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कांग्रेस को अलग-थलग कर ‘तीसरा मोर्चा’ बनाने की तैयारी में जुटी मायावती

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले क्या देश में तीसरा मोर्च फिर से शक्ल लेगा। इस बात की चर्चा तो होती रही है लेकिन कुछ राज्यों में एक दूसरे का साथ देने के अलावा देश के स्तर पर गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दल अभी तक कुछ ठोस नहीं कर पाए हैं। वाम दल हमेशा से तीसरे मोर्च की वकालत करते रहे हैं लेकिन वो समीकरण नहीं बना पा रहे हैं लेकिन अब खबर है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती तीसरे मोर्चे की धूरी बन सकती हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से किनारा कर मायवती ने तीसरे मोर्चे को शक्ल देने की तैयारी शुरु कर दी है। कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा है कि काग्रेस, बीजेपी की ही तरह क्षेत्रीय और छोटे दलों को खत्म करना चाहती है। मायावती इस कोशिश में हैं कि वो अलग-अलग राज्यों में वहां के गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दलों को इकट्ठा कर एक मंच पर लाए और सभी इकजुट होकर चुनाव में उतरें।

mayawati
क्षेत्रीय दलों में हो गठबंधन
मायावती ने अलग-अलग राज्यों में गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी दलों से गठबंधन की शुरुआत बहुत पहले कर दी थी। मायावती ने बीजेपी और कांग्रेस से दूरी बनाकर कर्नाटक और हरियाणा से ही इसके संकेत दे दिए थे। उन्होंने कर्नाटक में जेडीएस से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। अब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से गठबंधन न करने का ऐलान करके उन्होंने अपनी मंशा साफ कर दी है। छत्तीसगढ़ में मायावती अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गई, तो मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी वो छोटे दलों से बातचीत कर रही हैं।
कई दलों से बीएसपी की नजदीकी

कई दलों से बीएसपी की नजदीकी

उत्तर प्रदेश में कभी एक दूसरे को फूटी आँख ना सुहाने वाली समाजवादी पार्टी और बसपा ने हाथ मिला लिया। यूपी के उपचुनावों में बीएसपी का साथ हासिल कर सपा ने तीन लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। दोनों पार्टियां साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर चुकी हैं। बिहार में आरजेडी और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से भी बीएसपी की करीबी है। जब मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफा दिया था तो उस वक्त आरजेडी ने उनको बिहार के अपने कोटे से राज्य सभा भेजने की पेशकश की थी। अब जब बीएसपी ने कांग्रेस से नाता तोड़ा है तो भी आरजेडी और तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को अहमियत देनी चाहिए।
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त्रिशंकु नतीजों से होगा फायदा

त्रिशंकु नतीजों से होगा फायदा

छोटे और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को एहसास है कि अगर उन्हें अपने राज्यों से बाहर निकलकर देश की राजनीति में भी दखल देना है तो उन्हें या तो बीजेपी के साथ जाना होगा या कांग्रेस के साथ। लेकिन इन दोनों दलों की छत्रछाया में इनका भविष्य ज्यादा उज्जवल नहीं है। ऐसे में अगर ये छोटे दल एक साथ आकर कुछ सीटों पर कब्जा जमाते हैं और चुनावों में त्रिशंकु नतीजे आते हैं तो ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की मजबूरी होगी कि एक-दूसरे को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे का साथ दें।

बिखराव रोकने की रणनीति

बिखराव रोकने की रणनीति

लोकसभा चुनाव से पहले बीएसपी फिलहाल मध्यप्रदेश और राजस्थान में तीसरे मोर्च की संभावनाएं तलाश रही है हालांकि छत्तीसगढ़ में वो अजीत जोगी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। मध्यप्रदेश में अगर 2013 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां अन्य दलों और निर्दलीयों को करीब 17 फीसदी वोट मिले थे। खुद बीएसपी ने 6.4 फीसदी मतों के साथ चार सीटें जीती थीं। 2013 में राजस्थान में अन्य दलों और निर्दलीयों का मत प्रतिशत करीब 21 फीसदी रहा था और यहां भी बीएसपी को 3.4 फीसदी मतों के साथ तीन सीटों पर सफलता मिली थी। अब अगर इन दोनों राज्यों में तीसरा मोर्चा बनता है तो मायावती को उम्मीद है कि ना सिर्फ उनकी अपनी सीटों में इजाफा होगा बल्कि दूसरे सहयोगी दलों को भी इसका फायदा मिलगा।


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English summary
After giving jolt to congress, Mayawati is trying to form third front
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