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अभिनेत्रियाँ जो अब डायरेक्टर बन रही हैं

फ़िल्म इंडस्ट्री में पुरुष निर्देशकों का दबदबा रहा है पर अब महिलाएं भी लगातार निर्देशन में उतर रही हैं. इनमें कई अभिनेत्रियाँ शामिल हैं.

By सुप्रिया सोगले
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अभिनेत्रियाँ जो अब डायरेक्टर बन रही हैं

फ़िल्म निर्देशकों को उनकी फ़िल्मी कहानी के जहाज़ का कप्तान माना जाता है. एक निर्देशक तय करता है कि उसकी कहानी किस दिशा में दौड़ेगी. हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में अक्सर देखा गया है कि कई अभिनेताओं ने अभिनय के साथ निर्देशन की कमान भी संभाली है. इसमें शोमैन राज कपूर, गुरु दत्त, मनोज कुमार, फ़िरोज़ खान, आमिर खान, अजय देवगन, रजत कपूर और अनुपम खेर जैसे नाम शामिल हैं.

आज हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में कई महिला निर्देशक हैं जिन्होंने अपनी कहानियों से अपना लोहा मनवाया है वहीं कई अभिनेत्रियों ने भी निर्देशन का दामन थामा है. साल 2021 की शुरुआत में "बरेली की बर्फी, दम लगा के हईशा" जैसी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री सीमा पाहवा फ़िल्म "रामप्रसाद की तेरहवीं" से निर्देशिका बनीं वहीं अभिनेत्री रेणुका शहाणे ने ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए "त्रिभंग" जैसी फ़िल्म बनाई.

सीमा पाहवा का मानना है कि वो संयोगवश निर्देशक बनीं. वो कहती हैं कि,"मेरे मन में कई सालों से कुछ बात चल रही थी कि हम रिश्तों को इतना महत्व नहीं देते और ना ही धन्यवाद या माफ़ी मांगते हैं और जब इस विचार ने स्क्रिप्ट की शक्ल ले ली तो मेरी कोशिश यही थी कि कोई और इसका निर्देशन करे पर मेरे सभी दोस्तों ने कहा कि मैंने ये दुनिया बुनी है तो मैं ही इसे अच्छे से दर्शकों के सामने दिखा पाऊँगी."

अभिनेत्रियाँ जो अब डायरेक्टर बन रही हैं

नया नज़रिया

वरिष्ठ पत्रकार भावना सौमैया का मानना है कि महिलाओं का नज़रिया पुरुष के नज़रिए से बहुत अलग होता है. हाल ही में रिलीज़ हुई में सीमा पाहवा की फ़िल्म रामप्रसाद की तेरहवीं का उदाहरण देते हुए भावना सौमैया कहती है कि,"मेरे ख्याल से ये बहुत ही खूबसूरत फ़िल्म बनाई गई है. जिस तरह से किरदार, प्रॉडक्शन डिज़ाइन, आर्ट, कॉस्टयूम, भाषा को इतनी गहराई से दिखाया गया है कि ये एक बेहतरीन फ़िल्म बन पड़ी है."

भावना सोमैया का मानना है कि जब भी महिला निर्देशक ने अपनी कहानी कही है तो उसमें नया परिप्रेक्ष्य देखने को मिला है. जैसे निर्देशक अरुणा राजे की फ़िल्म रिहाई, जिसमें प्रवासी कामगार के गावों में बिछड़ गए परिवार की कहानी बताई गई है वो एक बेहद नया नज़रिया था.

'हम लोग' जैसे यादगार टीवी सीरियल का हिस्सा रहीं सीमा पाहवा मानती हैं कि कुछ सालों में फ़िल्म इंडस्ट्री में बदलाव आया है. कई ऐसे विषयों को छेड़ा गया है जिसपर पहले कभी बात नहीं हुई थी.

सीमा पाहवा आगे कहती है कि, "पिछले कुछ सालों में कई महिला निर्देशक सामने आई है जिससे कहानियों में एक नया नज़रिया मिला है क्योंकि औरतें चीज़ों को अलग नज़र से देखती हैं और पुरुष अलग नज़र से देखता है. अब तक पुरुष निर्देशक अलग नज़रिए से फ़िल्में दिखाते आए हैं वो अलग फ़िल्में थीं. अश्विनी अय्यर तिवारी और रेणुका शहाणे जैसे निर्देशक को भावनात्मक मैदान मिल गया है, फ़िल्मों का नज़रिया बदला हुआ है इसलिए फ़िल्म बनाने का तरीका भी बदला है."

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कहानियों में लैंगिक समानता

पिछले दशक में कई महिला प्रधान फ़िल्में बनीं और सराही गई जिसमें शामिल हैं क्वीन, इंग्लिश विंग्लिश, नो वन किल जेसिका, नीरजा, तुम्हारी सुलु, पिंक, लिपस्टिक अंडर माय बुरखा और मैरी कॉम वगैरह.

कहानियों में लैंगिक समानता पर अपनी राय देते हुए अभिनेत्री- निर्देशक रेणुका शहाणे कहती हैं कि,"महिलाएं अब कैमरे के सामने नहीं बल्कि कैमरे के पीछे भी काम कर रही है. महिला अगर पुरुष प्रधान फ़िल्मों में भी है तो उसका स्थान क्या है. अब बहुत सारी महिलाएं एडिटर्स हैं, सिनेमैटोग्राफर्स हैं, अस्सिटेंस है. ये धीरे-धीरे हो रहा है. मेरी कहानी में मैंने सशक्त किरदार लिखे हैं जो आप फ़िल्मों में देखेंगे."

अभिनेत्रियाँ जो अब डायरेक्टर बन रही हैं

सीमा पाहवा का मानना है कि पुरुष बहुत ही व्यावहारिक होते हैं और महिला बहुत ही भावनात्मक होती हैं और दोनों के सोचने का तरीका भी अलग होता है. उन्होंने कई पुरुष निर्देशकों के साथ काम किया है. किरदार को लेकर उनकी भावनात्मक राय को निर्देशक खारिज करते हुए कह देते थे कि इसकी ज़रूरत नहीं है.

वो मानती हैं कि महिला छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देती हैं जिसे पुरुष महत्व ना देकर उपेक्षा कर देते हैं. महिलाओं के इस बारीक नज़र का फ़ायदा उनके काम में देखने को मिलता है. इसकी झलक उन कहानियों में दिखती है जिसका निर्देशन कोई महिला करती है.

सीमा पाहवा को अफ़सोस है कि उन्होंने निर्देशन का काम पहले क्यों नहीं किया. अब उनके पास कहानियाँ हैं और वो निर्माता की तलाश में हैं जो उनकी कहानियों को दर्शकों तक पहुंचाए.

दिल्ली क्राइम से विश्व में सराहना बटोरने वाली शेफाली शाह ने लॉकडाउन के दौरान दो शॉर्ट फ़िल्मों का निर्देशन किया. शेफाली शाह की एक फ़िल्म "सम डे" लॉकडाउन में अकेलपन से जूझ रही महिला की कहानी है जिसे वो फ़िल्म फेस्टिवल में भेज रही हैं वही उनकी दूसरी कहानी "हैप्पी बर्थडे मम्मीजी" महिलाओं के रोज़मर्रा के उलझन पर बनी एक हास्य फ़िल्म है.

अभिनेत्री से निर्देशक के सफर की व्याख्या करते हुए शेफाली कहती हैं कि," मैं हमेशा से ही निर्देशन करना चाहती थी पर हिम्मत नहीं थी. पर लॉकडाउन मेरे लिए काफ़ी मुश्किल रहा. मैं किसी से मिल नहीं पा रही थी तब मैंने ये दो कहानियां तय की और इसका निर्देशन किया. इन दोनों कहानियों में आपको मेरा नज़रिया देखने को दिखेगा"

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नया नहीं ये ट्रेंड

मशहूर अभिनेत्री नंदिता दस ने फिल्म "फ़िराक" में गुजरात दंगो की पीड़ितों की दशा दिखाई थीं. वहीं 2018 में उन्होंने मंटो के जीवन को फ़िल्म में तब्दील कर पूरे विश्व में वाहवाही बटोरी. दक्षिण की फ़िल्मों की अभिनेत्री रेवती ने 80 और 90 के दशक में कई हिंदी फिल्मों भी काम किया था.

उन्होंने साल 2002 में निर्देशन का रुख करते हुए फ़िल्म "मित्र, माय फ्रेंड" बनाई जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. 2004 में रेवती ने एचआईवी पॉजिटिव लोगों पर संवेदनशील फ़िल्म "फिर मिलेंगे" भी बनाई. हाल के कुछ वर्षो में कई अभिनेत्रियों ने निर्देशन का दमन थामा है जिसमें कोंकणा सेन शर्मा, टिस्का चोपड़ा और श्रिया पिलगांवकर का नाम शामिल हैं.

भावना सोमैया कहती हैं कि अभिनेत्रियों का निर्देशन बनना नई बात नहीं है. हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में हमेशा से ही महिला निर्देशक रही हैं.

वो कहती हैं कि, "70 के दशक में जब अभिनेत्री अपर्णा सेन ने '36 चौरंगी लेन' फ़िल्म लिखी तो वो सत्यजीत रे के पास गईं क्योंकि वो निर्देशन को लेकर असमंजस में थी तब सत्यजीत रे ने कहा कि इस कहानी से तुम्हारा बहुत लगाव है इसलिए तुम्हें ही इसका निर्देशन करना चाहिए. तब शशि कपूर ने बतौर निर्माता इस फ़िल्म में अपर्णा सेन को बतौर निर्देशक ब्रेक दिया."

फातिमा बेगम हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की पहली महिला निर्देशक मानी जाती हैं. उन्होंने साइलेंट एरा में कोहिनूर स्टूडियो और इम्पीरियल स्टूडियो में बतौर अभिनेत्री काम किया. उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस फातिमा फ़िल्म्स से 1926 में बतौर निर्देशक "बुलबुल-ए-पेरिसतान" बनाई हालांकि उस फ़िल्म की प्रिंट्स आज मौजूद नहीं है.

अभिनेत्रियाँ जो अब डायरेक्टर बन रही हैं

1943 में बनी फ़िल्म "राम राज्य" में सीता के किरदार के लिए मशहूर अभिनेत्री शोभना समर्थ ने कुछ फ़िल्मों का निर्देशन किया जिसमें 'हमारी बेटी और छबीली जैसी फिल्में शामिल हैं.

फ़िल्म कोहिनूर, कालाबाज़ार, हम दोनों जैसी 50 के दशक की फ़िल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री लीना चिटनीस ने 1955 में फ़िल्म "आज की बात" का निर्देशन किया और इसकी निर्माता भी रही.

मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख ने भी धारावाहिक "कोरा कागज़" का निर्देशन किया. हेमा मालिनी, साधना, दीपा साही, नीना गुप्ता और कई अभिनेत्रियों ने निर्देशन की तरफ रुख कर फ़िल्म या धारावाहिक का निर्देशन कर अपनी विचारधारा को दर्शकों के समक्ष रखा है.

भेदभाव ना करें

फ़िल्म इंडस्ट्री में मोटे तौर पर पुरुष निर्देशकों का दबदबा रहा है पर महिलाएं भी अब बड़ी तादाद में निर्देशन का काम कर अपनी जगह बना रही हैं. कई अभिनेताओं का मानना है कि वो किसी महिला निर्देशक के साथ काम करते हैं तो उन्हें वो ज्यादा संवेदनशील नज़र आती हैं. लेकिन वही उनका ये भी मानना है कि निर्देशक का कोई जेंडर नहीं होता वो सिर्फ़ निर्देशक होता है.

वरिष्ठ पत्रकार भारती प्रधान इससे इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं कि," औरत या मर्द अगर संवेदनशील हैं तो वो संवेदनशील कहानियाँ बना सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अनुभव सिन्हा ने तापसी पन्नू के साथ "थप्पड़" फ़िल्म बनाई जो बेहद संवेदनशील कहानी थी."

बतौर दर्शक वरिष्ठ पत्रकार भावना सोमैया का कहना है कि हमें संवेदनशील होना चाहिए और महिला और पुरुष निर्देशकों में भेदभाव नहीं करना चाहिए. हमें उन्हें फ़िल्मकार कह कर ही संबोधित करना चाहिए क्योंकि जिस तरह की प्रतिस्पर्धा और योग्यता महिलाएँ रखती हैं वो पुरुष निर्देशक के समान ही है.

BBC Hindi
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English summary
Actresses who are now becoming directors
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