अफगान शांति के लिए समर्थन जुटाने भारत दौरे पर अब्दुल्ला, भारत के पास पाकिस्तान को पीछे करने का मौका
नई दिल्ली। अफगान शांति वार्ता (Afghanistan Peace Negotiation) में अफगानिस्तान सरकार की तरफ से प्रमुख वार्ताकार अब्दुल्ला अब्दुल्ला (Ablulah abdullah) पांच दिवसीय दौरे पर मंगलवार को भारत पहुंच चुके हैं। अब्दुल्ला का प्रमुख उद्देश्य अफगान शांति वार्ता के लिए व्यापक समर्थन जुटाना होगा। इसके लिए वे प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे।
नई दिल्ली पहुंचने पर डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा कि "भारत की यात्रा के दौरान वे भारत के प्रमुख नेतृत्व से मुलाकात करेंगे। इस दौरान अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को लेकर चर्चा होगी।"
भारत अफगानिस्तान का प्रमुख सहयोगी है। ऐसे में अफगानिस्तान में शांति वार्ता में उसकी भूमिका प्रमुख है। पिछले महीने सितम्बर में जब कतर की राजधानी दोहा में अफगानिस्तान और तालिबान के बीच वार्ता शुरू हुई थी तो भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसमें वर्चुअल हिस्सा लिया था। वहीं विदेश मंत्रालय ने अपने प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त सचिव जेपी सिंह को दोहा में हो रही वार्ता में हिस्सा लेने भेजा था।
गुरुवार
को
पीएम
मोदी
से
मिलेंगे
अब्दुल्ला
की
गुरुवार
को
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
से
प्रधानमंत्री
आवास
में
मुलाकात
तय
हैं।
शुक्रवार
को
वे
भारतीय
विदेश
मंत्री
एस.
जयशंकर
से
मिलेंगे।
साथ
ही
वे
रक्षा
अध्ययन
और
अनुसंधान
संस्थान
(Institute
of
Defence
Studies
and
Analyses)
द्वारा
आयोजित
एक
संवाद
कार्यक्रम
में
भी
हिस्सा
लेंगे।
शांति वार्ता के लिए समर्थन जुटाने के क्रम में अब्दुला अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोवाल समेत सुरक्षा मामलों के प्रमुख लोगों से मुलाकात भी कर सकते हैं। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। इसके साथ भारत में रह रहे अफगान मूल के लोगों से भी संवाद कर सकते हैं।
भारत
के
लिए
है
मौका
अफगानिस्तान
में
शांति
वार्ता
को
देख
रही
राष्ट्रीय
सुलह
परिषद
के
प्रमुख
अब्दुल्ला-अब्दुल्ला
का
भारत
दौरा
दोनों
देशों
के
लिए
बहुत
महत्वपूर्ण
है।
भारत
और
पाकिस्तान
दोनों
ही
अफगानिस्तान
में
अपनी
भूमिका
अधिक
मजबूत
करना
चाहते
हैं।
वर्तमान
अफगान
सरकार
से
भारत
के
संबंध
अच्छे
हैं
वहीं
पाकिस्तान
के
विरोधी
तालिबान
से
रिश्ते
किसी
से
छिपे
हुए
नहीं
है।
शांति
वार्ता
की
मेज
पर
तालिबान
को
लाने
में
भी
पाकिस्तान
की
प्रमुख
भूमिका
रही
है।
यही वजह है कि अब्दुल्ला अब्दुल्ला इससे पहले पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं। जहां उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान खान, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से मुलाकात की थी। इस दौरान अब्दुल्ला ने पाकिस्तान नेतृत्व से कहा था कि तालिबान नेतृत्व को हिंसा कम करने और वार्ता में अधिक लचीलापन दिखाने के लिए कहा जाना चाहिए।
अब्दुल्ला अब्दुल्ला के इस दौरे में भारत अपनी भूमिका को लेकर अधिक स्पष्ट रूप से बात कर सकता है। पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्ते को देखते हुए अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की मजबूती भारत के लिए परेशानी की बात होगी। भारत ये सुनिश्चित करना चाहेगा कि तालिबान से किसी भी तरह से समझौते में भारत के रोल में बदलाव न हो।
तालिबान के खात्मे के बाद नई सरकार बनने के बाद अफगानिस्तान में भारत ने अपनी भूमिका बढ़ाई है। भारत वहां शिक्षा, स्वास्थ्य समेत मूलभूत सुविधाओं के लिए ढांचा तैयार करने में बहुत मदद की है। भारत ने अफगानिस्तान का नया संसद भवन बनाया है। साथ ही बांध, सड़क और अस्पताल बनाने के कई प्रोजेक्ट के निर्माण में भी जुटा हुआ है। ऐसे में जहां अफगानिस्तान शांति वार्ता के लिए भारत का समर्थन महत्वपूर्ण समझ रहा है वहीं बदलते परिदृश्य में भारत भी अपनी भूमिका बनाए रखने के लिए प्रयासरत है।
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