क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'खाता है, आधार है लेकिन नसीब नहीं पेंशन'

बिहार के वैशाली ज़िले में पेंशन पाने के लिए भटक रहे हैं कई बुजुर्ग

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

"पंडित जवाहर लाल नेहरू का हम भोज खाए हैं, लेकिन सरकार से आज तक कुछ नहीं मिला. बस जब वोट लेना हो तो सब गोदी में उठाकर ले जाने के लिए तैयार रहते हैं, पांव पर गिर जाते हैं."

ये बात अपनी मिट्टी की झोपड़ी के सामने लाठी लेकर बैठी उकछी देवी ने मुझसे कही.

उनकी आवाज़ में तल्खी थी. उनके आधार कार्ड में जन्म की तिथि 01/01/1943 लिखी है. इस हिसाब से वो 75 साल की हैं, लेकिन सरकारी फाइलों ने उन्हें अब तक 60 साल से ज्यादा का नहीं माना है.

वो कहती है, "दौड़ दौड़ के थक गए, किसी ने हजार लिया, किसी ने दो हजार. लेकिन पेंशन आज तक नहीं मिली. जुलाई में 500 रूपए देकर बैंक ऑफ़ इंडिया में खाता खुलवाया है. आधार कार्ड भी बनवा लिया है लेकिन पेंशन एक बार भी नसीब नहीं हुई."

'आधार लिंक करने के गंभीर परिणामों को पहचाने सरकार'

बैंक खाते को आधार से जोड़ने की तारीख़ बढ़ी

पेंशन के इंतज़ार में लाखों बुजुर्ग

उकछी के पास बैठी गंगाजली देवी की पेंशन भी बंद हो गई है.

पेंशन के लिए पैन कार्ड तक बनवा चुकी खेत मजदूर गंगाजली कहती है, "फलना कार्ड बनवा लो, चिलना कार्ड बनवा लो, न बनवाओगे तो ये न मिलेगा, वो न मिलेगा. 6 महीने में चावल मिलता है वो भी सड़ा हुआ. सरकार पब्लिक को जीने देगी?"

बिहार के वैशाली ज़िले की पंचायत राघोपुर नरसंडा के अस्मा वार्ड की रहने वाली उकछी और गंगाजली अकेले मामले नहीं है. बिहार सरकार जो सामाजिक सुरक्षा ( बुजुर्ग और विधवा) और निशक्तता पेंशन देती है, सरकारी बेवसाइट इ-लाभार्थी के मुताबिक उससे 10 लाख लोग महरूम है.

राजसमंद मर्डर केस: एक शख्स गिरफ्तार

आधार के पेंच से भूखों मरने की नौबत आई

कार्ड के जाल में उलझी ज़िंदगी

समाजिक सुरक्षा एवं निशक्तता निदेशालय के निदेशक आर एस पी दफ्तुआर ने बीबीसी से कहा, "कुल 62 लाख पेंशनधारियों का डिजिटलाइजेशन हो गया है जिन्हें जून 2017 तक पेंशन मिली है, तकरीबन दस लाख की पेंशन विभिन्न वजहों से अटकी है. पेंशन मद पर पैसा नहीं मिला है, जब पैसा भारत सरकार से मिलेगा, तब ही भुगतान हो पाएगा."

"दूसरा ये कि पहले के पेंशनधारी जिन्हें पेंशन नहीं मिल रही है उनके लिए प्रखंड में 5 से 14 जनवरी और 27 जनवरी से 17 फरवरी के बीच कैम्प लगाया जा रहा है, जहां उनकी समस्याओं को सुलझाया जाएगा."

ग़ौरतलब है कि पहले पेंशन पंचायत से लाभार्थी को सीधे मिलती थी. लेकिन अप्रैल 2016 से सरकार ने फैसला किया कि पेंशन सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में आएगी. जिसका नतीजा ये हुआ कि पेंशनधारियों का जीवन बैंक खाते, आधार कार्ड और पैन कार्ड में उलझ गया.

'काश, यह आधार इतना ज़रूरी नहीं होता'

आधार: क्या आप भी बैंकों के मैसेज से परेशान हैं?

'कोई नहीं सुनता शिकायत'

आलम ये है कि ये सारे कार्ड बनवा भी लें तो भी पेंशनधारियों की मुश्किलों का हल नहीं. जैसा कि अस्मा वार्ड की लुकिया देवी कहती है, "आठ बार बैंक जा चुके है लेकिन बिजली की मशीन पर अंगूठा नहीं उगता तो पेंशन नहीं मिल रही है. शिकायत भी कोई नहीं सुनता."

लुकिया के पति गणेश साहनी को भी पेंशन हाथ के साथ न देने के चलते ही नहीं मिल रही है. वार्ड से करीब 2 किलोमीटर दूर बैंक तक ये बुजुर्ग अक्सर पैदल जाते हैं.

गणेश कहते है, " कभी टैम्पु मिल गया तो 10 रूपये आने-जाने में लगते है. अब 400 रुपए पेंशन में 10 रूपया भी खलता है बाबू."

'आधार के चलते' भूखा रह रहा है एक बच्चा

'मुख्य समस्या आधार नहीं, योजनाओं को इससे जोड़ना है'

कैसे बनेगा डिजिटल इंडिया?

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अजय साहनी कहते हैं, "आमदनी है नहीं, रोजगार है नहीं, पैसे की सूरत नहीं है. सिर्फ 100 रूपया खर्च करके आधार कार्ड, 200 रूपया खर्च करके पैन कार्ड, खाता खुलवाइए. ऐसे गरीबों से ही पैसा चूस कर बनेगा डिजिटल इंडिया?"

स्थिति ये है कि कटिहार की चितौरिया पंचायत के सरपंच जितेन्द्र पासवान के पिता छविलाल पासवान को भी बीते 18 माह से पेंशन नहीं मिल रही है.

स्थानीय लोगों से चंदा जुटाकर चुनाव जीते जितेन्द्र बताते है, "लोक शिकायत निवारण में पिताजी और तकरीबन 50 बुजुर्गों की पेंशन न मिलने की शिकायत कर चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ हुआ नहीं. हमारे यहां मुखिया दीप नारायण पासवान के पिता राम किशन पासवान को भी पेंशन नहीं मिल रही है.

आधार-राशन कार्ड नहीं जुड़े और बच्ची 'भूख' से मर गई

क्यों नहीं हो रही कार्रवाई?

सवाल ये भी है कि क्या बिहार में सिर्फ़ 63 लाख ही पेंशनधारी हैं? पेंशन पाने के लिए नए आवेदक आखिर कहां जाएं.

इस सवाल के जवाब में निदेशक आर एस पी दफ्तुआर कहते है, "उन्हें पहले की तरह ही अपना आवेदन लोक सेवाओं के अधिकार कांउटर पर ही जमा करना होगा."

राशन-पेंशन और मनरेगा के सवाल पर जन जागरण शक्ति संगठन की कामायनी कहती है, "डिजिटाइजेशन के ज़रिए तो सरकार लोगों को सामाजिक सुरक्षा के घेरे से बाहर धकेल रही है. "

"ऐसा करके सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ रही है और सोशल सेक्टर पर जो खर्च है उसको लगातार कम कर रही है."

वो सवाल करती हैं, "आधार को अनिवार्य करने की योजना का हम विरोध करते हैं. जिन अधिकारियों के चलते 10 लाख डिजिटलाइज पेंशनधारी वंचित है, उन पर कोई कार्रवाई न होना सरकार के किस रूख का संकेत है?"

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Account base but fortune not pension
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X