CAA के बाद असम में हिंदुओं को बड़ा तोहफा, बंगाली-असमी विवाह करने पर मिलेंगे 40,000 रुपये
नई दिल्ली- नागरिकता संशोधन कानून पर बवाल के बाद असम में मौजूद बंगाली और असमी हिंदुओं के बीच एकता की भावना को और मजबूत बनाने के लिए एक बड़ा प्रस्ताव सामने आया है। इसके मुताबिक अगर बंगाली और असमी हिंदू आपस में विवाह करते हैं तो उन्हें अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता दी जा सकती है। इस रकम से ऐसा नया विवाहित जोड़ा वहां अपना कोई कारोबार शुरू कर सकता है, ताकि अगर उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ रहा हो तो माहौल अनुकूल होने तक वह अपना नया वैवाहिक जीवन बिना किसी तनाव के दूर कर सकें। यह सिफारिश असम के भाषाई अल्पसंख्यक विकास बोर्ड ने राज्य सरकार को भेजी है और माना जा रहा है कि इससे असम में मौजूद बंगाली और हिंदू आबादी के बीच विश्वास का एक नया माहौल तैयार होगा। हालांकि, अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से इस तरह के प्रयासों पर सवाल भी उठाए जाने शुरू हो चुके हैं।
असम में हिंदुओं को बड़ा तोहफा देने की तैयारी
असम में रहने वाले बंगाली हिंदुओं को बड़ा तोहफा देने की तैयारी चल रही है। कोई भी बंगाली हिंदू अगर अपने जीवन साथी के तौर पर असमी हिंदू को चुनता है तो उस दूल्हे या दुल्हन को 40,000 रुपये बतौर वित्तीय सहायता देने का प्रस्ताव किया गया है। ये प्रस्ताव असम के भाषाई अल्पसंख्यक विकास बोर्ड ने राज्य सरकार के पास भेजा है। बोर्ड के मुताबिक इस तरह की पहल से दोनों समाज के बीच आपसी संबंधों में और ज्यादा घनिष्ठता आएगी। बोर्ड के अध्यक्ष आलोक कुमार घोष के मुताबिक, 'दूसरे समाज में विवाह करने वाली दंपतियों को सामाजिक बहिष्कार के अलावा अक्सर संपत्ति के अधिकारों से भी वंचित होना पड़ता है। हम चाहते हैं कि ऐसी दंपतियों को दुकानें, ब्यूटी पॉर्लर और खेती करने में सहायता पहुंचा सकें।' तीन दिन पहले ही यह सिफारिश राज्य सरकार के पास भेजी गई है। बंगाली-असमी हिंदू जोड़ों को अपनी जानकारी ऑनलाइन दर्ज कराने के लिए एक वेबसाइट पहले ही डिजाइन की जा चुकी है।
बंगाली युवा छात्र संगठन प्रस्ताव के पक्ष में
असम में रहने वाले बंगाली युवा इस पहल की काफी सराहना कर रहे हैं। ऑल असम बंगाली यूथ स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष सम्राट भोवाल के मुताबिक उनका संगठन बंगाली और असमी लोगों के बीच के 'संदेह' को दूर करने की हर पहल का समर्थन करेगा। उनके मुताबिक,'कुछ पुरानी घटनाओं की वजह से दोनों समाजों के बीच संदेह की स्थिति पैदा हो गई। इस तरह की कोशिश समय के अनुकूल है और हम इसका स्वागत करते हैं।' ऐसे युवाओं का मानना है कि इससे दोनों समाजों के बीच एकता की भावना और मजबूत होगी।
अल्पसंख्यक छात्र संगठन ने किया विरोध
वैसे असम में सारे लोग इस तरह की कोशिशों को एक ही नजरिए से देखने के लिए तैयार नहीं हैं और उनको लगता है कि यह भेदभाव पैदा करने का प्रयास है। ऑल असम माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ने भाषाई अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के प्रस्ताव को 'विभाजनकारी' और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश करार दिया है। यूनियन के अध्यक्ष रिजाउल करीम सरकार ने कहा है, 'सरकार हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन पैदा करने वाले कदम उठा रही है। बोर्ड का प्रस्ताव उसका ही एक और उदाहरण है। धार्मिक आधार पर सहायता देने के बजाय, बोर्ड आर्थिक रूप से कमजोर किसी भी बंगाली शख्स की वित्तीय मदद कर सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय में विवाह करता है।' बता दें कि एनआरसी के बाद नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के चलते असम में पिछले दिनों काफी तनाव की स्थिति पैदा हुई थी, जिसपर मरहम लगाने के लिए वहां की सरकार नए प्रयासों में जुटी है। लेकिन, उसपर धर्म के आधार पर भेदभाव करने जैसे आरोप भी लग रहे हैं।
'1951 से पहले से रहने वाले लोग ही असम के मूल निवासी'
इस बीच खबर है कि गृहमंत्रालय से नियुक्त एक कमिटी ने असम के मूल निवासी तय करने के लिए 1951 को कटऑफ वर्ष तय करने की सिफारिश की है। इसके अलावा कमिटी ने बाहर से असम में आने वाले लोगों की तादाद को नियंत्रित करने के लिए इनर लाइन परमिट लागू करने की भी सिफारिश की है। जानकारी के मुताबिक कमिटी ने राज्य विधानसभा में 67 फीसदी सीटें भी असम के मूल निवासियों के लिए रिजर्व करने की सिफारिश की है। यह कमिटी असम समझौते के तहत असम के लोगों के संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक अधिकार सुरक्षित रखने और उनकी संस्कृति, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसे बढ़ावा देने के लिए सुझाव देने के लिए बनाई गई थी। यह रिपोर्ट जल्द ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सौंपी जाएगी।
सीएए से पैदा हुए संदेह को दूर करने की पहल
माना जा रहा है कि कमिटी की सिफारिशों पर अगर मुहर लग जाती है तो असम के लोगों में सीएए की वजह से पैदा हुए संदेहों को दूर करने में मदद मिलेगी। क्योंकि, असम के स्थानीय जनता को आशंका है कि नागरिकता संशोधन कानून असम समझौते के प्रावधानों के विपरीत है। माना जा रहा है कि गृहमंत्रालय की कमिटी ने सिफारिश की है कि जो लोग 1951 या उससे पहले असम के निवासी थे, वो और उनके वंशज, चाहे वो किसी भी समुदाय, जाति, भाषा, धर्म या विरासत से जुड़े हों सभी राज्य के मूल निवासी माने जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक समिति ने असम के मूल निवासियों के लिए विधानसभा में जो 67 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है, उसके अलावा 16 फीसदी सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए भी आरक्षित होंगी। मतलब सिफारिश मंजूर होने पर वहां आरक्षण की सीमा 80 फीसदी से भी ज्यादा हो जाएगी। जहां तक नौकरियों में आरक्षण की बात है तो समिति ने स्थानीय लोगों के लिए 80 फीसदी सीटें रिजर्व रखने की सलाह दी है।