कोरोना कहर के बीच भारत में स्वाइन फीवर ने दी दस्तक, जानिए इंसानों के लिए खतरनाक है या नहीं
नई दिल्ली। इस वक्त देशभर में कोरोना वायरस (कोविड-19) का प्रकोप बना हुआ है। इस वायरस से देश अभी पूरी तरह उभरा भी नहीं था कि अब अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) ने भी दस्तक दे दी है। इसका पहला मामला असम से सामने आया है। असम के सुअरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है। यह राज्य ASF का केंद्रबिंदु बन गया है और फरवरी माह से इस वायरस के कारण राज्य में करीब 2500 सूअरों की मौत हो चुकी है।
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सूअरों की मृत्युदर 100 फीसदी है
बताया जा रहा है कि ये वायरस इतना खतरनाक है कि इससे संक्रमित सूअरों की मृत्युदर 100 फीसदी है। असम का दावा है कि ये वायरस भी नोवल कोरोना वायरस की तरह ही चीन से आया है। ASF के कारण चीन में 2018 और 2020 के बीच करीब 60 फीसदी सुअरों की मौत हो गई थी। इस मामले में मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पशु चिकित्सा और वन विभाग को अफ्रीकन स्वाइन फीवर से राज्य के सूअरों को बचाने के लिए एक व्यापक रोडमैप बनाने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) के नेशनल पिग रिसर्च सेंटर के साथ काम करने के लिए कहा है।
दूसरे विकल्पों पर विचार करेगी सरकार
जानकारी के मुताबिक, असम में फैले इस खतरनाक संक्रमण के कारण 306 गांवों में अब तक 2 हजार 500 सूअरों की मौत हो गई है। हालांकि इस बीमारी का कोरोना वायरस से कोई संबंध नहीं है। राज्य के पशुपालन व पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा ने कहा, 'केंद्र से अनुमति के बावजूद राज्य सरकार सूअरों को तुरंत मारने की बजाय इस संक्रामक रोग के नियंत्रण के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करेगी।'
विशेषज्ञ दल का गठन हुआ
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, असम के पशुपालन मंत्री अतुल बोरा ने स्थिति को चिंताजनक भी बताया है। राज्य ने तय किया है कि वह संक्रमित सूअरों को नहीं मारेगा बल्कि जैवसुरक्षा उपायों को लागू करेगा जो लॉकडाउन के अनुरूप हैं। बीमारी का पता चलने के बाद यहां एक विशेषज्ञ दल का भी गठन किया गया। मुख्यमंत्री ने आईसीएआर और क्षेत्रीय उद्यमिता प्रबंधन संस्थान (आरआईएलईएम) के डॉक्टरों के साथ बैठक की। जिसमें समस्या को कम करने के उपायों पर चर्चा की गई।
मुख्यमंत्री ने प्रकोप की रोकथाम के उपाय करने को कहा
बैठक के दौरान मुख्यमंत्री सोनोवाल ने पशु चिकित्सा और पशुपालन विभाग को इस वायरस के प्रकोप की रोकथाम के उपाय करने के लिए कहा है। साथ ही उन्होंने विभाग से सूअर पालन क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या और उनकी वित्तीय देनदारी का पता लगाने के लिए भी कहा ताकि सरकार उन्हें दंड से बचाने के लिए बेलआउट पैकेज की घोषणा करने के लिए जरूरी कदम उठा सके। असम कोरोना वायरस के साथ-साथ अफ्रीकी स्वाइन फीवर से निपटने की भी पूरी तैयारी कर रहा है।
पहला मामला 1921 में सामने आया था
इस वायरस (अफ्रीकी स्वाइन फीवर) की बात करें तो इसका पहला मामला साल 1921 में केन्या और इथियोपिया में सामने आया था। राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (NIHSAD), भोपाल ने पुष्टि की है कि यह अफ्रीकी स्वाइन फ्लू है। विभाग द्वारा 2019 की जनगणना के अनुसार, असम में सूअरों की संख्या 21 लाख थी जो हाल के दिनों में बढ़कर 30 लाख हो गई है।
भारत में कैसे फैला?
एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2019 में चीन के शिजांग प्रांत में यह बीमारी शुरू हुई थी। यहां इसके कारण बड़ी संख्या में सूअरों की मौत हो गई है। ये प्रांत अरुणाचल प्रदेश के पास पड़ता है। जिससे ये माना जा रहा है कि वायरस अरुणाचल प्रदेश के रास्ते असम तक आया है। आमतौर पर बाहर घूमने वाले सूअर संक्रमित हुए हैं। जिसके बाद फार्म के सूअर भी इसकी चपेट में आ गए।
क्या इंसानों को भी है कोई खतरा?
इस वायरस से इंसानों को भी खतरा है या नहीं इसे लेकर अभी तक की जांच और खोज कहती है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर इंसानों को नहीं होता है। साल 2013 में रूस के महामारी विज्ञान विभाग ने बताया था कि आने वाले वर्षों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वायरस में बदलाव हुआ है, तो यह इंसानों को हो सकता है। हालांकि अभी तक ऐसा मामला नहीं आया है।
वैक्सीन बनाने में जुटे हैं कई देश
हैरानी की बात तो ये है कि अभी तक अफ्रीकन स्वाइन फीवर का कोई इलाज भी नहीं मिला है। ऐसे में संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बीमार सूअरों को मार दिया जाता है, ताकि बाकी सूअरों को इससे बचाया जा सके। फिलहाल कई देश ऐसे भी हैं, जो इसका वैक्सीन बनाने के काम में जुटे हुए हैं।
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