जानिए कौन थे बिहारी साधु अभिराम दास, जिन्होंने बाबरी मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखकर बदल दिया अयोध्या का इतिहास
नई दिल्ली। कई दशकों के विवाद के बाद आज राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद मंदिर का शिलान्यास किया गया। राम जन्मभूमि स्थल जिसे भगवान राम का जन्मस्थल माना जाता है। वह एक विवाद का विषय रहा है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी के बीच, कुछ साधु "जन्मस्थल को लेकर संघर्ष कर रहे थे। दरअसल जिसे जन्मस्थान माना गया है उस स्थान पर 1992 तक बाबरी मस्जिद खड़ी थी। कुछ स्थानीय मानचित्रकार द्वारा मध्ययुगीन युग का नक्शा बनाया गया था। जिसमें जन्मस्थान और अन्य जगहों को दिखाया गया था। मार्च 2002 में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अयोध्या फोर्ट और टाउन शीर्षक वाला नक्शा क्षेत्र के सबसे पुराने चित्रणों में से एक है।
जयपुर रॉयल परिवार ने एक साधु से 5 रुपये में इस मैप को खरीदा था
रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्शा 'लॉक एंड की' के तहत जयपुर के सिटी पैलेस संग्रहालय में संरक्षित है। काफी सरकारी दबाव के बाद एक दुर्लभ प्रति 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को उपलब्ध कराई गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सवाई जय सिंह (1699-1743) के शासनकाल के दौरान संभवतः जयपुर रॉयल परिवार ने एक साधु से 5 रुपये में इस मैप को खरीदा था। 19वीं शताब्दी के मध्य में फैजाबाद (अयोध्या जिले के रूप में पूर्व में जाना जाता था) के साधुओं ने स्थानीय प्रशासन और मजिस्ट्रेटों को जन्मस्थान की बहाली के लिए याचिका दायर की थी।
अभिराम दास ने मस्जिद के अंदर रखी थी पहली बार मूर्ति
जिसमें 1949 में हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े को इस जगह का संयुक्त उपाधि धारक घोषित करने का फैसला आया था। उस समम देश विभाजन के दौर से गुजर रहा था। वहीं देश का सांप्रदायिक माहौल लगातार खराब हो रहा था। इससे अछूता अयोध्या भी नहीं रहा। यह पृष्ठभूमि एक युवा और आक्रामक साधु बाबा अभिराम दास के लिए अनुकूल थी। उनके खिलाफ बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्ति रखने के संबंध में एफआईआर दर्ज हो गई।
बिहार से अय़ोध्या आए थे अभिराम दास
बाबा अभिराम दास भी बिहार के दरभंगा जिले के एक गरीब मैथिल ब्राह्मण परिवार से आते हैं।बलिष्ठ और हठी स्वभाव वाले अभिराम दास की गिनती अयोध्या के लड़ाकू साधुओं में होती थी। अशिक्षित होने के कारण उन्होंने शारीरिक बल को अपना सशक्त माध्यम बनाया। अभिराम दास राम जन्मभूमि में रामलला की मूर्ति स्थपित करने का स्वप्न हमेशा देखते रहते थे। रामलला की मूर्ति स्थापित कराने के लिए वह एक बार फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह से भी मुलाकात की थी। साथ ही स्थानीय स्तर पर अफसरों और कर्मियों को अपनी रणनीति का हिस्सा बनाया।
भगवान राम उनकी धार्मिक पहचान थी
भगवान राम उनकी धार्मिक पहचान थी। अभिराम दास अयोध्या के सामाजिक हलकों में व्यस्त व्यक्ति थे, जिनका जिले के शीर्ष अधिकारियों से संपर्क था। उनके पास शिष्यों का एक छोटा समूह था, जिसे उन्होंने अपना एक विशेष सपना सुनाया था। जिसमें उन्होंने बताया था कि, भगवान राम ने उन्हें अपने जन्म के सटीक स्थान के बारे में बताया है। अभिराम दास इस स्थल की पहचान सीधे बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे करते थे। अभिराम दास ने अपना सपना तत्कालीन फैजाबाद शहर के मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह को सुनाया, जो स्वयं भगवान राम के भक्त थे। अभिराम दास के सुर में सुर मिलाते हुए मजिस्ट्रेट ने भी उन्हें बताया कि उन्होंने भी सपने में भगवान राम केंद्रीय गुंबद के नीचे दिखाई देते हैं।उन्हें जिला कलेक्टर और मजिस्ट्रेट केके नायर की सहानुभूति मिली। अयोध्या, द डार्क नाइट नामक एक पुस्तक में, लेखक कृष्ण झा और धीरेंद्र के झा ने कहा कि केंद्रीय गुंबद के अंदर राम लला की मूर्ति को रखना अभिराम दास और दो शीर्ष जिला अधिकारियों का समन्वित कार्य था।
'गुंबद के अंदर राम लला की मूर्ति रखने के पीछे आरएसएस का हाथ था'
अभिराम दास ने राम लला की मूर्ति को रखा था जिसे एक अन्य साधु वृंदावन दास द्वारा लाया गया था। दोनों साधु एक ही निर्वाणी अखाड़े के थे। गीता प्रेस और द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया, ने हिंदी पत्रकार और आरएसएस के एक जानकार राम बहादुर राय के हवाले से कहा कि केंद्रीय गुंबद के अंदर राम लला की मूर्ति रखने के पीछे आरएसएस का हाथ था। आरएसएस के नेता नानाजी देशमुख की पुस्तक के अनुसार, राय को बताया कि "मूर्ति को अयोध्या परिसर में पोद्दार के नेतृत्व में सरयू नदी में पवित्र स्नान के बाद लाया गया था, जो तत्कालीन कांग्रेस विधायक बाबा राघव दास एक करीबी सहयोगी और मित्र थे। इससे ही राम लला की मूर्ति की जगह राम मंदिर के निर्माण की असली नींव पड़ गई। इसी राम जन्मभूमि नामक स्थल पर 1990 के दशक की शुरुआत में एक आक्रामक अभियान के बाद आरएसएस-बीजेपी-वीएचपी द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए बनाया गया था। जिसे 1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा ताले खोले जाने के बाद मान्यता मिली।
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फोटो साभार: सोशल मीडिया