बिहार चुनाव के बाद LJP को लगने वाला है एक और बड़ा झटका
दिल्ली- बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी में एक समझौता हुआ था। एनडीए के इन तीनों दलों ने तय किया था कि लोकसभा की 40 सीटों में से 17-17 पर भाजपा और जदयू लड़ेंगे और 6 सीटों पर लोजपा के उम्मीदवार उतरेंगे। एलजेपी सभी सीटें जीत गई थी। जबकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तब लोजपा सुप्रीमो और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को राज्यसभा के जरिए संसद भेजने का वादा किया था। हुआ भी यही, पासवान राज्यसभा के लिए जेडीयू और बीजेपी के समर्थन से चुने गए। अब सवाल है कि क्या उनके निधन के बाद लोजपा के लिए जदयू वही दरियादिली दिखाने के लिए तैयार होगा। पासवान के निधन से खाली हुई बिहार की इस राज्यसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 14 दिसंबर को वोटिंग होनी है।
भारत के राजनीतिक दलों में जो परिपार्टी रही है, उसके मुताबिक रामविलास पासवान की मौत के बाद यह चर्चा शुरू हुई थी कि उनकी जगह पार्टी उनकी पत्नी और एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान की मां रीना पासवान को राज्यसभा उम्मीदवार बनाएगी। लेकिन, विधानसभा में सिर्फ 1 सीट जीतने वाली लोजपा के लिए अपने दम पर यह नामुकिन है। ऊपर से ना तो वह सियासी समीकरण बचा है, जिसके तहत रामविलास पासवान एनडीए प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा में दाखिल हुए थे। वह 2 अप्रैल, 2024 तक के लिए सांसद चुने गए थे। यही वजह है कि उनकी जगह उस सीट के लिए अब उपचुनाव होना है। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू पर तीखे शब्दों ने लोजपा के लिए ऐसा सोचना भी मुश्किल कर दिया है कि वह उससे समर्थन की उम्मीद करे। माना जा रहा है कि जबतक उसे बीजेपी की ओर से हरी झंडी नहीं मिलेगी, इस दिशा में वह कोई कदम नहीं उठाएगी।
चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार की एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए उपचुनाव 14 दिसंबर को करवाए जाएंगे। इसकी अधिसूचना 26 नवंबर को जारी होगी और 3 दिसंबर तक उम्मीदवार नामांकन दर्ज कर पाएंगे। इस उपचुनाव में 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए के उम्मीदवार को 122 विधायकों का समर्थन की दरकार होगी, जबकि उसके पास अपने 125 विधायक हैं। एलजेपी के सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस के सामने यह बात मानी है कि जब तक बीजेपी नहीं कहती, वह अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। उसने कहा है, 'क्योंकि, ऐसा नहीं लगता है कि जेडीयू हमारे उम्मीदवार का समर्थन करेगा, इसलिए बहुत ही कम संभावना है कि हम अपना उम्मीदवार दें।' लोजपा की इस आशंका की तस्दीक जेडीयू ने भी की है। उसके सूत्र ने कहा है कि हाल के विधानसभा चुनावों में 'जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाने' के बाद एलजेपी को समर्थन देने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
यही नहीं, बीजेपी भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगी, जिससे जेडीयू को उसपर और ज्यादा शक पैदा हो। पार्टी के एक नेता ने कहा है, 'सच तो यह है कि भाजपा एलजेपी से दूरी दिखाने के लिए इसे अवसर की तरह इस्तेमाल कर सकती है। ' मतलब, लोजपा को समर्थन के लिए जेडीयू से चर्चा करने की जगह बीजेपी के लिए इस सीट से अपने उम्मीदवार को राज्यसभा भेजना ज्यादा आसान होगा। वैसे राजद एलजेपी और बीजेपी की इस कश्मकश का फायदा उठाने की कोशिश में है। पार्टी की ओर से चिराग पासवान को यह संदेश देने की कोशिश है कि वह रीना पासवान की उम्मीदवारी का समर्थन कर सकती है। लेकिन, लोजपा के लोग उसके इस खेल को समझते हैं कि ऐसा करने से वह भाजपा से भी और दूर हो जाएगी। वैसे आरजेडी के एक नेता ने कहा है, 'महागठबंधन के 110 विधायकों का समर्थन एलजेपी को जीत नहीं दिला सकता, लेकिन यह राजनीतिक रूप से हमारे लिए अच्छा है। लेकिन, यह काल्पनिक है। '
भाजपा सूत्रों का कहना है कि जो परिस्थितियां बन रही हैं, उससे लगता है कि पार्टी को अपना ही उम्मीदवार उतारना होगा। इसके मुताबिक, 'इसमें भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा के बेटे रितुराज सिन्हा के नामों की चर्चा हो रही है।' हालांकि, यह सब सिर्फ कयास हैं कोई भी फैसला दिल्ली से ही होना है।