एओसी) धामून इस मुद्दे पर मौन हैं क्योंकि मुझे लगता है कि उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया गया.
सुबह के समय उन्हें पता था कि एक चेतावनी जारी की गई थी लेकिन उस समय भी अनिश्चितता थी. लेकिन ये निश्चित है कि जब ये संकेत मिला कि वायुसेना अड्डे पर ख़तरा हो सकता है, उस वक़्त तक चरमपंथी अड्डे में घुस चुके थे.
दूसरी बात ये थी कि उनकी योजना एक व्हीकल को हाइजैक करना था. हम इसी को लेकर चिंतित थे. क्योंकि एक बार कोई व्हीकल मिल जाने पर वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से जा सकते थे.
वह वायुसेना अड्डे में विध्वंस मचा सकते थे. वहां पर राडार, मिसाइल और कई अहम उपकरण मौजूद थे. व्हीकल हाइजैक की कोशिश असफल करने से हमें फ़ायदा मिला.
जब हमारे सामने ये स्थिति स्पष्ट हो गई कि चरमपंथी टेक्नीकल एरिया में नहीं थे तब हमने वायुसेना अड्डे को खोले रखा ताकि एनएसजी कमांडो आ सकें.
सवालः अगर चरमपंथी किसी गाड़ी को लेकर वायुसेना अड्डे में अलग-अलग स्थानों पर जाना चाहते थे तो उनके पास एक पूरा दिन था. ऐसे में उन्हें इस चीज़ से किसने रोका?
जवाबः हमला करने का सही समय हमेशा देर रात होता. वे सुबह चार बजे तक बेस पहुंचे लेकिन तब तक वायुसेना अड्डा में लोग जाग गए थे. ऐसे में वो हमला करने का सही समय नहीं था. सही समय दो घंटे पहले था. और उन्हें गोलीबारी करने की स्थिति में होने के लिए थोड़ा आराम भी करना था. ऐसे में उनका इंतज़ार करना ठीक था.
जब मैं वहां पर था तो गोलीबारी शुरू हो चुकी थी. ऐसे में जब गोलीबारी शुरू हो गई तो मैं वापस नहीं जा सका. वो समय बहुत ख़राब था.
सवालः अगर आपने पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी तो डीएससी के जवान हथियारों के साथ नहीं थे?
जवाबः मैं आपसे सहमत हूं. उन लोगों को हथियारों के साथ होना चाहिए था. उन्हें खुले में नहीं आना चाहिए था. अगर वो अंदर ही रहते तो घायल होने वाले लोगों की संख्या कम होती.
सवालः आप एक ऐसे ऑपरेशन के बारे में क्या कहना चाहते हैं जिसके ख़त्म होने के बाद भी पता नहीं चला कि इसमें कितने चरमपंथी शामिल थे.
जवाबः कुछ चीज़ें हमेशा अनिश्चित रहती हैं.
सवालः आख़िर वहां पर कितने चरमपंथी थे? अगर वहां पर चार चरमपंथी थे तो उन्हें दो जनवरी को मार दिया गया था. अगर वहां पर छह चरमपंथी थे जो कि एनआईए की जांच के मुताबिक़ नहीं थे, तो ऑपरेशन इतना लंबा क्यों चला?
जवाबः एनआईए को बेहतर पता होगा. मुझे सच में कुछ नहीं पता है. एक वैज्ञानिक जांच ही इसे प्रमाणित कर सकती है. लेकिन हम मानते हैं कि वहां पर अंदर कोई मौजूद था लेकिन जब आप पर गोलीबारी होती है तो अजीबोग़रीब चीज़ें होने लगती हैं.
सवालः जब पाकिस्तानी जांच अधिकारियों को वायुसेना अड्डे के अंदर ले जाया गया तो क्या इस बारे में वायुसेना से परामर्श किया गया था.
जवाबः जी, हमसे इस बारे में बात की गई थी. लेकिन उन्हें ऐसा कुछ नहीं दिखा जो कि वे गूगल से नहीं देख सकते हैं.
सवालः आपके मुताबिक़, रफ़ाल विवाद का वायुसेना पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
जवाबः इससे विमानों के भारत में आने की प्रक्रिया धीमी होगी. सुरक्षा इंतज़ामों से समझौता किया जाएगा और हम इस देरी के लिए ज़्यादा पैसा ख़र्च करेंगे.