आखिर कांग्रेस के सीएए विरोधी अभियान में सिब्बल, जयराम और खुर्शीद क्यों बन रहे रोड़ा
After all, Why Are Sibal, Jairam and Khurshid Getting Hampered in The Congress's Anti-CAA Campaign, सीएए के विरोध में खड़ी कांग्रेस पार्टी के तीन बड़े नेताओं ने पार्टी ऐजेंडे से हटकर सीएए के संबंध में बयान दिया हैं। आखिर कांग्रेस के सीएए विरोधी अभियान में सिब्बल, जयराम और खुर्शीद क्यों बन रहे रोड़
बेंगलुरु। नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर कांग्रेस और लेफ्ट का विरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा। देश के कांग्रेस शासित राज्य सरकारों में केरल और पंजाब सरकार ने भी सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया है। लेकिन सीएए के खिलाफ कांग्रेस की मुहिम में कांग्रेस में दो फाड हो चुकी हैं। एक तरफ कांग्रेस जहां सीएए को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार के खिलाफ मुसलमानों की खैर ख्वाह बनने की कोशिश में लगी हैं वहीं अब कांग्रेस के तीन बड़े दिग्गज नेता पार्टी निर्णय के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल, जयराम रमेश और सलमान खुर्शीद इन तीनों नेताओं ने कहा है कि सीएए के खिलाफ राज्य सरकारों के किसी भी कदम का औचित्य नही हैं। राज्य सरकारों द्वारा सीएए के खिलाफ कोई भी कदम उठाना संविधान के खिलाफ होगा और उससे समस्यायें पैदा हो सकती हैं। इन तीन नेताओं में से दो बड़े वकील हैं और कानूनी पक्ष भी बेहतर तरीके से जानते हैं। इस नाते कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद का कांग्रेस को राय देना बहुत अहम है। दसअसल अब ये नेता भी अब वहीं बात दोहरा रहे हैं जो भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कुछ दिनों पहले समझायी थी और लगातार समझा रहे हैं।
इस बयान के बाद संशोधित नागरिकता कानून, सीएए पर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के अंदर दो विचारधाराएं एक साथ काम कर रही हैं। एक तरफ ऐसे नेता हैं, जो हर हाल में सीएए का विरोध कर रहे हैं। उनके लिए किसी तरह से इसका विरोध करना ही राजनीति है। तो दूसरी ओर कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो एक सीमा से ज्यादा आगे जाकर इसके विरोध के पक्ष में नहीं हैं।
बयान कांग्रेस की सीएए विरोधी मुहिम में रोड़ा साबित होगा!
कांग्रेस के इन तीनों नेताओं की प्रतिक्रिया केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद के सीएए के पक्ष में दिए गए बयान के बाद आयी। इसलिए मान जा रहा है कि कांग्रेस के तीनों वरिष्ठ नेताओं का ये बयान केरल के राज्यपाल के सपोर्ट में दिया गया हैं। इनके हिसाब से केरल और पंजाब सरकार दोनों के सीएए के विरोध में लाए गए प्रस्ताव गैर संवैधानिक हैं। इन नेताओं का ये बयान जहां कांग्रेस के स्टैन्ड के खिलाफ हैं वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह के पक्ष में हैं। सीएए पर ये बयान ये कांग्रेस नेतृत्व की सीएए विरोध की मुहिम में ही रोड़ा साबित हो सकता हैं। ऐसे में सवाल उठता हैं कि कांग्रेस के जाने माने नेताओं की इस प्रतिक्रिया के मायने क्या हैं। ये कांग्रेस की कोई रणनीति हैं या फिर कुछ ?
CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची केरल सरकार तो भड़के राज्यपाल, मांगी सफाई
इस मुद्दे पर भी कांग्रेस में हो चुकी हैं गुटबाजी
बता
दें
सीएए
के
विरोध
को
लेकर
कांग्रेस
के
अंदर
एक
बार
फिर
वैसी
ही
गुटबाजी
हो
रही
जो
केन्द्र
सरकार
द्वारा
जम्मू
कश्मीर
से
अनुच्छेद
370
रद्द
किए
जाने
के
समय
थी।
मालूम
हो
कि
पांच
अगस्त
को
धारा
अनुच्छेद
370
को
रद्द
किया
तो
कांग्रेस
ने
इसका
भी
जमकर
विरोध
किया
लेकिन
देश
भर
की
जनता
मोदी
सरकार
के
इस
फैसले
के
सहयोग
में
खड़ी
दिखी
तो
जनभावना
को
देखते
हुए
तो
कुछ
कांग्रेस
नेताओं
ने
पलटी
मार
दी
और
अनुच्छेद
370
को
हटाने
को
देशहित
में
बताने
लगे।
नेताओं ने राज्यों को किया अगाह कि इसके दुष्परिणाम होंगे
बता दें केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था कि नागरिकता का मसला केंद्र के अधीन आता है और नागरिकता कानून को लागू करने के अलावा राज्य सरकारों के पास कोई चारा नहीं है। कपिल सिब्बल, जयराम रमेश और उनके बाद सलमान खुर्शीद सभी ने आरिफ मोहम्मद खान की इसी बात के समर्थन में बयान दिया है। कपिल सिब्बल ने कहा जब नागरिकता कानून संसद से पास हो चुका है तो कोई भी राज्य सरकार ये नहीं कह सकती है कि वो उसे लागू नहीं करेगी। इसके बाद कपिल सिब्बल ने कहा कि आप CAA का विरोध कर सकते हैं, विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर सकते हैं और केंद्र से कानून वापस लेने की मांग कर सकते हैं। लेकिन संवैधानिक रूप से ये कहना कि इसे लागू नहीं किया जाएगा, यह राज्य सरकारों के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सीएए को लेकर आशंका जतायी कि 'जो राज्य ये कह रहे हैं कि वे अपने प्रदेश में CAA लागू नहीं करेंगे, अदालत में उनका ये तर्क टिक पाएगा या नहीं इस बारे में वे सौ फीसदी इत्मीनान नहीं है। इन बयानों पर गौर करे तो ये साफ हो जाता है कि सलमान खुर्शीद की राय भी कपिल सिब्बल से ही मिलती जुलती ही है, लेकिन वो दो टूक बात कह रहे है कि जब तक ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देता है, तब तक संविधान का पालन करना होगा अन्यथा इसके दुष्परिणाम होंगे।
मोदी को खलनायक की तरह पेश करने से परहेज करे
बता दें कांग्रेस के ये दिग्गज नेताओं का सीएए पर बयान काफी दिनों बाद आया इनमें जिन नेताओं का बयान आया उनमें से दो कांग्रेसी नेता कानून के अच्छे जानकार भी हैं। मालूम हो कि मोदी के विरोध में कांग्रेस के जिन तीन नेताओं ने कांग्रेस के विरोध पर अपनी राय पेश की है उनमें जयराम रमेश तो पहले भी कांग्रेस नेतृत्व को आगाह कर चुके हैं। अगस्त, 2019 में जयराम रमेश के साथ साथ शशि थरूर और अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कांग्रेस नेतृत्व को सलाह दी थी कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खलनायक की तरह पेश करने से परहेज करे। तीनों नेताओं का मानना था कि हर बात पर विरोध करने से विरोध का कोई असर भी नहीं होता और आखिरकार वो बेमतलब समझा जाने लगता है।
इसके बाद धीमा पड़ सकता हैं कांग्रेस का आंदोलन
कांग्रेस के पिछले रिकॉर्ड पर गौर करें तो ये साफ है कि पार्टी में इन तीनों नेताओं की राय को कोई अहमियत दी जाएगी। लेकिन इतना तो साफ हो चुका है कि सीएए पर कांग्रेस में लामबंदी होने के कारण तीन तलाक और धारा 370 के बाद नागरिकता कानून को लेकर कांग्रेस के विरोध का तेवर तेज होने के बजाय फीका पड़ सकता हैं। कपिल सिब्बल के बयान का एक तरह से समर्थन करते हुए पार्टी नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, 'यदि उच्चतम न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करती है तो यह कानून की पुस्तक में रहेगी। यदि कुछ कानून की पुस्तक में रहता है तो आपको कानून का पालन करना होगा वरना इसके गंभीर परिणाम होंगे।
केरल के बाद पंजाब में पास हुआ ये प्रस्ताव
गौरतलब है कि सीएए को लेकर दो तरह का विरोध हो रहा है जिसमें एक पक्ष तो कानून को वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार से मांग कर रहा हैं दूसरा पक्ष राज्य विधानसभा में इसे लागू न करने का प्रस्ताव ला रहा है। सीएए के विरोध का प्रस्ताव सबसे पहले पास करने वाली केरल सरकार तो सुप्रीम कोर्ट भी इसके खिलाफ पहुंच चुकी है। केरल की पी. विजयन सरकार ने 31 दिसंबर को ही ये प्रस्ताव पास किया था इसके बाद पंजाब विधानसभा में भी सीएए विरोधी प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी हैं।
प्रशांत किशोर के तंज का कांग्रेस पर हुआ ये असर
बता दें कांग्रेस की कार्यकरिणी की बैठक में नागरिकता काननू के विरोध को लेकर चलायी जा रहे अभियान को मंजूरी भी मिल चुकी है। बता दें हाल ही में जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशात किशोर ने जो गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सीएए का एक सुर में विरोध करने की अपील की थी साथ ही कांग्रेस नेतृत्व पर तंज कसा था कि सड़क पर कांग्रेस का सीएए के खिलाफ विरोध नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस मुख्यमंत्री भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हो और कांग्रेस को अपने मुख्यमंत्रियों को अपने राज्यों में सीएए न लागू करने का आदेश देना चाहिए। माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर के इस तंज का असर है कि कांग्रेस सीएए और आक्रामक होती नजर आ रही है। इसी बयान के बाद म पंजाब के CM कैप्टन अमरिंदर सिंह ही आगे आये और केरल के बाद 17 जनवरी को अमरिंदर सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव किया और सीएए को वापस लेने की मांग की। विधानसभा में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार भेदभाव करने वाले कानून को राज्य में लागू नहीं करेगी। सोमवार को इस प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल चुकी हैं।
क्या राज्य सरकारें चाहें तो सीएए लागू नहीं होगा ?
बता दें केरल और पंजाब सहित राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी सीएए का विरोध करते हुए कहा है कि वो इसे लागू नहीं करेंगी। इसी के बाद ये बहस शुरू हो गई, कि क्या राज्य सरकारें चाहें तो सीएए लागू नहीं होगा। दरअसल भारत से संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकार बंटे हुए हैं। यूनियन लिस्ट में 97 मुद्दे हैं, स्टेट लिस्ट में 66 आइटम हैं और कॉनकरंट लिस्ट में 44 मुद्दे हैं। यूनियन लिस्ट में दिए मुद्दों पर केवल देश की संसद क़ानून बना सकती है और नागरिकता इस लिस्ट में 17वें स्थान पर है। तो ऐसे में स्पष्ट है कि नागरिकता के संबंध में केवल संसद क़ानून बना सकती है, किसी राज्य को ये क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 11 में भी साफ़ तौर पर ये अधिकार संसद को दिया गया है।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने मीडिया को दिए गए साक्षात्कार में बताया कि राज्य सरकारों के पास सदन में किसी विषय पर प्रस्ताव पास करने का अधिकार है और उस प्रस्ताव को लेकर कोर्ट जाने का भी अधिकार है। ये दोनों ही अधिकार विचारों की अभिव्यक्ति है और इस पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है। इसलिए सीएए के ख़िलाफ़ भी राज्य सरकारें ऐसा प्रस्ताव पास कर सकती हैं। केरल के मामले में राज्य सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत कोर्ट में गुहार लगाई है। सुभाष कश्यप के मुताबिक़ अनुच्छेद 131 ऑरिजिनल जूरिशडिक्शन तय करने के लिए होता है. कोई भी राज्य सरकार, केन्द्र और अपने बीच किसी तरह के अधिकारों के मतभेद को लेकर कर अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल कर सकती है और सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। नागरिकता का मामला केन्द्र और राज्य सरकारों के अधिकार के संबंध का है या नहीं ये फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। सीएए के मामले में भी ऐसा ही होना है।
यही बात सलमान ख़ुर्शीद ने भी कहीं। कपिल सिब्बल ने कहा, "सीएए के पारित हो जाने के बाद कोई राज्य ये नहीं कह सकता कि मैं इसे लागू नहीं करूंगा। ये असंभव है और ऐसा करना असंवैधानिक होगा। आप इसका विरोध कर सकते हैं, विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर सकते हैं और केंद्र सरकार से इसे वापस लेने के लिए कह सकते हैं।
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