जबरन जय श्रीराम के नारे लगवाने का आरोप, पुलिस ने माना मामूली मारपीट
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के एक इमाम ने आरोप लगाया है कि अनजान युवकों ने उन्हें पीटा और जय श्री राम के नारे लगाने का दबाव बनाया.
मेरठ ज़िले के सरधना क़स्बे की एक मस्जिद में इमाम मुफ़्ती इमलाक़ुर्रहमान का आरोप है कि शनिवार शाम जब वह अपने गांव के लिए लौट रहे थे तो रास्ते में अनजान युवकों ने उन्हें रोका और उन पर हमला किया गया.
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के एक इमाम ने आरोप लगाया है कि अनजान युवकों ने उन्हें पीटा और जय श्री राम के नारे लगाने का दबाव बनाया.
हालांकि पुलिस इसे बस मारपीट का ही मामला मान रही है.
मेरठ ज़िले के सरधना क़स्बे की एक मस्जिद में इमाम मुफ़्ती इमलाक़ुर्रहमान का आरोप है कि शनिवार शाम जब वह अपने गांव के लिए लौट रहे थे तो रास्ते में अनजान युवकों ने उन्हें रोका और उन पर हमला किया गया.
इमलाकुर्रहमान बताते हैं, "मैं सरधना की मस्जिद में इमाम हूं. दो दिन पहले क़रीब साढ़े पांच बजे में बाइक से अपने गांव लौट रहा था. मैं बाइक धीरे चला रहा था. रास्ते में कुछ युवकों ने मेरी बाइक रुकवाई और मुझ पर हमला कर दिया."
वो कहते हैं, "आठ दस लड़के थे. बिना कुछ कहे मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी. दाढ़ी खींची और टोपी गिरा दी. वो जय श्री राम का नारा लगाने के लिए कह रहे थे. जब मैंने इनकार किया तो मुझे पीटना शुरू कर दिया."
वहीं बागपत के पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पांडे कहते हैं, "ये सिर्फ़ मारपीट का मामला है. जो धार्मिक रंग इसे दिया जा रहा है ऐसा बिलकुल नहीं है. हमने इस घटना के बाद तत्काल मुकदमा दर्ज किया है. जांच की जा रही है. अभी तक की जांच में कोई धार्मिक एंगल नहीं मिला है."
पांडे कहते हैं, "जो लोग मारपीट में शामिल हैं उनकी पहचना करने की कोशिश की जा रही है और जल्द ही आगे की कार्रवाई की जाएगी."
गांव में तनाव
पुलिस का कहना है कि पीड़ित और हमला करने वालों के बीच पहले से कोई जान-पहचान नहीं थी. ये हमला किस उद्देश्य से किया गया इसकी जांच की जा रही है.
लेकिन इमलाकुर्रहमान का कहना है कि ये पूरी तरह से धार्मिक हिंसा का ही मामला था.
वो कहते हैं, "ये पूरी तरह से धार्मिक हमला था. उन्होंने दूर से ही मुझे देख लिया था और मेरी बाइक को रोक लिया. मेरी दाढ़ी खींची और जय श्री राम के नारे लगाने के लिए मजबूर किया. मैंने नारे नहीं लगाए तो मुझे पीटना शुरू कर दिया. मैं अपनी बाइक को वहीं छोड़कर किसी तरह से जान बचाकर भागा."
जिस समय इमलाकुर्रहमान पर ये हमला हो रहा था वहां कई लोग मौजूद थे लेकिन किसी ने उन्हें बचाने का प्रयास नहीं किया.
वो कहते हैं, "लोग मुझे पिटता हुआ देख रहे थे. लेकिन कोई बचाने नहीं आया. मैं ही किसी तरह से उनसे छूटा और वहां से भागा. अपनी जान बचाने के लिए मैंने अपनी बाइक की भी परवाह नहीं की."
वहीं इमलाकुर्रहमान पर हमले की ख़बर के बाद उनके गांव में तनाव है और लोग जुटना शुरू हो गए.
स्थानीय धार्मिक नेता और उनके चाचा अब्दुल जलील क़ासमी का कहना है कि उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है और पुलिस ने उन्हें न्याय का भरोसा दिया है.
कासमी कहते हैं, "गांव में रोष फैल गया था. आसपास के लोगों के और रिश्तेदारों के फोन आने लगे. लोग जुटना शुरू हो गए. लेकिन हमने सबको समझाया और कहा कि मुक़दमा दर्ज हो गया है और पुलिस कार्रवाई कर रही है."
वो कहते हैं, "लोग पंचायत करना चाहते थे लेकिन हमने सभी को समझाया है. पुलिस ने इस मामले में इंसाफ़ करने का भरोसा दिया है और हम पुलिस की बात पर भरोसा कर रहे हैं."
वहीं इस हमले के बाद से इमलाकुर्रहमान बेहद डरे हुए हैं. वो कहते हैं, "भीड़ के हमलों के कई मामले अख़बारों में आते रहते हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ, मेरे अपने इलाक़े में इस तरह की कोई वारदात हो सकती है."
वो कहते हैं, "मुझे लग रहा था कि मैं बचूंगा नहीं. लेकिन मैं जान बचाने में कामयाब रहा. मेरे दिल में ख़ौफ़ बैठ गया है. अब मैं दोबारा मस्जिद में इमामत करने शायद न जा पाऊं. शायद पूरी आज़ादी से बाहर ही न निकल पाऊं."
भीड़ के हमलों के मामलों पर नज़र रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नदीम ख़ान कहते हैं कि लगातार ऐसे हमले होने के बावजूद पुलिस इस तरह के मामलों को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश करती है.
- झारखंड में 'मॉब लिंचिंग' के बाद मुस्लिम युवक की मौत
- तबरेज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए देश भर से उठी आवाज़ें
कई मामले
नदीम ख़ान कहते हैं, "तमाम मामलों में पुलिस की भूमिका संदिग्ध रहती है. जब भी पुलिस के सामने इस तरह की धार्मिक हिंसा या लिंचिंग का मामला आता है तो पुलिस की पहली प्राथमिकता उसे रफ़ा-दफ़ा करने की होती है."
वो कहते हैं, "हाल ही में उन्नाव में मदरसे के बच्चों पर हमला हुआ. उनके वीडियो सामने आए जिसमें उन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि उनसे ज़बरदस्ती जय श्री राम का नारा लगवाया गया. लेकिन पुलिस ने इस घटना पर भी लीपापोती करने की कोशिश की है. पुलिस का कहना है कि ये सिर्फ़ मारपीट का ही मामला है."
"ऐसे मामलों में पुलिस के बयान और पीड़ितों के बयान और शिकायतों की समीक्षा करने पर ये स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस धार्मिक हिंसा के इस तरह के हमलों को सिर्फ़ मारपीट का मामला मानती है और उसी के तहत कार्रवाई करती है."
हाल के दिनों में भीड़ की हिंसा और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से ज़बरदस्ती धार्मिक नारे लगवाने के कई मामले सामने आए हैं. झारखंड में तबरेज़ अंसारी के वीडियो ने देश और दुनिया को झकझोर दिया था और इस घटना के बाद भीड़ की हिंसा के ख़िलाफ़ भारत के कई शहरों में व्यापक प्रदर्शन भी हुए थे.
हाल ही में उन्नाव में मदरसे के छात्रों ने भी इसी तरह के हमले का आरोप लगाया है. ऐसे में इस तरह के हमलों को कैसे रोका जाए?
भीड़ के हमलों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे सामाजिग संगठनों का समूह अब ऐसे मामलों के पीड़ितों के लिए एक टोलफ्री हेल्पलाइन शुरू करने जा रहा है.
हेल्पलाइन शुरू
इस हेल्पलाइन को सोमवार से शुरू किया जा रहा है. नदीम ख़ान बताते हैं, "इसी तरह के हमलों को देखते हुए हम एक टोलफ्री हेल्पलाइन शुरू कर रहे हैं. ये 1800 का नंबर होगा."
वो कहते हैं, "हेल्पलाइन पर हमें पीड़ित फ़ोन करेंगे. ये हेल्पलाइन पीड़ितों का पक्ष जानने और उन्हें अदालतों में न्याय दिलाने के लिए शुरू की जा रही है."
"हेल्पलाइन सेंटर का उद्देश्य होगा, भीड़ की हिंसा का शिकार लोगों को न्याय दिलाने में मदद करना और इस तरह के हमलों की घटनाओं का दस्तावेज़ तैयार करना."
राज्य और केंद्र सरकारों ने ऐसी घटनाओं पर सख़्त रुख ज़ाहिर किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में दिए एक बयान में झारखंड की घटना पर दुख ज़ाहिर करते हुए कहा था कि इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए और हमला करने वालों से क़ानून को सख़्ती से निबटना चाहिए.
बावजूद इसके देश के अलग-अलग हिस्सों से धार्मिक हिंसा के मामले सामने आ रहे हैं. बार-बार पूछा जा रहा सवाल यही है कि ये हमले रुकेंगे कब.