
15 अगस्त 1947 को पैदा हुई अभिनेत्री राखी ने पूरी ज़िंदगी आज़ादी से जी है
बीसियों सफल फ़िल्मों की स्टार राखी इन दिनों क्या कर रही हैं, जानिए उनकी फ़िल्मी यात्रा और मौजूदा ज़िंदगी के बारे में.

'जीवन मृत्यु', 'शर्मीली', 'दाग़', 'ब्लैकमेल', 'कभी-कभी', 'तपस्या', 'दूसरा आदमी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'बसेरा', 'शक्ति' और 'करण-अर्जुन' जैसी कितनी ही फ़िल्में राखी के खाते में हैं, आज राखी का 75वां जन्मदिन है.
सन 1970 से 2000 तक के 30 बरसों में शानदार अभिनय से फ़िल्म संसार में अपनी अलग पहचान बनाने वाली राखी मुंबई से दूर एक फ़ार्म हाउस में एकाकी जीवन जी रही हैं.
राखी एक किसान की तरह रहती हैं. सब्ज़ियां उगाती हैं, बागवानी करती हैं. उनके इस फ़ार्म हाउस में कितने ही किस्म के कुत्ते और बिल्लियों के साथ बहुत से जानवर रहते हैं जिन्हें वह अपने हाथों से खिलाती-पिलाती भी हैं और नहलाती-धुलाती भी.
राखी के बारे में यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि स्टार रहते हुए भी वह अपने सभी काम खुद करती रहीं. चाहे घर के कामकाज की निगरानी हो या क़ानूनी मसले या इनकम टैक्स जमा कराना हो. यहाँ तक कि राखी ने कभी अपने लिए प्रचार एजेंट नहीं रखा.
राखी बताती थीं, "मैं समझती हूँ कि इन्सान अपने जो भी काम ख़ुद कर सके उसे वह करने चाहिए. मैं जब लगातार शूटिंग में व्यस्त रहती थी, तब भी रविवार के दिन अपने बहुत से ज़रूरी काम निबटा लेती थी."
देश आज़ाद होने के कुछ घंटों बाद ही राखी का जन्म पश्चिम बंगाल के रानाघाट में हुआ था. देश विभाजन से पहले राखी के पिता का पूर्वी बंगाल में जूतों का अच्छा-खासा व्यापार था, लेकिन विभाजन से कुछ समय पहले ही वह पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले के रानाघाट आ गए थे.
आज़ादी के दिन जन्मी राखी मजूमदार अपनी आज़ादी को कितनी अहमियत देती हैं, यह सब उनकी ज़िंदगी को देख कर समझा जा सकता है. कुछ बरस पहले राखी से एक इंटरव्यू में पूछा गया था कि 'वे इतनी एकांत प्रिय क्यों हो गई हैं?'
इस पर राखी का जवाब था, "मैं अब चकाचौंध की दुनिया में नहीं रहना चाहती. मैं काफ़ी फ़िल्में कर चुकी हूँ. मुझे अब न ज़्यादा रुपयों की ज़रूरत है, न फ़िल्मों की. मेरी दुनिया अब पनवेल का मेरा फ़ार्म हाउस है. जहाँ मैं हूँ और मेरे प्रिय जानवर. मुझे अपनी आज़ादी से प्यार है. जहां मुझसे कोई सवाल नहीं कर सकता."
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क़रीब 30 बरस पहले दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में एक स्क्रीनिंग के दौरान राखी से मैंने पूछा कि 'इतनी फ़िल्मों को करने के बाद आज अपनी ज़िंदगी को आप कैसे देखती हैं ?'
तब राखी ने कहा, "मैं अपनी ज़िंदगी स्वतंत्र ढंग से जीती हूँ. कोई मेरे प्रति दया या सहानुभूति दिखाए तो वह मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगता. अगर मुझे कोई दुख मिलेगा तो मैं उससे ख़ुद निबटने में सक्षम हूँ. मुझे रोने के लिए किसी के कंधे का सहारा नहीं चाहिए. मैं फ़िल्में भी वही करती हूँ, जो रोल मुझे पसंद हों. मैं कभी मुश्किल हालात में रही तब भी मैंने पैसों के लिए कोई भी फ़िल्म साइन नहीं की. मैं अपने मुँह अपनी तारीफ़ करना पसंद नहीं करती. लेकिन आप ध्यान से देखेंगे तो मैंने हमेशा लीक से हटकर और चुनौती वाली भूमिकाएँ ही की हैं."
राखी की यह बात सच है कि उन्होंने हमेशा चुनौती वाली भूमिकाएँ ही की हैं, हालाँकि वह बचपन में एक वैज्ञानिक बनने का सपना देखती थीं, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था.
सोलह साल की उम्र में पहली शादी
राखी 16 साल की भी नहीं हुई थीं कि 1963 में उनका एक पत्रकार और फ़िल्मकार अजॉय बिस्वास से विवाह हो गया. यह विवाह परिवार की इच्छा से हुआ, लेकिन शादी दो साल भी नहीं चल सकी और 1965 में दोनों अलग हो गए.
अजॉय ने हिन्दी और बांग्ला में 'प्रथम प्रेम', 'संबंध', 'समझौता' और 'भाग्य चक्र' जैसी फ़िल्में बनाई थीं.
जब राखी की पहली शादी नाकाम हो गई तो राखी ने फ़िल्मों का रुख़ किया. शुरू में उन्होंने तीन बांग्ला फ़िल्में कीं, लेकिन तभी राजश्री प्रोडक्शन के सेठ ताराचंद बड़जात्या ने राखी को अपनी फ़िल्म 'जीवन मृत्यु' में ले लिया जिसमें उनके नायक धर्मेन्द्र थे.
सन 1970 में जब 'जीवन मृत्यु' प्रदर्शित हुई तो वह सुपर हिट हो गई. इसके बाद तो राखी के पास एक-से-एक फ़िल्मों के प्रस्ताव आने लगे, लेकिन राखी ने समझदारी दिखाते हुए कुछ चुनिन्दा फ़िल्में ही लीं.
राखी ने एक बार बताया था, ''जीवन मृत्यु की शूटिंग के दौरान ही मुझे फ़िल्मों के कई प्रस्ताव आने लगे थे, लेकिन मुझे तब राज कुमार बड़जात्या ने सलाह दी कि कभी आँख बंद करके फ़िल्में मत करना. उनकी वह सलाह मैंने हमेशा मानी."
'जीवन मृत्यु' के बाद राखी ने सुबोध मुखर्जी की फ़िल्म 'शर्मीली' साइन की और फिर सुनील दत्त की 'रेशमा और शेरा'. यह दिलचस्प था कि 'शर्मीली' में राखी जहाँ कंचन और कामिनी के डबल रोल में थीं, वहीं 'रेशमा और शेरा' में राखी की भूमिका छोटी ही थी.
लेकिन इन दोनों फ़िल्मों में राखी को शशि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे उन दो अभिनेताओं का साथ मिला जिनके साथ राखी ने सबसे ज़्यादा फ़िल्में कीं. 'शर्मीली' में राखी ने अपनी दिलकश दोहरी भूमिकाओं से सभी का दिल जीत लिया. यह फ़िल्म सुपर हिट हुई तो राखी भी सुपर हिट हो गईं.
उधर 'रेशमा और शेरा' में राखी का काम सुनील दत्त ने देखा तो वह दंग रह गए. सुनील दत्त ने एक बातचीत में मुझे बताया था, "शूटिंग के दौरान वो क्षण मैं कभी नहीं भूल पाता जब राखी ने ऐसा अभिनय किया कि मेरी आँखें खुली रह गईं. सीन था कि नई नवेली दुल्हन अचानक विधवा हो जाती है. इस पर राखी ने एक ही पल में अपने हाथ की चूड़ियाँ तोड़कर, माथे से बिंदिया मिटाकर एक झटके में जिस तरह तहस-नहस किया उसे देख मैं ही नहीं, हमारी सारी यूनिट हैरान रह गई. मेरी आँखों से तो आँसू ही टपक पड़े. हम सभी को एक पल के लिए लगा कि हम सच में ऐसा कोई हादसा देख रहे हैं."
उधर राखी के शुरुआती दौर में ही फ़िल्मों में विधवा के रोल करने पर कुछ फ़िल्मकारों का मत था कि 'यह लड़की पागल है क्या? शुरू में विधवा के रोल करेगी तो इसे हीरोइन कौन बनाएगा.'
लेकिन राखी अपनी इन तीन शुरुआती फ़िल्मों से ही एक सशक्त और लोकप्रिय अभिनेत्री बन गईं. 'शर्मीली' में तो एक ही फ़िल्म में राखी के अभिनय के कई रंग एक साथ देखने को मिले. फ़िल्म में एसडी बर्मन के संगीत से सजे नीरज के बेमिसाल गीत राखी पर फ़िल्माए गए तो समा ही बंध गया.
इसके बाद तो राखी एक ऐसी स्टार बन गईं जिनके साथ हर फ़िल्मकार, हर अभिनेता काम करने के लिए मचल उठा.
संजीव कुमार के साथ 'पारस', राजकुमार के साथ 'लाल पत्थर', मनोज कुमार के साथ 'बेईमान', राकेश रोशन के साथ 'आँखों आँखों में', शशि कपूर के साथ 'जानवर और इंसान', देव आनंद के साथ 'हीरा पन्ना', 'बनारसी बाबू', 'जोशीला' और जीतेंद्र के साथ 'शादी के बाद' जैसी फ़िल्में राखी ने कीं.
उधर राजेश खन्ना के साथ 'दाग' और धर्मेन्द्र के साथ 'ब्लैकमेल' जैसी फ़िल्में भी राखी के शुरुआती करियर के तीन बरसों में यानी 1973 में ही आ गईं. बड़ी बात यह भी थी कि ये सभी फ़िल्में लगातार सफल होती चली गईं.
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गुलज़ार से शादी और अलगाव
राखी को शुरुआती तीन बरसों में मिली बड़ी सफलता किसी-किसी को ही नसीब होती है, लेकिन राखी ने इतनी जल्दी सब कुछ पाने के बाद एक और बड़ा फ़ैसला लेकर सभी को चौंका दिया. वह फ़ैसला था राखी का गीतकार-फ़िल्मकार गुलज़ार से शादी करने का.
राखी के अभिनय और सुंदरता पर मोहित गुलज़ार ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो राखी ने उसे स्वीकार कर लिया क्योंकि वह भी गुलज़ार की प्रतिभा को पसंद करती थीं.
दोनों ने 15 मई 1973 को विवाह रचा लिया. उसी बरस 13 दिसंबर को इनके यहाँ बेटी बोस्की (मेघना) ने जन्म लिया, लेकिन दिसंबर 1974 आते-आते राखी और गुलज़ार की राहें जुदा हो गईं.
उसी दौरान राखी को यश चोपड़ा ने अपनी फ़िल्म 'कभी-कभी' में काम करने का प्रस्ताव दिया. यश चोपड़ा ने राखी से कहा कि यह फ़िल्म उनको देखकर ही लिखी गई है. यहाँ तक साहिर लुधियानवी ने भी फ़िल्म के गीतों में जिस सुंदरता को उतारा है वह राखी का ही चेहरा है. यश चोपड़ा के साथ राखी ने 'दाग़' फ़िल्म करके, उसी साल अपनी ज़िंदगी का पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी जीता था.
अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के साथ यह फ़िल्म करने के लिए राखी काफ़ी उत्साहित हो गईं. बताते हैं उन दिनों गुलज़ार कश्मीर में फ़िल्म 'आंधी' की शूटिंग कर रहे थे. राखी उनसे सहमति लेने कश्मीर ही पहुँच गईं.
यश चोपड़ा भी अपनी फ़िल्म की लोकेशन देखने के लिए कश्मीर में ही थे, लेकिन राखी को तब लगा कि गुलज़ार 'आँधी' की नायिका सुचित्रा सेन के साथ कुछ ज़्यादा ही घुल-मिल रहे हैं. बताया जाता है कि यहाँ से दोनों के बीच अलगाव की शुरुआत हुई.
वैसे राखी और गुलज़ार के बीच कभी तलाक़ नहीं हुआ, न ही कभी किसी ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कुछ कहा. अलग होने के बावजूद अपनी बेटी के लिए ये दोनों कहीं न कहीं एक डोर से बंधे हुए हैं.
'दाग़', 'तपस्या' और 'राम लखन' के लिए फ़िल्मफ़ेयर के अलावा अपने अभिनय के लिए फ़िल्म '27 डाउन' और 'शुभो महूरत' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार पा चुकी राखी के बारे में एक बात काफ़ी मशहूर है कि वह बहुत मूडी हैं.
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जब शर्मिला टैगोर बनकर पहुँचीं राखी

राखी के मूडी और सख़्त होने पर उनके साथ 'दूसरा आदमी' और 'बसेरा' जैसी अच्छी फ़िल्में कर चुके निर्देशक रमेश तलवार बताते हैं, "मैं ऐसा नहीं मानता. मेरा तो अनुभव यह है कि राखी बेहद सहयोगी और अपने रोल में पूरी तरह डूब जाने वाली महिला हैं. जब यश चोपड़ा ने मुझे फ़िल्म 'दूसरा आदमी' से पहली बार निर्देशक बनने का मौका दिया तो निशा के किरदार के लिए यश जी ने मुझे राखी का नाम सुझाया.
मैंने इस पर उनसे कहा, मैं इस रोल के लिए शर्मिला टैगोर को लेना चाहता हूँ. उनका व्यक्तित्व और अंदाज़ इस रोल के लिए ज़्यादा फ़िट है. यश जी ने यह बात राखी को हँसते हुए बता दी. अगले दिन मैं क्या देखता हूँ कि राखी बिल्कुल शर्मिला टैगोर-सी बनकर हमारे सामने खड़ी थीं."
रमेश तलवार बताते हैं, "शर्मिला जिस तरह अपने सिर पर धूप का चश्मा चढ़ा लेती थीं. जिस अंदाज़ में वह साड़ी पहनती थीं. ठीक वही रूप राखी में देख मैंने उनसे कहा कि मुझे निशा के लिए जो लुक चाहिए वह हू-ब-हू आप में आ गया है. मुझे खुशी होगी अगर आप मेरी पहली फ़िल्म में काम करेंगी. कुछ दिन बाद वह मेरी फ़िल्म की शूटिंग कर रही थीं."
तलवार यह भी बताते हैं कि 'बसेरा' में भी अपने साथ रेखा को लेने के लिए राखी ने ख़ुद फ़ोन करके कहा था, ''अच्छी अभिनेत्री होने के साथ वह बहुत अच्छी इंसान हैं. वह अपने काम के प्रति, रोल के प्रति इतनी गंभीर रहती हैं कि पहली नज़र में लगता है, वह मूडी हैं. लेकिन ऐसा नहीं है."
वो कहते हैं, "राखी बेहतरीन कुक भी हैं. फ़िश बनाने में तो उनका जवाब नहीं. इतनी बड़ी हीरोइन होने के बावजूद कभी-कभी पूरी यूनिट को अपने हाथ से फ़िश या कोई और डिश बनाकर खिलाती थीं. ऋषि कपूर और शशि कपूर तो उनकी बनाई डिश बहुत पसंद करते थे.''
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